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मेरा नाम कोमल है और मेरी उम्र 30 साल है। मैं एक कंपनी में बहुत अच्छी नौकरी करती हूँ। मेरे पिता कुछ समय पहले तक इसी कंपनी में महाप्रबंधक थे जिसकी वजह से मुझे नौकरी ढूंढने में कोई परेशानी नहीं हुई। अब वो सेवा निवृत्त हो चुके हैं। मगर उनकी वजह से मुझे कभी कोई परेशानी नहीं हुई।
जब मैंने आफिस ज्वाइन ही किया था, तभी धीरज नाम का एक और लड़का भी इसी आफिस में मेरी तरह ही नया नया लगा था। उससे मेरी कुछ बातचीत होने लगी। उसको मैंने नहीं बताया था कि मेरे पापा इसी कम्पनी में महाप्रबंधक हैं। धीरे धीरे हमारी दोस्ती बढ़ने लगी। वो मुझसे दो साल बड़ा था. उसके माता पिता किसी दूसरे शहर में रहते थे और वो यहाँ पर नौकरी करने के लिए ही आया था और हमारे शहर में एक किराये का मकान लेकर रहता था। हम दोस्त ज़रूर बने मगर हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं था जिससे कोई कुछ कह सकता। हमारा मिलना जुलना और लंच भी बस आफिस तक ही था। और हम लंच भी एक साथ ही किया करते थे.
धीरज एक मिडिल क्लास परिवार से था, उसने मुझे बताया कि वो एक मिडल क्लास के परिवार से है और उसके कुछ रिश्तेदार तो बहुत ही ग़रीब हैं. उसकी बहन की शादी एक बहुत अच्छे परिवार में हुई थी जहाँ किसी किस्म की कोई दिक्कत नहीं थी मगर उसके जीजा को शादी के कुछ समय बाद व्यापार में बहुत ही नुकसान हो गया था जिसकी वजह से उनको अब गुज़ारा करना भी मुश्किल होता है. वो कभी कभी उनकी सहायता के लिए कुछ रुपये भेज देता है. उसके मुक़ाबले में मेरी माली हालत कहीं अच्छी थी.
धीरज बहुत ही मेहनती था और कुछ ही समय में वो कंपनी में उच्च पद पर आ गया। अब क्योंकि मैं उससे रोज़ ही मिलती जुलती थी धीरे धीरे मैंने खुद को पाया कि मैं उसको चाहने लगी हूँ मगर मैंने कभी उससे जाहिर नहीं होने दिया क्योंकि मुझे नहीं पता था कि वो मेरे बारे में क्या सोचता है. अगर मैंने कुछ पहल दिखाई और उसने मना कर दिया तो मैं उससे फिर नज़र नहीं मिला पा सकूँगी.
जब मेरे पापा सेवानिवृत्त हुए तब उसे पता लगा कि मैं उनकी बेटी हूँ। उसने तब मुझसे कहा कि मैंने उसे पहले क्यों नहीं बताया इस बारे में तो मैंने उससे कहा- मैं अपनी दोस्ती के बीच तुमसे यह नहीं बताना चाहती थी कि मेरा परिवार कौन सा है जिससे तुम यह ना समझो कि मैं अपनी पारिवारिक पृष्ठ भूमि तुमको जता रही हूँ. मैंने उसको अहसास दिलाया कि मेरे लिये हमारी दोस्ती ज्यादा मायने रखती है।
कुछ दिन बाद उसने मुझसे पूछा- क्या तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हारी शादी अभी तक कहीं पक्की नहीं की? मैंने कहा- मेरे पिता तो बहुत जल्दी कर रहे हैं मगर मैं ही नहीं मानती. उसने पूछा- क्यों क्या हुआ? मैंने कहा- मुझे एक लड़के से प्यार हो चुका है. “तब क्यों नहीं अपने पिता से कहकर उससे शादी पक्की कर लेती हो.”
मैंने कहा- मुझे नहीं पता कि वो लड़का मेरे बारे में क्या सोचता है. उसने कहा- महामूर्ख होगा जो तुम जैसी को ना करेगा. मैंने कहा- मैं क्या कर सकती हूँ … मैं उससे पूछ कर अपनी दोस्ती ख़त्म नहीं करना चाहती. अगर उसके दिल में कोई और लड़की हुई तो? उसने मुझसे कहा- तुम मुझे उसका नाम बताओ, मैं उससे बात करने की कोशिश करता हूँ. मैंने कहा- अगर काम बनता हुआ तो भी नहीं बनेगा, वो यह सोचेगा कि तुम मेरे बहुत नज़दीक हो और वो बिदक जाएगा. यह सुनकर उसने कहा- बात तो तुम सही कह रही हो.
फिर वो बोला- मेरी भी किस्मत देखो, जिसे मैं चाहता हूँ वो किसी और को चाहती है. मैंने पूछा- कौन है वो खुश नसीब जिसे तुम चाहते हो? वो बोला- छोड़ो … अब बताना भी ठीक नहीं होगा. मैंने कहा- क्यों, मैं क्या किसी को बताने जा रही हूँ? उसने कहा- नहीं, मैं अब कुछ नहीं बता सकता. मैंने कहा- तुम्हें उसकी कसम होगी, जिसको तुम सब से ज़्यादा प्यार करते हो … अगर नहीं बताओगे तो. उसने कहा- ठीक है, मैं आज नहीं बता सकता क्योंकि आज मेरे दिल बहुत उचाट हो गया है मगर कल बता दूँगा.
अगले दिन वो आफिस में नहीं आया मगर मेरी टेबल पर एक लिफ़ाफ़ा पड़ा था जिस पर मेरा नाम लिखा था। उसे खोलकर देखा तो उसमें बस दो लाइन ही लिखी हुई थी- कोमल जी, मैं आपको चाहता था मगर जब मुझे पता लगा कि आप किसी और की होने वाली हैं तो मैं कैसे आपको बताता। क्योंकि आपने मुझे यह पूछा है, सिर्फ इसलिये मुझे यह सब मजबूरी में लिखना पड़ रहा है क्योंकि आपने मुझे कसम दे कर यह पूछा है। पढ़कर मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा, मैंने उसी समय उसको फोन किया और बोली- इतने दिन तक क्यों तरसाया मुझे? आपको नहीं पता मैंने अपने माता पिता को कितनी बार शादी से इन्कार किया तुम्हारी खातिर! मुझसे कई बार उन्होंने पूछा था कि अगर कोई लड़का है तुम्हारी नज़र में तो बता दो, हम बिना झिझक तुम्हारी शादी वहीं कर देंगे. उसने कहा- मैं डरता था कि कहीं तुम्हारे घर वाले मुझे अपने परिवार का हिस्सा ना बनाना चाहें। मैंने उसे रोते हुए कहा- बहुत तरसाया है तुमने मुझे. क्या यही समझा था तुमने मुझे आज तक?
अगले दिन जब वो ऑफिस में आया तो मैंने उससे कहा- मुझे नहीं करनी कोई भी बात, तुमने मुझे बहुत रुलाया है. उसने कहा- मेरी अपनी मजबूरी थी, मैं भी तुम्हें नहीं खोना चाहता था, अगर तुम्हारी तरफ से हाँ ना होती तो! खैर गिले शिकवे होने के बाद मैंने उससे कहा- ऑफिस के बाद किसी जगह बैठकर खुलकर बात करेंगे.
ऑफिस के बाद हम किसी रेस्टोरेंट में चले गये और वहाँ बैठकर मैंने उससे पूछा- तुम्हारे घर वाले मुझे दिल से अपना मानेंगे ना? उसने कहा- इस बात की तुम चिंता ना करो, बस अपने घर वालों को यही बात मेरे बारे में पूछो. उससे मैंने कहा- तुम अभी चलो मेरे घर पर … सब कुछ तुम्हारे सामने ही बोलूंगी, तुम्हें पता लग जाएगा। उसने कहा- नहीं, कल चलूँगा आज नहीं. मुझे अपना मनोबल बना कर तुम्हारे साथ चलना है. अगले दिन हम दोनों घर पर आए तो मेरे पापा ने ही दरवाजा खोला और उसे देखकर पूछा- हेलो धीरज, कैसे हो? तुम्हारी अगली प्रमोशन हो गई या नहीं? मैं तो पूरी सिफारिश करके आया था। उसने पूरे अदब से जवाब दिया और बोला- सर, आपकी मेहरबानी है. वो तो बहुत दिन पहले ही हो चुकी है।
पापा ने कहा- आओ आओ अंदर आकर बात करते हैं. पापा ने उससे पूछा- और सुनाओ कैसे काम चल रहा है. अगर मेरे लायक कोई काम हो तो बताओ. मुझे खुशी होगी करने में तुम जैसे लायक लड़के के लिए!
इतने में मैं बोली धीरज को देखकर बोली- बोलो ना पापा से कि मेरी प्रमोशन तो अब आपके ही हाथ में है. पापा कुछ समझ नहीं पाए और हैरानी से मुझे देखने लगे. फिर उन्होंने धीरज से कहा- बोलो क्या बात है? मगर धीरज अभी झिझक रहा था.
तब मैंने कहा- पापा, यह आपसे कुछ माँगने आया है. पापा ने कहा- अब मैं क्या दे सकता हूँ सिवा इसके कि कम्पनी में कोई सिफारिश करनी हो तो! मैंने कहा- नहीं पापा, यह आपकी लड़की का हाथ माँगने के लिए आया है. यह सुन कर पापा ने मुझसे कहा- तो यही है वो … जिसके लिए तुम आज तक मेरा कहना नहीं मान रही थी?
फिर उन्होंने मेरी मां को आवाज़ लगा कर कहा- सुनाती हो … जल्दी से आओ यहाँ पर! जब माँ आई तो पापा बोले- मुबारक हो, तुम्हाऱी इच्छा पूरी हो गई. इनसे मिलो! धीरज की तरफ इशारा करते हुए बोले- ये हैं तुम्हारी बेटी की पसंद जिसके लिए इसने हमें इतना तंग किया है.
मेरे पापा ने धीरज से कहा- मेरी खुशनसीबी होगी अगर तुम जैसा लड़का मेरा दामाद बने तो. मगर यह रिश्ता तभी पक्का हो सकता है जब तुम्हारे माँ बाप इसके लिए राज़ी हों तो! धीरज ने कहा- ठीक है, मैं कल या परसों ही बुलवा लेता हूँ. मगर सर, वो साधारण तरह से रहने वाले हैं, उन्हें आपके घर पर आने में कुछ झिझक हो सकती है. मेरा पापा ने कहा- जब वो तुम्हारे पास आयें तब मुझे बताना, हम लोग उनसे मिलने के लिए आएँगे.
दो दिन बाद मेरे माँ बाप ने धीरज के मां बाप से मिल कर हमारा रिश्ता पक्का कर दिया.
अब धीरज जो मुझसे हमेशा दूरी बनाकर रखता था मेरे बहुत ही करीब आने लगा। जब भी हम लोग अकेले होते थे वो मेरे गालों को चूम लेता। धीरे धीरे गालों से अब वो मेरे होंठों को भी चूमने लगा। मैं भी उसका उसी तरह से जवाब देती।
एक दिन उसने मेरे मम्मों को कपड़ों के ऊपर से दबा दिया। जब मैंने कुछ विरोध किया तो “क्या करूँ अब ये बेईमान दिल नहीं मानता।” कहते हुए उसने अबकी बार मेरे उभारों को पूरी तरह से सहलाना शुरू कर दिया। मैंने नारी सुलभ लज्जा दिखाते हुए उससे कहा- ये सब ठीक नहीं है, जो करना हो, शादी के बाद करना। जवाब मिला- शादी में तो अभी एक महीना पड़ा है, तब तक कुछ तो करने की इजाजत दे दो।
क्योंकि अंदर से मेरा भी दिल तो करता था कि मैं भी उसकी बाहों में सिमट जाऊं, मैंने कहा- ठीक है मेरे कपड़े उतारे बगैर जो चाहो कर सकते हो. उसने कहा- ठीक है मगर अपनी बात पर कायम रहना. मैंने कहा- मैंने सोच समझ कर ही कहा है और इस पर मैं कायम रहूंगी.
अब वो बिना कपड़े उतारे अपना हाथ मेरी शर्ट के अंदर डाल कर मेरे मम्मों को दबाने लगा और उनकी निप्पल से खेलने लग गया. कुछ देर बाद मैंने कहा- बस अब बंद करो, मुझे कुछ होने लगा है. मैं और सह नहीं पाऊँगी.
अबकी बार उसने मेरी पेंटी के अंदर हाथ डाल कर मेरी चूत पर हाथ फेरना शुरू कर दिया. मैंने उससे कहा- तुम वकीलों की तरह से मेरे शब्दों को ना लो वरना मैं तुमसे शादी से पहले मिलना ही बंद कर दूँगी। तुम जानते हो कि जब मैंने तुमसे कहा था ‘कपड़ों को उतारे बिना’ तो इसका मतलब यह नहीं था कि तुम अपना हाथ कपड़ों के अंदर डालकर जो चाहो करो। तब वो बोला- ठीक है, मगर मुझे डराओ नहीं कि तुम मुझे शादी से पहले मिलोगी भी नहीं. मैंने कहा- अगर इसी तरह से करोगे तो मुझे मजबूरी में करना पड़ेगा. उसने सहम कर कहा- अच्छा बाबा, अब नहीं करूँगा। मगर कपड़ों के ऊपर से तो इज़ाज़त है ना?
इसी तरह से हम लोग एक दूसरे से मिलते वो मेरे बूब्स को कपड़ों के ऊपर से ही दबाता रहा और कई बार टाँगों के बीच भी सहला देता तो मुझे अच्छा लगता। मैं भी उसकी पैन्ट के ऊपर से उसके हथियार को दबा देती थी।
इसी तरह से एक महीना बीत गया और हमारी शादी हो गई। शादी के बाद आखिर हमारे प्रथम मिलन की रात भी आ गई, हमने एक दूसरे से अनेक कसमें वादे किये। वो तो मुझे अपने आगोश में लेने को उतावला था। जब उसके उतावलेपन को मैंने देखा तो उससे कहा- मैं अब पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ ही रहूंगी, क्यों जल्दी मचा रखी है. मैं पूरी तरह से तुम्हें समर्पण कर दूँगी. मगर मुझ से पहले एक वायदा करो कि चाहे कोई कुछ भी कहे, तुम मुझसे पूछे बिना कोई अंतिम फैसला नहीं करोगे जिसमें तुम्हारी और मेरी जिंदगी की बात हो. उसने कहा- यह भी कोई कहने की बात है? मैं जिंदगी में कोई भी फैसला तुमसे बिना सलाह लिए नहीं करूँगा.
उसके बाद उसने मुझे अपने आगोश में ले लिया और मेरे कपड़े उतारने लगा. मेरे अन्दर की हया ने धीरज से कमरे की लाईट बन्द करने का अनुरोध किया। जिसको ठुकराते हुए वो बोला- आख़िर मैं भी तो देखना चाहता हूँ कि मेरे चाँद की रोशनी कैसी है उस पर यह रोशनी पड़कर कैसे लगती है।
अब धीरज मुझे पूरी नंगी करके मेरे मम्मों को दबा दबाकर उसकी घुंडियों को चूसने लगा। मैंने भी बिना शर्माये उसका लंड पकड़ लिया जो पूरे शवाब पर था और अपना जलवा दिखाने को पूरी तरह से तैयार था। कुछ देर बाद वो बोला- सुनो मेरी प्राण प्रिय, अब मैं और तुम मिलकर एक जिस्म बन जायेंगे।
यह कहते हुए उसने अपनी तलवार को मेरी म्यान पर रख दिया और ज़ोर से अंदर डालने की कोशिश की। मगर म्यान का मुँह बहुत छोटा था और तलवार का मुँह बड़ा था मगर तलवार तो फिर तलवार ही होती है उसने जबरदस्ती उसे म्यान में डालने की कोशिश की आखिर में उसकी जबरदस्ती कामयाब हई और म्यान का मुँह फट गया खून बहने लगा और तलवार अंदर जाने लग गई। मै कहती रही- बहुत दर्द हो रहा है, ज़रा धीरे से करो. उसने कहा- बहुत तरसाया है तुमने मुझे, जब भी मैंने तुम्हें ज़रा सा हाथ लगाने की कोशिश की. तुम कभी कुछ और कभी कुछ बोलती रही. आज तो मुझे पूरा अधिकार है तुमसे पूरी तरह से मिलने का … मेरा हर एक अंग तुम्हारे अंग अंग तो भेदता हुआ आज तुमसे मिलेगा.
उसने अपना हथियार पूरा अंदर कर के मुझे अपनी बांहों से जकड़ लिया. फिर उसका शरीर मेरे साथ घमासान करने लग गया. मैं मीठे मीठे दर्द से कराह रही थी। पर आज वो पूरे अधिकार से मुझ पर सवार था। थोड़ी मेहनत के बाद उसने अपना लावा मेरे अन्दर उड़ेल दिया। उसके गरम लावे की एक एक बूंद मेरे अन्दर अंग अंग तक ठंडक पहुंचा रही थी। आखिरी बूंद तक निचुड़ जाने के बाद उसने अपना लंड बाहर निकाला।
उसके बाद हम दोनों ने बाथरूम में जाकर एक दूसरे का अंग अंग अच्छी तरह धोकर साफ दिया और बिस्तर पर आकर फिर से एक दूसरे की बांहों में समा गये। धीरज रात भर मेरा बैंड बजाने के मूड में था। सच यह था कि मेरा दिल भी चाहता था कि जिस चुदाई को मैं महीनों से तड़प रही थी उसकी सारी कसर धीरज आज ही पूरी कर दे।
इस तरह से हम दोनों फिर से एक दूसरे के साथ थे. अबकी बार 69 में होकर हम लोगों ने एक दूसरे को पूरी तसल्ली से चूसा और दोनों का पानी जब निकला तो दोनों ने ही अपने अपने मुँह में लेते हुए पी लिया. इसके बाद उसने मुझे पूरी रात सोने नहीं दिया और मेरे शरीर से अच्छी तरह से खिलवाड़ करता रहा. ऊपर से तो मैं कह रही थी कि अब छोड़ो भी ना … मगर मेरा दिल यही चाहता था कि यह करता ही रहे … करता ही रहे.
जिंदगी की गाड़ी यूँ ही चल रही थी। मेरा पति रोज ही मेरी चुदाई करता रहा मगर कोई बच्चा नहीं ठहरा। आख़िर एक दिन मेरी सास ने मेरे पति से पूछ ही लिया- मुझे पोते या पोती का मुँह कब दिखाओगे? यह सुनकर मुझे लगा कि कहीं ना कहीं किसी ना किसी में तो कोई कमी है। मैंने बिना पति से कहे अपनी जाँच एक डॉक्टर से करवाई तो पाया कि मैं मां नहीं बन सकती। कुछ कमी है मुझमें! जब मैंने डॉक्टर से पूछा कि इसका कोई इलाज तो होगा? तब उसने कहा- जहाँ तक मैं समझती हूँ, बहुत मुश्किल है. हम तुमसे पैसे ऐंठने के लिए तुम्हारा इलाज़ करेंगे मगर कोई परिणाम नहीं निकलेगा.
मेरा दिल टूट गया। जब मैंने धीरज को ये बताया तो वो भी बहुत परेशान हुआ। कुछ दिनों बाद यह बात मेरी सास तक भी पहुँच गई। अब तो वो मेरे पति को मेरे विरुद्ध भड़काने लगी। यहाँ तक की उसको मुझसे तलाक़ लेकर दूसरी शादी करने के लिए भी कहने लगी.
जब मैंने यह सुना तो मैंने अपने पति से कहा- सुनो, अगर तुम चाहो तो मुझे तलाक़ दे सकते हो मैं उसमें कोई रोड़ा नहीं बनूँगी. हां मुझे बहुत अफ़सोस होगा कि मैं तुमसे दूर हो जाऊँगी. मेरे पति ने कोई जवाब नहीं दिया, कुछ भी नहीं कहा. मगर उसकी चुप्पी मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। अब वो मेरे साथ रात को कुछ भी नहीं करता था। मैं भी कुछ नहीं बोल पाती। मैं शर्म के मारे उनसे कुछ नहीं कहती थी कि आओ, मुझे तुम्हारे लंड की ज़रूरत है, मेरी चूत इस का इंतजार कर रही है. पता नहीं वो किस मिट्टी का बना हुआ था, मेरे साथ सोते हुए भी मुझे हाथ भी नहीं लगाता था.
आख़िर मैंने ही फैसला कर लिया कि मैं अब इसके साथ नहीं रहूंगी और रोते रोते धीरज को अपनी बात कह दी। मगर इसका भी उस पर कोई असर नहीं हुआ।
धीरज ने चुपचाप अपनी बदली भी शहर की दूसरी शाखा में करवा ली। अब मुझसे सिवा घर पर मिलने के अलावा और कोई समय नहीं मिलता था और घर पर वो मुझसे कोई बात नहीं करते थे। दुखी होकर एक दिन मैं ही अपने पिता के घर चली आई, उनसे कहा कि मैं कुछ दिन आपके साथ रहना चाहती हूँ.
अभी मुझे पिता के घर आये कुछ ही दिन हुए थे कि मुझे पता लगा मेरी ननद जिसका एक 6 महीने का बच्चा भी था अपने पति के साथ किसी दुर्घटना में चल बसी। दुर्घटना में सारा परिवार परलोक सिधार गया मगर बच्चे को कुछ भी नहीं हुआ, उसे तो एक खरोंच तक नहीं आई. इस हादसे को सुनकर मेरा पति जल्दी से पहुँचा और ननद आदि के अन्तिम संस्कार के बाद उस बच्चे को अपने साथ अपने घर ही ले आया क्योंकि मेरी ननद की आर्थिक दशा बहुत खराब थी, उसके ससुराल में भी कोई ऐसा नहीं था जो बच्चे को संभाल सके.
इस दुःख की घड़ी में मैं भी ससुराल आ गयी. अब छह महीने का बच्चा जो कुछ दिन पूर्व सबकी आँखों का तारा होना चाहिए था, रोड़ा बन गया. दबी ज़ुबान से सब कह रहे थे कि यह भी अगर उनके साथ ही चला जाता तो अच्छा था. अब इसको कौन संभालेगा. मेरी सास और ससुर अपनी उमर को देखते हुए यह ज़िम्मेदारी नहीं ले सकते थे. आखिर यही सोचा गया कि इसे किसी अनाथ आश्रम में भेज दिया जाए.
जब मैंने देखा की यह क्या हो रहा है, तब मैंने सभी से सामने यह कह सुनाया- नहीं, यह बच्चा किसी अनाथ वनाथ आश्रम में नहीं जाएगा. आज से यह मेरे बेटा बन कर रहेगा. मैं कल ही किसी वकील से मिल कर इसे गोद लेने की पूरी क़ानूनी करर्वाही करती हूँ. अगर मेरा निर्णय आप लोगो को पसंद ना आया हो तो भी मैं इसे अपने साथ ही रखूँगी और मैं कोई अलग मकान लेकर इसे पालूंगी. ईश्वर ने मेरी गोद में इसे डाला है अब यह बिन माँ का बच्चा नहीं है, इसकी माँ मैं हूँ. आज के बाद इसे कोई बिन माँ का बच्चा नहीं कहेगा.
मेरी बात सुन कर सब लोग जो वहाँ पर थे, मेरा मुँह देखने लग गये. मेरी सास और ससुर और पति को यकीन ही नहीं हो रहा था जो मैंने कहा था. मेरी सास ने मुझसे सबके जाने के बाद कहा- बहू मुझे नहीं पता था कि मेरे घर पर तुम जैसे बहू आई है. पता नहीं किस जन्म के किए कर्मों का फल ईश्वर ने मुझे दिया है जो तुम जैसे बहू मिली है. इतनी बड़ी ज़िमेदारी एक पल में तुमने ले ली यह जानते हुए भी कि ये बच्चा अभी इतना छोटा है जिसे पालना बहुत मुश्किल होगा. मैंने कहा- मां जी, अगर यह बच्चा मेरा होता और मैं अपनी ननद की जगह मैं होती तो क्या होता? यही सोच कर मैं बहुत डर गई.
क्योंकि घर पर कई रिश्तेदार आए हुए थे मेरी ननद की मौत का सुन कर इसलिए मेरा पति मेरे पास नहीं आया.
दूसरे दिन क्योंकि बच्चा अभी माँ का दूध पीने का आदी था, इसलिए मैंने सुबह सुबह ही किसी दुकान से माँ के दूध का सब्स्टिट्यूड लाकर दूध पिलाया और वो उसे बहुत मज़े से पीने लगा जैसे वो उसकी माँ का दूध हो.
उसी दिन मैंने एक वकील को बुलाकर उससे कहा- इस बच्चे को मैं गोद ले रही हूँ, इसके पूरे क़ानूनी कागज बनवाइए ताकि कभी कोई अड़चन ना आए. इस तरह से मैं अब उस बच्चे में पूरी तरह से खो गई. ऑफिस से मैंने कुछ दिन की छुट्टी ले ली जब तक कि कोई आया पूरे दिन के लिए उसकी देख भाल के लिए ना मिल जाए.
अब मैं अपने पति से कोई खास बात भी नहीं करती थी। बल्कि अगर यह कहा जाए की एक ही छत के नीचे जैसे दो अंजान हस्तियाँ रहती हों, हम ऐसे ही रहते थे।
कुछ दिन बाद रात को सोते हुए मेरे पति ने मेरे मम्मों को दबाया तो मैंने कहा- छोड़ो … बच्चा जाग जाएगा, बहुत मुश्किल से सोया है. यह सुन कर वो बोले- आख़िर बच्चे के अलावा भी तो कोई और है इस घर में! मैंने कहा- वो कोई और तब कहाँ था जब मुझे डॉक्टर ने बताया था कि मैं माँ नहीं बन सकती? मैं तो अब भी वही हूँ, मैं आपको कोई बच्चा भी नहीं दे सकूँगी. इस पर वो बोला- अब ताने मारना छोड़ो. तुम्हें नहीं पता कि मैं किन हालातों से गुज़रा हूँ जब से मुझे तुमने यह सब बताया था. तुमने तो बहुत आसानी से कह दिया कि तुम मुझे तलाक़ देकर कोई दूसरी शादी कर लो. उधर मेरे माँ और बाप तो कितने पुराने ख़यालात के हैं. मैं उनसे कुछ भी कहकर उनका दिल नहीं दुखाना चाहता था और जब तुमने भी कुछ ऐसा बोल दिया तो मुझे अपने आप से ही बहुत घृणा होने लगी. कभी तुमने सोचा था कि जो तुम मुझसे बोल रही हो, उसका मुझ पर क्या असर होगा. मैं कई दिन तक रात को नहीं सो पाया था और अंदर ही अंदर घुटता रहा था. ना मैं तुमसे कुछ कहने लायक था और ना ही माँ बाप से. मगर उस दर्दनाक हादसे और उसके बाद जो तुमने किया वो मुझे बहुत हैरान कर देने वाला था. मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था की तुम ऐसे भी कर लोगी. उसी रात मैंने माँ से कहा ‘माँ, देखा जिसे तुम मुझ से दूर करना चाहती थी, उसने आज तुम्हारी बेटी की बच्चे की बिना किसी झिझक के अपना बना लिया. और एक तुम हो जो मेरी बीवी से मुझको दूर कर रही थी.
यह सब सुन कर मुझे बहुत रोना आया और मैं अपने पति के सीने से लग कर रोते हुए बोली- तुमने मुझे कभी कुछ कहा क्यों नहीं? उसने जवाब दिया- तुम्हारी बात सुनकर मुझे ऐसा लगा था कि शायद तुम भी मुझसे अलग रहना चाहती हो. वरना कोई भी लड़की इस तरह से नहीं कहती. मेरा दिल बहुत टूट गया था. मैंने देखा कि वो भी रो रहा था. मैंने उसकी आँखों के आँसुओं को पौंछते हुए उससे कहा- अब सब भूल जाओ, भगवान ने एक हंसता खेलता बेटा हमारी गोद में डाल दिया है. यह कहकर मैंने उस का लंड जोर से पकड़ कर दबाया और बोली- इसके बिना तुम्हें नहीं पता कि मेरी रातें कितनी मुश्किल से बीती हैं.
उसने एक हाथ को मेरे मम्मों और दूसरे को मेरी चूत पर रख कर बोला- मैं हर दिन इनके बिना कैसे रहता था, मैं ही जानता हूँ. आज भी जब मैंने हाथ लगाया तो तुमने बुरी तरह से झटक दिया. मैंने कहा- नहीं धीरज, मैं तो कई दिन से चाहती थी कि तुम्हारा हाथ इनको जोर जोर से दबाए और तुम्हारा लंड मेरी चूत में जाए … मगर मैं कैसे कहती जब तुम मुझसे बात ही नहीं करते थे. धीरज ने उसी समय अपना लंड निकाल कर मेरी चूत में डाला और मुझे जितनी भी जोर से चोद सकता था चोदा और बोला- कोमल, अब पिछली कसर पूरी निकालनी पड़ेगी. उस रात उसने मुझे चार बार चोद कर मेरी चूत को खुश किया.
जब वो सुबह उठने को हुआ तो मैंने उसे अपने पास खींच कर उस का लंड अपने मुँह में लेकर अच्छी तरह से चूसा, तब तक … जब तक कि उसका पूरा लावा नहीं निकला. मैंने कहा उसको- मैं भी तुम्हें इस काम में निराश नहीं करूँगी. अगर मेरी चूत रोती रही है तो तुम्हारा लंड भी रोता रहा है, अब हम दोनों का ही यह फ़र्ज़ है कि एक दूसरे का पूरा ख्याल रख कर उनको खुश करते रहें.
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