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मैं तो बड़ा ही कमीना था, दीपक से पहले मैं दोनों को चोदना चाहता था तो मैं उन मां बेटी से बोला- रिपोर्ट तो कल आएगी, चलो शहर घूमते हैं. मानसी- चलो। सुशीला- नहीं … हम कमरे में चलते हैं। मैं- चिंता मत करो भाभी, मेरे होते हुए कोई तकलीफ नहीं … यहाँ एक मेला लगा है, वहाँ घूम कर आते हैं। सुशीला कुछ नहीं बोल पाई।
हम सब वहाँ गए। मैंने दोनों को दो आइसक्रीम खरीद कर दी. सुशीला के मना करने के बाबजूद मैंने उसे जबरदस्ती थमा दी। मैं- चलो, यहाँ ऊँचा वाला झूला है, एक राउंड लगाते हैं। मानसी खुश होकर बोली- चलो चाचू! सुशीला- नहीं नहीं! मैं- क्या भाभी, बच्ची को हर बात में टोकती हो … आप न जाना चाहें तो ना सही, पर बच्ची को तो मत रोको। सुशीला और कुछ नहीं बोल पाई।
मानसी और मैं टिकट करके झूले में एक साथ बैठ गए। सुशीला नीचे देखती रह गयी. झूला घूमने लगा. हम दोनों एक बक्से में थे. हमारे सामने दो सीट खाली थी। मेरा तो लंड खड़ा होने लगा था मानसी को अपने साथ अकेली पाकर! अन्धेरा भी होने लगा था।
मानसी- मुझे डर लगता है झूला नीचे आने के वक्त! मैं- हम हैं ना, हम क्या तुमको गिरने देंगे. हमें कसके पकड़ लेना अगर डर लगे तो! मानसी- ठीक है।
मेरा लंड और खड़ा होकर धोती से उछलने लगा. मानसी की नजर मेरे लंड के ऊपर पड़ी. उसे अब रोकने वाला कोई नहीं था. वो सीधे मेरे लंड को बड़े प्यार से देख रही थी। मानसी- चाचाजी, आपका नूनू बहुत बड़ा है? मैं- वो तो है। पर अब नूनू नहीं रहा, लंड बन गया है … देखना चाहोगी? मानसी- इसे? मैं- इसे मत बोलो, लंड बोलो! मानसी- हमें शर्म आएगी … इसे देखने में! मैं- नाम लो उसका … किसको देखने में? मानसी- लं … ड को … और मुँह झुका लिया।
मैं- शर्म कैसी … बस में तो इसे पकड़ चुकी हो … और फिर पहले भी तुम इसका मजा उठा चुकी होगी। मानसी- आपको क्या मालूम? मैं- बेटी, हम तोहर चाचा है … यह बात भी नहीं जान पाएंगे कि बिटिया ने क्या किया है और क्या चाहती है। मानसी शरमा के- चा … चू! मैं- सच बोलना … क़िससे चुदाया है … कौन है वो लड़का … … हम किसी से नहीं बोलेंगे। मानसी- छोड़ो चाचू। मैं- बता ना … शरमाती क्यों है? और उसके हाथ को लेकर अपने लंड पर रख दिया। जिससे किसी को दिखाई नहीं दे।
उसने पहले आहिस्ता से पकड़ा लंड को … तब हमारा बक्सा आसमान में सबसे ऊपर था और नीचे नए लोग चढ़ रहे थे। मैं- पसंद है? मानसी- चाचू! मैं- चाचू चाचू क्या करती है? बोल पसंद है या नहीं … कैसा लग रहा है? मानसी- बहुत बड़ा है … इतना बड़ा हमने कभी नहीं देखा। मैं- अच्छा पहले जो देखा था कितना बड़ा था? मानसी- वो तो आपके से आधा था। कहकर मानसी ने मेरे लंड को दबा दिया।
“आह स्ससशह्ह्ह हाहाह…” मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी। मैं- अच्छा … पर था किसका? मानसी- वो हमारे घर के पास एक लड़का है न राजन … मेरे से दो क्लास ऊपर है. मैं- अच्छा … कितनी बार चुद चुकी हो? मानसी- यही कोई दस बारह बार!
मैंने मन में सोचा कि ‘साली पूरा चुदक्कड़ है … पेट में बच्चा करवा दिया है चुद चुद के!’
मैं- माँ को पता है? मानसी- नहीं … किसी को पता नहीं पर तुम बताना नहीं! मैं- मैं क्यों बताने लगा … हमारा लंड पसंद है? मानसी शरमा के- हाँ! मैं- अंदर लोगी? मानसी- हाँ! और उसने मेरे लंड को धोती के ऊपर से फिर से दबा दिया, फिर मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी।
मैं- पर तुम्हारी माँ तो कवाब में हड्डी बनी हुई है. मानसी- मैं क्या कर सकती हूँ? मैं- सुन, तू मेरा साथ दे … उसको भी एक बार चोद दूंगा तो फिर वो कभी तुम्हारे मेरे बीच हड्डी नहीं बनेगी। मानसी- माँ को कैसे चोदोगे? मानसी ने हैरत के साथ पूछा।
उसके मुँह से चोदने की बात सुनके मेरा लंड और फुंकार मारने लगा। मैं बोला- वो सब तुम मेरे ऊपर छोड़ दो। मैं कुछ भी करूँ तुम मेरा साथ देना, मुझसे डरने की जरूरत नहीं … और अभी झूला में बैठ के मजे लो। अब चरखी घूमने लगी थी … उसका एक हाथ मेरे लंड पर था और दूसरे हाथ से मुझे जकड़े हुए थी. जब झूला नीचे आता तो सुशीला हम दोनों को जकड़े हुए देखती। उसके चेहरे से ग़ुस्सा साफ नजर आ रहा। पर हमें रोकने वाला कोई नहीं था. मैं भी ऊपर अँधेरा का फायदा उठा कर उसकी चूची एक हाथ से मसल देता … वो सिसकारी लेती थी ‘असस्स्स्श ह्ह्ह्ह …’ मगर झूले की आवाज में वो दब कर रह जाती थी.
मानसी भी कम शातिर खिलाड़िन नहीं थी। मेरे लंड को अब उसने पूरा जकड़ लिया था और झूले के हिलने के साथ वो भी उसे टाइट जकड़ लेती और झूले के हिलने के साथ ही उसका हाथ लंड के ऊपर जकड़ के ऊपर नीचे हो रहा था। मैं आनन्द में गोते लगा रहा था। जब झूला स्पीड से नीचे आता तब एक तो मेरे शरीर में सिहरनसी दौड़ जाती थी, उसके साथ उसकी मजबूत जकड़ लंड को सातवे आसमाँ पर पहुंचा देती थी। मेरी तो ऐसी इच्छा हो रही थी कि ऐसे ही हम जीवन भर झूलते रहें और वो मेरे लंड को ऐसे ही जकड़े रखे.
मेरी आँख आनन्द से बंद हो जाती थी और सिसकारी भी जोर की निकल जाती थी. ऐसे झूले पर आनन्द तो अद्भुत होता है. यह मुझे पहली बार मालूम हो रहा था … झूला जब नीचे जाता है तो मन में डर पैदा कर देता है इसीलिए इतने आनन्द के बाद भी लंड झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था. इस आनन्द को मैं भाषा में व्यक्त नहीं कर सकता.
वहाँ पर बहत सारे लोग थे। मगर सब समझ रहे थे कि हम डर से एक दूसरे को जकड़ कर बैठे है। कोई हम पर शक ही नहीं कर सकता था. पर वहाँ एक ही औरत जो सुशीला थी, उसे शक होने लगा था पर वो कुछ कर ही नहीं सकती थी. और हम मजा ले रहे थे … मैं अब उसकी मस्त चूचियों को उसके काँधे के ऊपर से हाथ डाल कर कसके मसल रहा था और वो मेरे लंड को … और फिर सबके सामने खुली भीड़ में ऐसे आनन्द लेने में बड़ा मजा भी आ रहा था. अगर वही पर चूत में लंड डालने की अनुमति मिल जाती तो और भी अच्छा होता.
हम दोनो के मुँह से सिसकारी निकलती मगर वो झूले के घूमने की आवाज की वजह से कोई नहीं सुन पाता था. मैं- और जोर से दबाओ। उसने ऐसा ही किया. और अब मैं स्वर्ग में था … आँख बंद करके … उसी हिसाब से मैंने उसकी चूची की निप्पल भी मसल दी.
अब मैं झड़ने वाला था- मजा आ रहा है! मानसी- बहुत … मैं- अब हाथ हटाओ मेरे लंड से … नहीं तो मैं झड़ जाऊँगा.
उसने मेरी बात मानकर लंड के ऊपर से हाथ हटा लिया. मैं- अब तुम आनन्द लो … यह बोल कर उसके काँधे से हाथ हटा कर उसकी जांघ के बीच रख दिया। मानसी- कोई देख लेगा। मैं- देखने दो … कौन पहचानता है यहाँ हमें! और दो उंगली उसकी चूत पर भिड़ा दी. झूले के साथ ही उसकी चूत के दाने से मेरी उंगलियां टकराने लगी … अब उसे आनन्द आने लगा था, वो सिसकारी निकाल रही थी ‘आह स्सस …’ आंखें बंद करके!
जब नीचे झूला आया तो सुशीला को सब मालूम पड़ गया. मैंने उसे देख कर एक कुटिल मुस्कान दी और जोर से उसकी बेटी की चूत में उंगली दबा दी. कपड़ों के ऊपर से. मानसी की जोर से सिसकारी किलकारी निकली … सब समझे कि मानसी झूले के कारण चिल्ला रही है और सिसकारी मार रही है. मगर सुशीला को पता था कि वो किसलिये सिसकारी मार रही है।
मानसी- मैं झड़ने वाली हूँ! मैं- अब हाथ मेरे लंड पे रख के सहलाओ, दोनों साथ में झड़ेंगे. उसने ऐसा ही किया और मेरे लंड को जोर जोर से हिलाने लगी. और मैं उंगली जोर जोर से उसकी चूत में घुसाने लगा उसके कपड़ों के ऊपर से.
वो चिल्लाने लगी थी अब … मेरी भी अन्तिम आनन्द में आंखें बंद थी और सिसकारी निकल रही थी. हम दोनों का पानी बहने लगा था … मेरा लंड दो- तीन पिचकरी छोड़ कर शांत हो गया और हम दोनों हांफने लगे थे.
कुछ और देर घूमने के बाद झूला रुका … हम दोनों थक गये थे। हांफते हुए हम दोनों उस बक्से से उतरे और सुशीला के पास गए। सुशीला की नजर हम दोनों को घूरती जा रही थी पर हम दोनों शांत थे, हमने सुशीला की ओर कोई ध्यान नहीं दिया और चलने लगे जैसे सुशीला अकेली आयी हो।
मैं चलता जा रहा था साथ में मानसी और पीछे सुशीला। कुछ देर के बाद मैं बोला- चलो कुछ खरीदते हैं मानसी मेले से! सुशीला गुस्से से- नहीं हम कमरे में चलेंगे. मैं- इतनी भी क्या जल्दी है? क्यूं मानसी? सुशीला- नहीं, हमें कुछ नहीं खरीदना है. मानसी, जो बोला वो करो।
मानसी थोड़ा सहम गयी और चुपचाप खड़ी रही.
मैं- भाभी, तुम भी न … बच्ची को बेकार में डांट देती हो। सुशीला- अब वो बच्ची नहीं रही … और तुम दोनों जो कर रहे हो … वो ठीक नहीं है. मैं- लो भाभी जी, हमने क्या किया? सुशीला- देखो मुनीम जी, तुम जो हमारे साथ कर रहे हो, वो ठीक नहीं है। वो गुस्से से चिल्लाई.
मैं- मैंने ऐसा क्या किया? थोड़ा सा मानसी बिटिया से प्यार किया. सुशीला- हमें मत समझाओ … तुम इस का गलत फायदा उठा रहे हो … हम गाँव में जाकर सब बता देंगे। वो फिर गुस्से से चिल्ला कर बोली। मैं गुस्से में- बोलिये क्या बोलोगी? जानती हो हम यहीं पर तुम दोनों को अगर रंडीखाने में छोड़ के चले जायेंगे … तो कोई पूछने वाला नहीं होगा। गाँव में बोल देंगे कि मेले में दोनों माँ बेटी खो गई. सुशीला और मानसी थोड़ा सहम गई मेरी भाषा सुन के!
मैं- चलो चलते हैं कमरे में! हम सब चुपचाप कमरे में चले आये.
कहानी जारी रहेगी. [email protected]
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