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कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि मैं कम्मो को धर्मशाला के कमरे में ले आया था.
“कम्मो मेरी जान … कोई नहीं आने वाला. तू सब कुछ भूल कर इन पलों का मज़ा ले; ऐसा हसीन मौका और समय ज़िन्दगी में बार बार नहीं मिलता!” मैंने उसे कहा और अपनी शर्ट और बनियान भी उतार कर फेंक दी.
कम्मो ने मेरे सीने को कुछ देर तक निहारा और फिर उठ कर मेरी छाती से लग गयी और अपना मुंह वहीं छुपा कर गहरी गहरी सांस लेने लगी, फिर वहीं पर दो तीन बार चूम लिया.
मैंने उसका मुंह ऊपर उठाया और उसके होंठों का रसपान करने लगा. मेरी जीभ कम्मो के मुंह में घुसने की कोशिश करने लगी. उधर मेरा हाथ उसकी ब्रा में घुस चुका था और उसके फूल से कोमल उरोजों से खेल रहा था फिर जल्दी ही उनसे खिलवाड़ करने लगा. उसके काबुली चने जैसे निप्पलस को मैं चुटकी से दबाने, मरोड़ने लगा.
मेरे ऐसे करने से कम्मो की चूत की चुदास और प्यार की प्यास जग उठी थी सो उसने अपना मुंह खोल दिया और मेरी जीभ भीतर ले ली. उस देहाती बाला के मुखरस का स्वाद बेमिसाल था जिसे उचित शब्द देना मेरे बस में नहीं है. हमारी जीभें कितनी ही देर तक आपस में गुटरगूं करती रहीं, लड़ती झगड़ती रहीं और फिर वो हट गयी और लेट कर अपनी अपना मुंह अपनी हथेलियों से छिपा लिया और गहरी गहरी सांसें भरने लगी.
वो अपना मुंह हथेलियों से ढके सीधी लेटी थी, उसके उन्नत उरोज सांसों के उतार चढ़ाव के साथ उठ बैठ से रहे थे; दोनों पैर अलग अलग से फैले थे जिससे उसकी मांसल जांघों का वो फैलाव उसके बदन की कामुकता को और प्रबलता से दर्शा रहा था.
इस समय उसकी चूत पैंटी के भीतर कैसी लग रही होगी; चूत की दरार खुली होगी या दोनों लब आपस में चिपके होंगे? इस बात का फैसला मैं नहीं कर सका. जो होगा जैसा होगा अभी सामने आ जाएगा ऐसा सोचते हुए मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खींच कर खोल दिया और इसके पहले कि वो कुछ रियेक्ट करे मैंने सलवार ढीली करके सामने का हिस्सा नीचे सरका दिया.
मेरी गिफ्ट की हुई पैंटी उसकी फूली हुई चूत पर डेरा डाले थी. यह मैं क्षणमात्र के लिए ही देख सका कि कम्मो ने घबरा कर अपनी सलवार झट से ऊपर कर ली और उसे कसके मुट्ठी में पकड़ लिया.
मैंने जोर लगा कर सलवार छुड़ाने का प्रयास किया तो उसने अब दोनों हाथों से उसे पकड़ लिया और इन्कार में गर्दन हिलाने लगी. “अरे छोड़ तो सही गुड़िया रानी!” मैंने कहा. “ऊं हूं…” उसकी गर्दन फिर इनकार में हिली. “अरे छोड़ दे कम्मो, एक बार देखने तो दे. तू तो मेरी प्यारी प्यारी गुड़िया रानी है न!” मैंने बहुत ही मीठी आवाज में उसे मक्खन लगाया. “नहीं अंकल जी, मुझे शर्म आती है.”
“अरे तो फिर कैसे क्या होगा सलवार तो उतारनी ही पड़ेगी न?” “मुझे नीं पता वो सब!” उसने जिद की. “अरे मान जा बेटा, देख टाइम खराब मत कर बेकार में. अभी काम बहुत है करने को और समय कम है.” मैंने उसे याद दिलाया.
“अच्छा पहले बत्ती बुझा दो फिर जल्दी से!” वो अपना फैसला सुनाती हुई सी बोली. “अरे यार तू भी न… बेटा अँधेरे में क्या मजा आयेगा, कुछ भी नहीं दिखेगा?” “आ जायेगा, नहीं आयेगा तो मत कीजिये कुछ, जाने दो मुझे. हमें कुछ नहीं करवाना है आपसे न कुछ दिखाना है आपको, बस!” कम्मो अभी भी जिद पर अड़ी थी. “मान जा बेटा, तू तो मेरी अच्छी सी प्याली प्याली गुड़िया रानी है न!” “नहीं नहीं नहीं … मुझे जाने दीजिये बस या फिर अंधेरे में कर लो!” वो अपनी जिद पर अड़ी रही.
“यार तू भी अजीब है. सारे दिन से ललचा रही है, कुछ भी करने को तैयार थी. अब क्या हो गया तेरे को आखिर. एन टाइम पर के एल पी डी करने पर तुली है?” “क्या क्या … मैं क्या के डी एल पी कर रही हूं?” उसने तुनक कर पूछा. “अरे के डी एल पी नहीं के एल पी डी, मतलब खड़े लंड पर धोखा दे रही है तू!” “अंकल देखो, मैं कोई धोखा नहीं दे रही आपको, मुझे शर्म आती है उजाले में बस. आप बत्ती बुझा दो फिर जल्दी से करो जो करना है.” उसने मुझे अपनी तर्जनी दिखा कर कहा.
मैं कम्मो की बात भी समझ रहा था; गांव के संस्कार थे न. छोरी चुदासी तो थी पर चुदना अपने हिसाब से चाहती थी. उजाले में अपनी चूत न दिखाने की सोच के ही आई लगती थी. मैंने भी मन ही मन तय कर लिया कि इसे रोशनी में पूरी नंगी करके अपने लंड पर झूला न झुलाया तो मेरा भी नाम नहीं. आखिर अँधेरे में क्या ख़ाक मज़ा आयेगा. जब तक इसकी मदमस्त जवानी के दर्शन न मिलें, इसकी चूत और मम्में देखने का मज़ा न मिले तो फिर चूत मारने का मजा ही क्या.
इतना सोच के मैंने कम्मो की सलवार नीचे सरकाने की फिर से कोशिश की पर उसे दोनों हाथों से ताकत से पकड़ रखी थी. फिर मैंने दूसरी तरकीब की; उसकी सलवार को पकड़े पकड़े ही मैंने अपने बीच की उंगली से सलवार के ऊपर से ही उसकी चूत को कुरेदना शुरू किया. दूसरे हाथ से उसके दू दू दबा रहा था. मुझे पता था कि अभी मेरी उंगली इसकी चूत में हाय तौबा मचाएगी तो ये अपनी सलवार क्या अपनी पैंटी भी खुद उतार के देगी मुझे; आखिर अपनी चूत की खुजली कब तक सहन कर सकेगी.
जैसा कि होना ही था. कामदेव ने अपना पुष्पबाण चला ही दिया और कम्मो अपनी एड़ियाँ रगड़ने लगी. उसकी आँखों में अनुनय विनय का भाव आ गया और सलवार पर उसकी पकड़ स्वयमेव ढीली पड़ गयी और उसने सलवार छोड़ कर अपने हाथ ऊपर कर दिए. सलवार ढीली पड़ते ही मेरी उंगली अब और आराम से उसकी चूत का जायजा लेने लगी. उसके मम्मे कड़क हो गये थे और चूचुकों ने अपना सिर उठा लिया था और वे मेरी छाती के नीचे पिसने को मचलने लगे थे. नीचे उसकी चूत भी पक्का प्रेमाश्रु बहा रही होगी.
“अंकल जी देर हो रही है देखो बारात पहुँचने वाली होगी!” उसने कमजोर सी आवाज में कहा उसकी आवाज में वो दृढ़ता वो आत्मविश्वास नहीं था अब. उसकी बात मैंने अनसुनी की और अपनी उंगली की रफ़्तार और तेज कर दी; उसकी चूत की चिपचिपाहट और गीलापन अब मुझे अच्छे से महसूस होने लगा था.
“अंकल जी क्यों सताते हो मुझे. अच्छा लो कर लो जैसे आपको करना हो!” उसने हथियार डाल दिए.
मैं अब उसके ऊपर लेट गया और फिर से उसके होंठ चूसने लगा; वो मेरी पीठ बेसब्री से जल्दी जल्दी सहलाने लगी फिर वो अपने हाथ नीचे की तरफ ऐ गयी और अपनी सलवार उसने खुद और नीचे सरका दी. “लो अंकल जी, देख लो जो देखना है कर लो अपने मन की जी भर के. मुझे पूरी बेशर्म बना देना आप तो!” कम्मो समर्पित भाव से बोली. “कम्मो, कितनी प्यारी प्यारी है न तू. मुझे पता था कि तू मेरा दिल नहीं तोड़ेगी.” मैंने प्यार से उसे चूमते हुए कहा; मैं नहीं चाहता था खुद को हारी हुई समझे. उसके स्त्रीत्व का नारीत्व का, उसकी गरिमा का आदर सम्मान बनाए रखना मेरी जिम्मेवारी थी. जबकि मैं जानता था कि वो अपनी चूती हुई चूत से हार कर अपनी सलवार नीचे खिसकाए पड़ी थी.
“कम्मो बेटा एक बात और मान ले जल्दी से!” मैंने कहा तो उसने प्रश्नवाचक दृष्टि से मुझे देखा. “ये कुर्ता और उतार दे. बाकी तो मैं कर लूंगा.” मैंने उसे अत्यंत प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा. “अच्छा ये लो, आज आप मुझे पूरा बेशर्म बना कर ही छोड़ना.” वो बोली और अपने हाथ ऊपर उठा दिए.
मैंने झट से कुर्ता नीचे से पकड़ा और उसे निकालने लगा. मेरे हाथ उसके सीने की गोलाइयों से रगड़ खाते हुए ऊपर चले गये और उसका कुर्ता उतार लिया और उसे तह करके वहीं साइड में रख दिया.
शमीज तो उसने पहनी ही नहीं थी. मेरी गिफ्ट की हुई ब्रा में उसके मांसल दूध जैसे मेरी ही राह तक रहे थे. उसके सुडौल कंधों पर ब्रा के स्ट्रेप्स बहुत अच्छे लग रहे थे. ब्रा के दोनों कप जैसे किसी स्तूप की तरह शान से खड़े थे. “कम्मो ये ब्रा भी उतार दो अब” “क्यों, क्या मुझपे अच्छी नहीं लगी ये?” “अरे बेटा, वो बात नहीं है. तू तो इसमें बहुत सुन्दर लग रही है पर इसे उतारना तो है ही ना नहीं तो मैं दूध कैसे पियूंगा ?” “तो अभी तक दूध पीते बच्चे हो आप, क्यों?” “हां… और भूख भी लगी है मुझे!” “हम्म्म्म तो ये लो पी लो!” कम्मो ने कहा और अपने हाथ पीछे ले जाकर ब्रा का हुक खोल दिया.
हुक खुलते ही ब्रा के स्ट्रेप्स तेजी से उछल गये. और उसके पके तोतापरी आम जैसे विशाल गुलाबी मम्में मेरे सामने उजागर हो गये. मैंने बिना देरी किये उन्हें दबोच लिया और बारी बारी से चूसने लगा. उधर कम्मो मेरे सिर को थपकी दे दे के ममत्व भाव से सहलाने लगी.
वासना की आग में मैं भी जलने लगा था अब मैंने कम्मो का गला, कान की लौ, गाल सब के सब चूम डाले और नीचे की ओर होकर उसके सपाट सुतवां पेट को चूमते चूमते उसकी नाभि में अपनी जीभ घुमाने लगा. मेरा ऐसे करते ही कम्मो को गुदगुदी हुई और उसकी हंसी छूट गयी; बिल्कुल बच्चों जैसी निश्छल, उल्लासपूर्ण खिलखिलाहट उसके मुंह से फूट पड़ी और उसके मोतियों से चमकते दांत ट्यूबलाइट की तेज रोशनी में दमक उठे.
उसकी सलवार का नाड़ा तो खुला ही पड़ा था सो मैंने सलवार उतारने का उपक्रम किया तो कम्मो ने तुरंत अपनी कमर उठा दी और उसका सफ़ेद चूड़ीदार मैंने निकाल कर फिर उसे अच्छे से तह करके बगल में रख दिया; आखिर उसे अभी इसे ही तो पहन कर शादी में जाना था. अब मैंने उसके दोनों अमृत कलश के चूचुकों को चिकोटी से हौले हौले दबाते हुए उसकी जांघें पूरी तन्मयता से चाटने लगा.
मैं पहले भी बता चुका हूं कि मुझे अपनी संगिनी की नग्न जांघें चाटने में विशेष आनन्द आता है तो मैं कम्मो रानी के दोनों मम्में कसके दबोचे हुए उसके घुटनों से ऊपर चूत के आस पास सब जगह चाट डाला. फिर उसकी पिंडलियां भी चूम चाट डालीं और पांव की उंगलियां भी अपने मुंह में भर कर चुभलाने लगा, तलवे भी चाटने लगा.
प्यासी कम्मो इतना सब कैसे सहन करती सो उसने गद्दों को अपनी मुट्ठी में भर लिया और अपनी चूत बार बार ऊपर उठाने लगी. अभी तक मैंने उसकी चूत को जरा भी नहीं छेड़ा था.
“अंकल जी, मुझे अजीब सा लग रहा है, मेरे पैरों से कमर तक जैसे चीटियां रेंग रहीं है और पैंटी में खुजली मची है.” वो सिसियाते हुए बोली. “बेटा, यही तो होना था. अभी देखना तेरी चूत की खुजली मैं अपने लंड से खुजाऊंगा तुझे तभी चैन पड़ेगा, मेरा लंड लोगी न अपनी चूत में?” मैंने उसकी जांघ पर चिकोटी काट कर कहा. “धत्त, कैसे कैसे गंदे बोल बोलते हो आप भी ना, लाज शरम तो है नहीं आपको. पराई लड़की का भी कोई लिहाज नहीं आपको तो?” “कम्मो मेरी जान, अब तू पराई थोड़े ही है. बस थोड़ी से कसर रह गयी है फिर तू पूरी तरह से मेरी हो जायेगी, बस जरा सी देर और!” मैंने उसकी पैंटी के ऊपर से चूत की दरार में उंगली फिराई. “तो जल्दी जल्दी कर दो ना जो कुछ रह गया हो, मुझसे नहीं रहा जा रहा अब.” तो बेसब्री से बोली.
“कम्मो रानी, ये नयी ब्रा पैंटी पहन के अच्छा किया तूने. मस्त लग रही है तेरे बदन पर!” मैंने पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत मसलते हुए कहा. “अंकल जी, मुझे पता था आप कोई न कोई जुगाड़ जरूर फिट कर लोगे. ऐसी ही कोरी कोरी तो मुझे जाने नहीं दोगे. तो मैंने सोचा कि आपसे ही इनका उद्घाटन करवा कर आपकी कीमत ही वसूल करवा दूं!” वो बड़े ही सेक्सी अंदाज में बोली और मुझे प्यार से चूम लिया.
“वाह बेटा, क्या बात कह दी तूने. मजा आ गया. तू सच में बहुत प्यारी है.” मैंने इस बार उसकी पैंटी में अपना हाथ घुसा दिया और उसकी नंगी चूत मुट्ठी में भर ली और उसकी झांटों में अपनी उँगलियों से कंघी करने लगा. उसकी मुलायम चूत मुझे कचौरी की तरह फूली फूली सी महसूस हुई. “सीsss स्स्स्स … धीरे; बाल खिंचते हैं.” वो कसमसाकर बोली.
अब मुझसे भी सब्र नहीं हो रहा था. मेरा लंड तो कब का खड़ा खड़ा परेशान हो रहा था और कपड़ों से आजादी चाह रहा था. लेकिन सबसे जरूरी मुझे कम्मो की चूत देखना थी पहले. कुंवारी लड़की की चूत देखे हुए एक ज़माना बीत गया था. मैंने उसकी पैंटी नीचे की तरफ सरकाई और कम्मो ने अपनी कमर उठा कर पैंटी उतर जाने दी. ज्यों ही उसकी पैंटी उतरी उसने झट से चूत को अपने हाथों से ढक लिया; अब लाज तो इतनी जल्दी नहीं उतरती न.
मैंने उसके हाथ चूत पर से हटा दिए जिन्हें उसने थोड़ी सी ना नुकुर के बाद हटा लिया और उसकी चूत अब मेरे सामने अनावृत थी. कम्मो मेरे सामने मादरजात नंगी लेटी थी. ट्यूबलाइट की तेज रोशनी में उसका जवां हुस्न मेरे तन मन में हाहाकार मचाने लगा. मैं उसके बगल में बैठा हुआ उसे निहारने लगा. कम्मो ने तो आंखें बंद कर लीं थीं. बेदाग़ हुस्न की मलिका निकली कम्मो रानी; उसके चिकने बदन पर मुझे एक भी तिल या और कोई दाग नज़र नहीं आया, खूब भरा भरा सा पुष्ट बदन था उसका. गांव की मेहनतकश लड़कियों के जिस्म में मजबूती और मांसपेशियों का सौन्दर्य अलग ही छलकता है.
मैंने उसके चेहरे को बार बार चूम डाला और उसके पैरों के पास जा बैठा और उसकी पिंडलियां पकड़ कर पांव ऊपर उठा कर घुटने मोड़ दिए.
अब उसकी चूत का तिकोना खुल कर स्पष्ट रूप से मेरे सामने था; कम्मो ने एक बार फिर से अपनी चूत हाथों से ढकने की व्यर्थ सी कोशिश की पर मैंने उसके हाथ हटा दिए और चूत पर अपने हाथ रख दिए और उसे सहलाने लगा. उसकी चूत पर झांटों का ऊबड़ खाबड़ सा जंगल उगा हुआ था; झांटों के बाल कहीं एकदम छोटे छोटे जिनके बीच से खाल भी दिखती थी कहीं झांटें थोड़ी सी बड़ीं बड़ीं थीं.
“कम्मो ये तेरी चूत के बाल ऐसे ऊबड़ खाबड़ से छोटे बड़े कैसे हैं?” मैंने चूत को सहलाते हुए पूछा. “अंकल जी, हमारे पास कोई बाल काटने का साधन तो है नहीं. घर में एक पुरानी सी कैंची है वो भी ठीक से चलती नहीं. आते समय उसी कैंची से जैसे बने काट लिए थे.” वो बोली. मैं उसकी बात समझ रहा था. गांव की छोरियों, औरतों के साथ ये बड़ी दिक्कत है कि उन्हें अपनी चूत के बाल साफ़ करने के लिए प्रॉपर सामान नहीं मिलता. न हेयर रिमूविंग क्रीम, न रेजर ब्लेड. गांव के ज्यादातर पुरुष भी अपनी शेविंग नाई से ही कराते हैं और ब्लेड रेजर वगैरह घर में नहीं रखते. तो मैंने कम्मो से वादा किया कि मैं उसे कल जाने से पहले हेयर रेमूविंग क्रीम और नयी कैंची ला कर दूंगा ताकि वो अपनी सुहागरात के लिए अपनी चूत को चिकनी चमेली बना सके.
जवान चूत चोदन कथा जारी रहेगी. [email protected]
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