नंगी आरज़ू-4

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“इंसान भविष्य से इतना अंजान न रहता तो… काश मुझे पता होता कि एक दिन तुम पहली बार मेरी चूत को चाटोगे तो अब तक दसियों मौके मिले थे तुमसे चटवाने के। बल्कि जवान होने से पहले ही तुमसे चटवाती और चुद रही होती।”

“सही कह रही हो.. मुझे भी इन लम्हात का पहले से अंदाजा होता तो यूँ तुम्हारा तन ढलने की नौबत न आती। तुम्हारे यह थन सनी लियोनी की तरह वैसे ही फूले होते, ये चूतड़ किम की तरह बाहर उभरे होते और यह चूत पावरोटी की तरह फूली होती और तीन-तीन इंच बाहर निकली क्लाइटोरिस चूसने वाले होंठों को लुत्फअंदोज कर रही होती।”

“काश.. काश.. हम अंजाने में कितना ढेर सा सुख पीछे छोड़ आते हैं।” वह एक गहरी साँस छोड़ती पीछे अधलेटी हो गयी और चेहरा छत की ओर हो गया। इससे उसका निचला हिस्सा और ऊपर हो गया और उसकी गुदा का छेद मेरी पंहुच में हो गया।

मैंने उस छेद के आसपास जीभ फिराई.. उसकी कसी हुई चुन्नटों पर दबाव डाला और जीभ की नोक उसके छेद में उतार दी। वह एक जोर की “सी” के साथ कांप गयी। “बुरा नहीं लगता.. गंदा सा?” थोड़ी देर बाद उसने पूछा। “अगर हम संसर्ग से पहले अपने अंगों की अच्छी तरह से सफाई कर लें तो क्यों खराब लगेगा? बाधा तो दिमाग में रहती है। जब किसी को मन से स्वीकार कर लो तो उसका कुछ भी अस्वीकार्य नहीं रह जाता।”

“कितना अच्छा लग रहा है.. कितना मजा आ रहा है। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि यहाँ से भी इतना मजा मिल सकता है।” “इससे ज्यादा मिलेगा.. पहले अनाड़ी के पल्ले पड़ी थी न, इसलिये वह रूचि न पैदा कर पाया।”

अब मैं अंगूठे से उसके भगांकुर से छेड़छाड़ कर रहा था और जुबान से उसके पीछे के छेद से और वह धीरे-धीरे ‘आह … आह…’ करती सिसकारती हुई थरथरा रही थी। फिर एकदम से वह अकड़ गयी।

उन पलों में मैंने जीभ की नोक उसकी योनि के छेद में घुसा कर उसे नितम्बों से भींच लिया। उसने भी एक हाथ से खुद को संभालते हुए दूसरे हाथ से मेरे सर को कस लिया। फिर एक गहरी साँस लेते हुए पीछे लुढ़क गयी। मैं भी ऊपर आ कर उसके पहलू में लेट गया और उसके सपाट पेट को सहलाने लगा।

“मुझे नंगी देखने के सिवा भी कोई ख्वाहिश थी तुम्हारी?” थोड़ी देर बाद उसने मेरी आँखों में झांकते हुए पूछा। “नहीं.. एक्चुअली मेरी ख्वाहिश तुम्हें चोदने की नहीं थी पहले कभी … लेकिन जैसा कि तुम देख सकती हो कि मेरा लंड एकदम साधारण सा है तो कम लंबाई की वजह से कई आसन मुश्किल और कई एकदम नामुमकिन हो जाते हैं। लड़की के चूतड़ों का उभार और जांघ का गोश्त किसी छोटे लंड वाले के आधे लंड को तो बेकार ही कर देता है साईड से चोदने में या डॉगी स्टाईल से चोदने में।

“तो ऐसे में मेरे जैसे साईज वाले हर मर्द की चुदाई के टाईम ही यह ‘काश’ टाईप इच्छा होती ही है कि अगर लड़की के चूतड़ और जांघ पर इतना गोश्त न होता तो हम भी जड़ तक लंड डाल कर चोद पाते। तो ऐसे में जब कोई तुम्हारे जैसी दुबली पतली लड़की दिखती है तो यह दिलचस्पी मन में पैदा होती ही है कि इसे साईड से लिटाने या कुतिया बनाने पर चूत या गांड़ कितनी बाहर आ जाती होगी, क्योंकि इसमें तो अवरोध है नहीं बाकियों जैसा।”

“देख लो जानेमन.. जैसे चाहो वैसे देख लो।” उसने समर्पण भाव से कहा।

अब मैं उठ बैठा और अपने हाथ के दबाव से उसे औंधा कर लिया। इस अवस्था में सीधे औंधे लेटने पर उसकी योनि का निचला हिस्सा जितना दिख रहा था, उस हिसाब से मैंने अंदाजा लगाया कि लगभग साठ प्रतिशत लिंग से मैं इस पोजीशन में समागम कर सकता था।

फिर उसकी एक टांग सीधी ही रखते हुए दूसरे घुटने से मोड़ कर जहां तक ऊपर सरक सकती थी, मैंने सरका दी और यूँ उसकी योनि और ज्यादा खुल गयी.. मैंने नाप तोल कर अंदाजा लगाया कि इस एंगल से मैं सत्तर प्रतिशत तक लिंग घुसा सकता था।

इसके बाद उसे हाथ के दबाव से सीधा किया और अपनी साईड से हल्का सा हवा में उठाते हुए, उसी साईड से उसकी टांग घुटने से मोड़ते हुए हवा में उठा दी और मन ही मन नापने तोलने लगा कि मैं अगर साईड में लेट कर उसे भोगूं तो कितने प्रतिशत लिंग को अंदर बाहर कर सकता था. दिल ने गवाही दी कि इस हाल में भी सत्तर प्रतिशत के आसपास लिंग से समागम हो सकता था।

“अब कुतिया की पोजीशन में हो जाओ और अपने दोनों छेद जितने बाहर निकाल सकती हो, निकाल दो.. पोजीशन तुम्हें पता है।”

वह फिर उल्टी हुई और घुटने मोड़ कर दोनों जांघों को पूरा खोलते हुए अपने नितम्बों को हवा में उठा दिया। अपने चेहरे और सीने को चादर से सटा रखा था और पेट को मुड़ी हुई जांघों तक खींच लाई थी। यूँ उसकी योनि अपने पूरे आकार में मेरे चेहरे के सामने खुल गयी। न उसके नितम्बों पर कोई खास मांस था और न ही जांघों पर.. जिससे हुआ यह था कि इस पोजीशन में उसके आगे पीछे के दोनों छेद जैसे ‘सपाट दीवार में बने हों.’ जैसी स्थिति में हो गये थे जिससे कोई भी साईज का लिंग नब्बे प्रतिशत से ऊपर तक समागम कर सकता था।

कोई भी साईज से मतलब छोटे या नार्मल साईज वालों से था। बड़े लिंग का प्रवेश किस हद तक हो यह तो योनि की गहराई ही तय कर सकती है।

मैं चेहरा और पास ले आया और पनियाई हुई योनि से उठती महक को अपने नथुनों में भरने लगा। मैंने दोनों पंजे उसके नितम्बों पर टिका कर अंगूठों से योनि को फैलाया और अंदर के गुलाबी भाग को देखने लगा। थोड़ा जोर देने पर अंदर का छेद खुल रहा था.. मैंने ढेर सा थूक उसमें उगल दिया और उसी अंदरूनी छेद पर जुबान फिराने लगा।

“आह.. जानू.. कितना मजा देते हो।” वह फिर सिसकारने लगी।

कुछ देर जुबान फिराने के बाद मैंने जुबान वापस खींच ली और अंगूठों का दबाव रिलीज करके योनि को वापस मिल जाने दिया.. जिससे लसलसा तार सा बन कर अब नीचे जा रहा था।

अब मैंने उसके गोल छेद पर थोड़ी अपनी लार गिराई और उस पर जुबान फिराने लगा। मुंह में ढेर सी लार बनाई और दोनों होंठ छेद से सटा कर अंदर उगल दी, जिससे वह अंदर तक गीला हो जाये और फिर होंठ पीछे खींच कर जीभ को गोल कर के करीब आधे से एक इंच तक अंदर धंसाने लगा। अब वह थोड़ी तेज आवाज में सिसकारने लगी थी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’

जब छेद अच्छी तरह गीला हो कर ‘दुप-दुप’ करने लगा तो जुबान पीछे खींच ली और लार से अपनी बीच वाली उंगली गीली और चिकनी करके थोड़ा दबाव डालते अंदर तक उतार दी। उसके मुंह से जोर की ‘आह’ उच्चारित हुई।

एक हाथ को उसके पेट की तरफ नीचे से ले जा कर पकड़ बनाई और दूसरे हाथ की बिचल्ली उंगली को धीरे-धीरे अंदर बाहर करने लगा। “आह.. बड़ा अच्छा लग रहा है.. आह.. मैं सोच भी नहीं सकती जानू.. आह.. बस ऐसे ही करते रहो।”

थोड़ी देर की अंदर बाहर में चुन्नटें एकदम नर्म पड़ गयीं और छेद ढीला पड़ गया और उंगली सटासट अंदर होने लगी तो मैंने एक की जगह दो उंगली कर दीं।

तत्काल तो उसकी मादक सिसकारियां थमीं और छेद में वापस कसाव आया लेकिन कुछ ही देर में वह वापस दो उंगलियों की मोटाई के हिसाब से एडजस्ट हो गया और दोनों उंगलियों को सुगमता से अंदर लेने लगा।

वह फिर आहें भरने लगी थी।

“कितने गजब के इंसान हो… आह… कितना मजा दे लेते हो… पागल कर डालोगे मजा दे दे के… आह … अब से ले कर तुमसे अगली बार चुदने तक मैं हर पल अफसोस मनाऊंगी कि मेरे पास इतना जबरदस्त चोदू भाई मौजूद था और उसकी गोद में नंगी क्यों न हुई.. क्यों न चुदी.. आह!” वह ऐसे ही बड़बड़ाती रही और मैं उंगली से उसके छेद को ढीला करता रहा।

थोड़ी देर बाद उसने चेहरा तिरछा करते हुए मुझे देखा और सिसकारते हुए कहा- लंड डालो। मैं घुटनों के बल खड़ा हो गया और उसके नितम्बों को थोड़ा दबाते हुए लिंग के हिसाब से एडजस्ट कर लिया। फिर लार से अपने लिंग को अच्छे से चिकना कर उसके छेद से सटा दिया और दबाव डालने लगा।

छेद चूँकि पहले से लचीला और समागम के लिये तैयार था तो कोई खास अवरोध न कर सका और जल्दी ही उसने जगह दे कर टोपी को अंदर लील लिया। ऐसी हालत में अपेक्षा यही रहती थी कि लड़की तड़क कर आगे निकलना चाहेगी और मैं उसके पुट्ठों पर पकड़ बनाये हुए उस स्थिति में उसे रोकने के लिये तैयार था लेकिन उसने दांत भींच कर बर्दाश्त कर लिया।

थोड़ी देर मैं उसके छेद के अभ्यस्त हो जाने का इंतजार करता रहा फिर धीरे-धीरे अंदर सरकाना शुरू कर दिया और जहां तक संभव था अंदर ठूंस दिया। “अच्छा लग रहा है।” थोड़ी देर बाद उसने रोकी हुई सांस छोड़ते हुए कहा।

“अब एक काम करना.. जब मैं निकालूंगा तो अपनी मसल्स को सिकोड़ कर लंड को रोकने, अंदर खींचने की कोशिश करना और जब फिर मैं अंदर ठांसूं तो उसे बाहर धकेलने की कोशिश करना जैसे पोट्टी करने के वक्त करते हैं।” “ठीक है।” उसने सर हिलाते हुए कहा।

मैंने अपना लिंग बाहर खींचना शुरू किया धीरे-धीरे और उसने मांसपेशियों को सिकोड़ कर उस पर दबाव डालना शुरू किया। पर रुकना तो था नहीं.. पूरा लिंग ही ‘पक’ करके बाहर आ गया। मैंने और लार बना कर उसके छेद पर उगल दी और फिर दबाव डालते अंदर घुसाना शुरू किया जबकि अब उसने उसे बाहर ठेलने के लिये जोर लगाया। जड़ तक ठूंसने के बाद वापसी में फिर वही प्रक्रिया दोहराई।

फिर करीब सात आठ बार ऐसे ही घुसाया निकाला लेकिन बेहद धीरे-धीरे.. कि वह हर चीज को अच्छे से महसूस कर सके। “सचमुच बड़ा अच्छा लग रहा है.. आह.. कितना मजा आ रहा है मेरी जान!”

फिर कुछ और बार के बाद उसने थमने का इशारा किया और अपने फैले हुए घुटनों को आपस में मिला कर पैर सीधे करने शुरू किये.. मैं समझ गया कि वह सीधे लेटना चाहती है तो उसी पोजीशन के हिसाब से मैं खुद को भी एडजस्ट करता गया। और कुछ सेकेंड बाद वह औंधी लेटी थी और उसी पोजीशन में उसकी गुदा में लिंग घुसाये-घुसाये मैं उसके ऊपर लेटा था.. हालाँकि मेरी कोशिश यही थी कि मेरा वजन मेरे ही पैरों और हाथों पर रहे।

उसने चेहरा घुमा रखा था ताकि मुझे देख सके और मैं भी अपना चेहरा उसके इतने पास ले आया था कि मेरे होंठ उसके होंठों को छू सकें। उसने ही मेरे होंठों को पकड़ लिया और दोनों एक दूसरे के मजे लेने लगे। “उफ.. कितना मजा दे लेते हो! काश … काश … पता होता कि एक दिन मुझसे दस साल बड़े, कभी मुझे गोद में खिलाने वाले मेरे इमरान भाईजान एक दिन मुझे नंगी करके मेरी गांड में अपना लंड ठांसेंगे।”

“पता होता तो..” “तो जब मैं खिलती हुई कली थी और मेरी चूत में चुदने की इच्छायें पैदा होने लगी थीं तो तब तो तुम घर आ आ कर हफ्ता भर रुका करते थे न.. हर दिन या रात तुमसे बिना चुदे छोड़ती नहीं तुम्हें!” “यही तो है… इंसान को भविष्य पता हो तो कई गलतियां करने से बच जाये।”

“अच्छा.. मैं तो दो बार झड़ चुकी और अभी भी बहुत गर्म हो चुकी हूँ, जल्दी ही झड़ जाऊँगी। पहला राउंड गांड ही मारोगे क्या?” “नहीं.. आखिर में!” “तो चोदना शुरू करो.. अब और बर्दाश्त करना मुश्किल है।”

मैंने उठने में देर नहीं लगाई। नीचे चटाई पर सिरहाने पड़ी वह चादर उठाई जो मैं सर पे लपेटता था, आज यही पौंछने के काम आनी थी। वहीं पानी की बोतल भी रखी थी, जिससे थोड़ा कोना भिगा कर लिंग साफ कर लिया।

“सीधी हो जाओ.. साईड से चोदूंगा।” वह सीधे हो गयी और मैं उसके पहलू में लेट गया। फिर लार से लिंग को गीला किया और उसने हल्का सा तिरछा होते और अपना एक पैर मोड़ते हुए मेरी जांघों पर रख कर अपनी योनि मेरे लिंग की तरफ जहां तक संभव हो सका.. उभार दी। मैंने पानी से भरी योनि में लिंग उतार दिया और उससे सटते हुए एक हाथ उसकी गर्दन के नीचे से निकाल कर उसका चेहरा अपने पास ला कर उसके होंठ चूसने लगा.. साथ ही दूसरे हाथ से मसाज के स्टाईल में सख्ती से उसके नर्म और फैले हुए वक्ष दबाने लगा। इसी अवस्था में धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा।

“दूसरी बार इस आसन में चुद रही हूँ।” बीच में उसने भारी सांसों के साथ कहा। “अच्छा लग रहा है?” “बहुत ज्यादा। जोर जोर से धक्के लगाओ जानेमन.. एकदम ढीली कर दो.. फाड़ के रख दो.. आह।” मैं जोर-जोर से धक्के लगाने लगा और उत्तेजना के चरम की ओर बढ़ने से उसके होंठों के चूषण में और आक्रामकता आने लगी।

काफी धक्के लगा चुकने के बाद मैंने कमर रोक ली और उसने ऐसी शिकायती नजरों से देखा जैसे झड़ते-झड़ते रह गयी हो। मैं हंस पड़ा। उससे अलग होकर मैं उठ बैठा और उसे दबाव देते फिर पहले जैसी पोजीशन में बिस्तर से चिपकाये रखते औंधा कर दिया।

क्रमशः

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