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नमस्कार दोस्तो, मैं ऋषभ द्विवेदी आपका अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज पर स्वागत करता हूं. आप सभी पाठकों को मेरा सादर प्रणाम! सबसे पहले मैं अपने आप के बारे में आपको थोड़ा सा बता दूं, मैं 5 फुट 2 इंच का हूं मेरा नाम ऋषभ द्विवेदी है लेकिन मेरा पेट नेम बाबा है और मेरा लण्ड 5 इंच का है।
यह कहानी मेरे और मेरी मामी के बीच यौन संबंधों पर आधारित है, यह कहानी एकदम सत्य है जो कि मेरे निजी जीवन से जुड़ी है। यह मेरी अंतर्वासना सेक्स स्टोरीज पर पहली कहानी है।
बात उस समय की है जब मैं फैजाबाद में रहकर अपने ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा था मेरे साथ मेरा एक रूम पार्टनर और मेरा अभिन्न मित्र भी मेरे ही रूम पर रहकर मेरे साथ अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा था.
मेरा और मेरे मित्र हम दोनों का ही मन पढ़ाई में बेहद ही कम लगता था, हम लोग वहाँ से मौज मस्ती करते थे, रोजाना शाम को मैंगो शेक पीते थे और लौंडिया ताड़ते थे. हम दोनों का ही मन लड़की बाजी में बहुत ज्यादा लगता था, हम दोनों बस यही सपने देखते थे कब कौन सी माल पटा लें और उसे चोद डालें।
मेरे और मेरे मित्र हम दोनों की नजरें हर एक माल हर एक लड़की और आस पड़ोस की मोहल्ले की हर एक आंटी पर होती थी. जब हम किसी भी हरी-भरी औरत को देखते जिसका बदन थोड़ा गदराया हुआ है, चूतड़ निकले हुए और चूचियां थोड़ी उठी हुई हमारे मन में तुरंत उसके चूतड़ों को लाल करके उसके उरोज को मसल के उसे चोदने के सपने आने लगते, हमारा दिमाग तुरंत सोचने लगता था कि ऐसा कौन सा तरीका है जिससे हम उसकी चूत चोद सकें! काश यह आंटी हमें बुला लेती या किसी तरह हमसे चुदने के लिए तैयार हो जाती!
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और जो मेरा रूम पार्टनर था, वह तो इतना कमीना था कि उसको अगर छोटी सी लड़की भी दिख जाए तो उसको वही पसंद आ जाती थी. मैं अपने दोस्त के नाम यहाँ पर नहीं लेना चाहूंगा लेकिन मैं उसके घर का नाम आपको बताता हूं, उसका घर का नाम दीपक है, वह तन से थोड़ा दुबला पतला है, देखने में थोड़ा कमजोर सा लगता है, सर में बाल भी बहुत कम हैं उसके लेकिन अंदर से वह हवस का पुजारी है. एक तरह से कहें तो वह चुदाई की मशीन है. हम दोनों उस समय फैजाबाद में ही रहते थे, वहीं हम दोनों की दोस्ती भी हुई थी।
तो फैजाबाद में मेरी एक मामी भी रहती थी, मैं हर हफ्ते मामी के यहाँ जाकर उनसे मिलता था. मेरे मामा जो कि एक बिजनेस करते हैं तो वह अक्सर घर से बाहर ही रहा करते थे, तीन-चार दिन पर एक बार आते थे। मैं अपनी मामी के यहाँ अकेले जाया करता था, अपने दोस्त को लेकर कभी उनके यहाँ नहीं गया.
मेरी मामी की एक छोटी बेटी भी थी, मैं जब भी घर जाता था तो उससे भी कुछ देर बातें करता था वह भी मेरे साथ घुल मिलकर बातें करती थी. मेरी मामी भी मेरे साथ बहुत ही दोस्ताना व्यवहार रखती थी.
मामी के बारे में मैं आपको कुछ बता दूं, मामी 40 साल की औरत हैं जिनका भरा हुआ और गदराया हुआ बदन है, किसी भी ऐसे मर्द की नियत उनको देखकर डोल सकती है जिसकी निगाहों में हवस की आग हो. मेरी मामी की बड़ी बड़ी चूचियां हैं और गोल सुडौल मोटे से भरे हुए चूतड़ हैं. उनकी चुचियों का साइज कम से कम 36″ तो होगा ही!
मैं जब भी अपनी मामी से मिलने उनके घर जाता तो वे हमेशा मेरे पास आकर बैठ जाती और कुछ ऐसी हरकतें करती थी जिनसे मुझे थोड़ी सी उत्तेजना महसूस होती, कभी-कभी तो मुझे उन पर शक भी होता था कि कहीं ये मुझसे कुछ चाहती तो नहीं हैं।
मामी कभी कभी अजीब ढंग से कपड़े पहन लेती, कभी अपना गाउन ऐसे पहनती जिससे उनके क्लीवेज मुझे दिखाई पड़े. जब भी मैं उनके को क्लीवेज देखता, मेरे मन में वासना की लहरें उठने लगती, मेरा लंड हिलोरें मारने लगता. मामी की वो बड़ी बड़ी चुचियों की घाटी देख कर लगता कि इन गोलों की गहराइयों में उतर जाऊं, बस मसल दूं, चूस डालूँ मामी की चूचियों को!
फिर मैं अपने आप को शांत कराता कि यह मैं क्या सोच रहा हूँ. लेकिन मुझे क्या पता था कि मामी भी यही चाहती हैं! कैसे? यह आगे आपको पता चल जाएगा।
मेरी मामी जब चलती थी तो उनके वो मोटे मोटे चूतड़ ऐसे डोलते थे जैसे तराजू के दो भरे हुए पलड़े ऊपर-नीचे हो रहे हों, एक आगे भागता तो दूसरा पीछे आता! और उनको देखकर ऐसा लगता कि जैसे मैं कामुकता के सागर में डूबा जा रहा हूं. मेरा मन करता कि जाकर अभी उन्हें दबोच लूं! कसम से दोस्तो… बहुत ही माल चूतड़ थे मेरी मामी के! मेरी मामी का फिगर 36 34 38 ही रहा होगा।
धीरे धीरे मैं मामी के बारे में सोचने लगा कि कैसे उनको चोदूँ! मैं रोज़ अपने रूम पर उनके नाम की मुठ मारने लगा. मुठ मारने की आदत तो मुझे बचपन में ही लग गयी थी, यहाँ तक कि मैंने अपने कई दोस्तों को मुठ मारना सिखाया था, यहाँ तक कि मेरे दोस्त मुझे बाबा(गुरु) बुलाते थे क्योंकि मैं उन सभी में इस काम पे सबसे ज्यादा एक्सपर्ट था।
मेरी मामी की हरकतें भी ऐसी थी कि क्या बताऊँ! एक दिन तो उन्होंने मेरे बगल बैठ कर मुझसे बाते करते हुए मेरी जांघों पट अपना हाथ रख दिया और अपना हाथ फिराने लगी. मेरे लंड में तो जैसे सैलाब आ जायेगा, ऐसा लग रहा था. मेरा लंड एकदम सख्त होकर तंबू बन गया.
मामी की हवस भरी नज़रों ने यह बात नोटिस कर ली थी और वो थोड़ा सा मुस्कुराई भी!
उस दिन मैं यह बात समझ गया कि आग दोनों ही तरफ लगी है, मेरी कामुक मामी पहले से ही मेरा शिकार करना चाहती हैं पर उनको यह नहीं पता था कि मैं भी बहुत बड़ा शिकारी हूँ, मुझे तो तलाश ही रहती थी चूतों की… जो कि अब मुझे मिल चुकी थी, वो भी ऐसी कि जहाँ मैं जब चाहूं तब शिकार कर सकता हूँ. सही बोलूं तो मुझे फैज़ाबाद में एक अड्डा मिल गया था। बस अब इस बात पे मोहर लगानी कि मेरा सोचना सही है, मामी भी चुदासी है.
मैं रूम पे आकर अपने दोस्त दीपक से भी यह डिसकस करता था. वो भी साला कहने लगा कि मेरे लिए तो यह लॉटरी है मुझे मौका चूकना नहीं चाहिए। मेरा दोस्त दीपक भी बहुत कमीना था, उसने भी फैज़ाबाद में एक लड़की फंसा ली थी, उससे वो रात रात भर बातें भी करता था, मेरे दोस्त दीपक को पोर्न फिल्मों का भी बहुत शौक था, वह कभी-कभी तो पूरी पूरी रात पोर्न फिल्में ही देखकर बिताता था।
फिर एक दिन वह हुआ जिसकी मुझे बहुत दिनों से तलाश थी. मैं अपनी मामी के घर मिलने गया, मामा कहीं गए हुए थे तीन-चार दिनों के लिए, मामी हमेशा की तरह मेरे लिए चाय बना कर लाई और मेरे बगल में बैठी, उसके बाद फिर थोड़ा सा झुक कर के बैठ गई. एक बार फिर से उनका क्लीवेज मुझे दिखने लगा, इस बार उन्होंने शायद ब्रा भी नहीं पहन रखी थी. मेरी नजर सीधे उनकी चुचियों की दरार पर पड़ी जो एकदम अनंत गहराई प्रतीत हो रही थी.
मेरा लंड एक बार फिर से हिलोरें मारने लगा और मामी ने भी मेरी उत्तेजना को पहचान लिया था. फिर मामी ने मुझे अपने पीछे-पीछे अपने बेडरूम में बुला लिया, वहाँ पर लाने के बाद उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया और बिस्तर पर लेट कर मुझे अपने ऊपर लिटा लिया.
उन्हें अब मेरा लण्ड चाहिए था, यह मैं समझ चुका था. और मेरे अंदर का भी हैवान और हवस दोनों ही जागकर बाहर आ गये, मुझसे भी अब रहा नहीं गया और मैं भी उन पर टूट पड़ा, उनकी चूचियों को धीरे-धीरे दबाने लगा, उनको भी मजा आ रहा था, वे तो पहले से ही इसकी तलाश में थी.
मामी ने भी मुझे चूमना शुरू कर दिया, हम दोनों ने एक दूसरे को एक लंबा किस किया. उसके बाद मैंने उनका गाउन उतार दिया. मेरे सामने जो नजारा था वह मेरे अनुमान क्षमता के बाहर था, क्या मोटी मोटी चूची थी उनकी… और चूत तो उनकी ऐसी फूली हुई थी जैसे कि डबल रोटी!
मैंने तो बस अपना काम शुरू कर दिया, मैं अपना होश खो बैठा और मैं मामी की चुचियों की गहराई में उतर गया, उनको मन भर कर दबाने लगा, चूसने लगा. और कुछ देर के बाद मैं मामी की चूत की तरफ बढ़ा, मैं मामी डबल रोटी जैसी चूत को चूसने लगा, अपनी जीभ से चाटने लगा.
फिर मैंने अपनी जीभ मामी की चूत में डाल दी, वो एकदम से तड़प उठी और उनकी चूत से मानो सैलाब आने लगा. हालांकि उनका पानी बहुत मीठा था.
इसके बाद अब मामी की बारी थी, मेरी मामी ने मुझ को नीचे पटक दिया और मेरे ऊपर चढ़ गई और अपनी मोटी मोटी चूची से मेरे मुंह पर मारने लगी उनका बस चलता तो अपनी पूरी पूरी चूची मेरे मुंह के अंदर ही समा देती.
उसके बाद मामी ने मेरे लण्ड को चूसना शुरू किया और पूरा पूरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया. मुझे तो परम आनंद आ रहा था.
कुछ देर तक ऐसा होने के बाद एक बार फिर से अब मेरी बारी थी और मैं अपनी नंगी मामी के बदन के ऊपर था. इस बार मैंने अपना लंड निकाला और सीधा मामी की चूत में डाल दिया जो कि चूत के रस से एकदम गीली हो चुकी थी. मेरा लंड भी बिना देरी करते हुए मामी की चूत में दनदनाता हुआ अंदर पूरा का पूरा घुस गया।
अब मैं अपनी मामी की चूत को चोदने लगा, मैं शॉट पर शॉट लगा रहा था और मामी मेरे मुंह को पकड़कर अपनी चुचियों की तरफ खींच रही थी और कह रही थी- ओह ऋषभ बेटे, मेरी चूचियों का सारा रस निकाल दो, बहुत तड़पती हूं मैं… तुम्हारे मामा से तो कुछ हो ही नहीं पाता! मेरी आग अब तुम्हें ही बुझानी है! चोदो मुझे ऋषभ… चोदो अपनी रानी को!
उनके मुँह से आवाजें निकल रही थी- आह उम्म्ह… अहह… हय… याह… आह उह ओह… अम्म… और चोदो यस… चोदो मुझे… फाड़ दो मेरी चूत… आज बहुत प्यासी है ये… फाड़ दो इसे! लेकिन मैं कुछ ही देर में झड़ चुका था शायद ये मेरी बचपन से की गई मुठ की गलतियों का परिणाम था.
लेकिन मामी को इस बात अंदाज़ा नहीं हुआ था कि मैं झड़ चुका हूँ और मैंने भी अपनी पंडित बुद्धि का इस्तेमाल किया और मैं झूठ ही उनकी चूत पे कूदने लगा फिर मैंने अपनी उंगली डाल दी और उसी से मामी को झड़वा दिया.
उस दिन मुझे अपनी मर्दाना कमज़ोरी का भी एहसास हुआ, शायद यही मेरे मामा के साथ भी होगा जो मामी को मुझमें एक ताकतवर लंड की तलाश करनी पड़ी. लेकिन यहाँ भी उन्हें वो नहीं मिल सका. पर मेरी किस्मत खुल गयी, उस दिन से मैं मामी से जल्दी जल्दी मिलने लगा और जब जब मिलने जाता तब मामी को चोद के आता. कभी कभी मैं मामी के यहाँ ही रुक जाया करता था.
एक दिन तो मैंने उनकी गांड भी मारी पर जैसे ही मैंने अपना लंड मामी की गांड में डाला, वो दर्द से चिहुँक उठी और मना करने लगी, कहने लगी- नहीं ऋषभ, गांड फट जाएगी, रहने दो प्लीज! उनको पाइल्स की बीमारी थी जो कि अब मुझे भी है तो उन्होंने गांड चोदने दी नहीं. पर फिर भी मैंने उनके गांड के गोलों पे के थप्पड़ बरसाये।
मेरी ज़िन्दगी के मजे देख के जलन भी हो रही थी दीपक को… कि मैं पूरे मज़े ले रहा हूँ जीवन के… वो भी फ्री में! लेकिन मैं तो मज़े में था मुझे क्या करना था।
लेकिन एक दिन मेरे दोस्त दीपक की बददुआ काम कर गयी, एक दिन मैं और मामी बेडरूम में चुदाई का खेल शुरू ही करने वाले थे कि उनकी बेटी आ गयी उसने हमको देख लिया और नाराज़ हो के अपनी सहेली के घर चली गयी. उस दिन भी मैंने और मामी ने खूब चुदाई करी, मेरी तो जान ही निकल जाती थी, मामी में बहुत दम था।
जब उनकी बेटी वापिस आयी तो मैंने उसे समझाने की कोशिश की क्योंकि मैं उसे भी चोदना चाहता था. पर मैं ये भी नहीं चाहता था कि मामी को इसका पता चले और काम बन भी जाता! पर मामी की हवस ने सब बिगाड़ दिया.
उसके बाद भी मैं अपनी मामी की बेटी के पीछे लगा रहा. पर मामी को इस बात का पता चला गया और फिर एक दिन मैंने उनसे अपनी जरूरत के चलते कुछ पैसे की मांग की तो वो भड़क गई और मुझे लात मार के अपने घर से निकाल दिया और कहा- अब कभी मत आना यहाँ! शायद मामी ने अपने लिए कोई नया लंड खोज लिया था।
तो प्रिय पाठको, आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी आप मुझे ईमेल के जरिये जरूर बताएं। आपका ऋषभ द्विवेदी [email protected]
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