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मम्मी मुझे खाना खिलाने लगी। उनके हाथों से खाते हुए मुझे मेरा बचपन याद आ गया जब मम्मी रोज सुबह शाम अपने गोद में बिठाकर खाना खिलाती थी। मेरी आँखों से आंसू बहने लगे।
“तू क्यों रो रही है पगली… अब तुम्हें रोने की जरूरत नहीं। अब मैं तुम्हें हमेशा मुस्कुराते हुए देखना चाहती हूं!” “आज बरसों बाद आपके हाथ से खाना खाकर मैं अपनी ख़ुशी संभाल नहीं पा रही हूँ मम्मी… मुझे बचपन के दिन याद आ रहे हैं।”
मम्मी मेरे आँसू पौंछती हुई मुझे खाना खिलाती रही, मैं भी मम्मी को अपने हाथों से खाना खिलाती रही।
खाने के बाद मैं वापस मम्मी के रूम में आ गयी और उनकी गोद में सर रख कर बातें करने लगी। बातें करते हुए कब आँख लग गयी मैं जान नहीं पायी।
अचानक पापा की जोरदार आवाज़ से मेरी आँख खुली। वो दरवाज़े पर खड़े थे और गुस्से से मुझे घूर रहे थे- पिंकी तुम यहाँ क्या कर रही हो… तुम्हें डर नहीं लगा इस पागल औरत के पास आने में? “मम्मी पागल नहीं है… ये बहुत अच्छी हैं। आज इन्होंने मुझे अपने हाथों से खाना खिलाया।” “क्क्या… तुमने इसके हाथ से खाना खाया… बेवक़ूफ़ लड़की, यह औरत तुमसे नफरत करती है कल को तुम्हारे खाने में ज़हर भी मिला सकती है। तुम्हें इसके साये से भी दूर रहना चाहिये… उठो यहाँ से और अपने रूम में जाओ!”
मैंने मम्मी को देखा, उनकी आँखों से चिंगारियाँ निकल रही थी। ऐसा लगता था जैसे वो पापा को अपनी नजरों से ही जलाकर भस्म कर देना चाहती हों। नहीं… पापा, आज मैं मम्मी के साथ सोऊँगी।” मैं शांत स्वर में बोली। “नहीं… नहीं, पिंकी मैं तुम्हें ऐसी गलती करने नहीं दूँगा।” वो बोले और अंदर आकर मेरा हाथ पकड़ कर खींचने लगे। मम्मी ने मुझे रोकने के लिए मेरा दूसरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचने लगी।
मैंने मम्मी को देखा, वो पीड़ा और उम्मीद भरी नज़रों से मुझे ही देख रही थी। उनकी नज़र मुझसे फरियाद कर रही थी, मुझे पापा के साथ जाने से रोक रही थी। अपने पापा का हाथ झटक दिया मैंने- पापा, आज मैं मम्मी के साथ सोऊँगी, चाहे कुछ भी हो जाए… मैं मम्मी को छोड़कर नहीं जाऊँगी।
पापा ने कोई जवाब नहीं दिया… बस आगे बढ़े और मुझे अपने मजबूत बाँहों में उठाकर रूम से बाहर जाने को मुड़े। मम्मी ने पापा की यह हरकत देखी तो झटके से बिस्तर से उठ खड़ी हुई और लपक कर पापा के पास चली गई। मम्मी अपनी पूरी शक्ति लगाकर मुझे पापा से अलग करने की कोशिश करने लगी।
पापा को मम्मी पर ग़ुस्सा आ गया उन्होंने एक जोर का धक्का मम्मी को दिया। मम्मी वापस बेड पर आ गिरी। जब तक मम्मी उठती पापा रूम से बहार निकल चुके थे।
वो मुझे मेरे रूम के अंदर ले आये और दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। मुझे बिस्तर पर पटक कर मुझ पर टूट पड़े, एक एक करके मेरे शरीर से सारे कपड़े नोच डाले फिर खुद भी नंगे हो गये। मुझे पापा का व्यवहार आज बहुत बदला हुआ लग रहा था। वो मुझसे चिपक कर मुझे चूमने चाटने लगे। मैं विरोध करती रही।
पापा ने मेरी टाँगों को फैलाकर अपना मुंह मेरी चूत पर रख दिया, अपनी चूत पर उनकी जीभ का स्पर्श पाते ही मेरी सारी अकड़ ढीली पड़ गई। पापा कुत्ते की तरह मेरी चूत चाट रहे थे। मैं सिसकारी भरते हुए एक ही शब्द बड़बड़ाये जा रही थी- पापा तुम गंदे हो।
मेरी सिसकारियों के बीच मम्मी की आवाज़ भी सुनाई पड़ रही थी। वो कभी गुस्से में बंद दरवाज़े को ठोकर मारती तो कभी खिड़की के पास से गन्दी गन्दी गालियाँ बकती। लेकिन पापा के साथ अब मैं भी उनकी आवाज़ को अनदेखा कर रही थी।
पापा की जीभ मेरी चूत की गहरायी में घुस कर हलचल मचा रही थी और मैं सिसकारी भरते हुए उनके सर को अपनी चूत पर दबाती जा रही थी।
कुछ देर पापा अलग हुए और अपना लंड मेरे मुंह के पास ले आए… मैं बिना समय गंवाये लंड को मुंह में भरकर चूसने लगी। मम्मी खिड़की से ये सारे नज़ारे देखकर पागलों की तरह चीख़ रही थी।
कुछ देर लंड चुसवाने के बाद पापा मुझे डॉगी स्टाइल में करके मेरे पीछे आ गये। फिर मेरी गांड में थूक लगा कर अपना मोटा लंड गांड की छेद में रख कर दबाव बढ़ाने लगे। दबाव पड़ते ही उनके लंड का टोपा मेरी गांड में घुस गया। मैं दर्द से हल्का कराही। फिर पापा मेरे बूब्स को मसलने लगे… बूब्स को मसलते हुए उन्होंने एक जोरदार शॉट मारा और अपना लंड एक ही धक्के में जड़ तक मेरी गांड में घुसा दिया।
“आह्ह… पापा…” मैं दर्द से चीख पड़ी। मेरी आवाज़ बाहर मम्मी के कानों तक भी चली गयी थी। दरवाज़े पर उनकी ठोकर अचानक तेज हो गयी। साथ ही पापा की ठोकर मेरी गांड में अचानक तेज हो गई, वो पागलों की तरह सटासट मेरी गांड मारते रहे। उन्हें मेरी चीखों और मम्मी की गालियों ने और क्रूर बना दिया था।
लगभग 5 मिनट तक वो मेरी गांड से चिपके रहे फिर उनका गर्म लावा मुझे अपनी गांड में गिरता महसूस हुआ। अपनी सारी गन्दगी मेरी गांड में छोड़ने के बाद पापा अलग हुए और कपड़े पहन कर रूम से बाहर निकले।
मैं बिस्तर पर बैठी कराहती हुई धीरे धीरे अपने कपड़े पहनने लगी।
पापा जैसे ही दरवाज़ा खोलकर बाहर निकले, उनकी दर्द भरी चीख़ मेरे कानों से टकरायी… मैं फुर्ती से कपड़े पहन कर बाहर निकली… बाहर निकलते ही जो नजारा मैंने देखा, मेरी आँखें भय से बाहर उबल पड़ी। पापा ज़मीन पर गिरे पड़े थे और मम्मी अपने हाथों में सब्जी काटने वाला चाक़ू उनके शरीर पर बरसाती जा रही थी। मम्मी बिल्कुल होश में नहीं लग रही थी, वो पापा के पूरे शरीर को चाक़ू के वार से छलनी कर चुकी थी।
मम्मी का यह भयानक रूप देखकर मैं डर से थर थर काँपने लगी, फिर एक कोने में जाकर बैठ गई।
उसके बाद मुझे कुछ भी होश नहीं रहा… कब पुलिस आयी कब पंचनामा हुआ। जब मुझे होश आया तो मैं हॉस्पिटल में थी। मेरी मानसिक स्थिति सही नहीं थी इसलिए मुझे डॉक्टर्स की देखभाल में रखा गया था। वहीं मुझे पता चला कि माँ को पुलिस ने जेल में डाल दिया है।
कुछ दिन हॉस्पिटल में रहने के बाद मैं उब गयी… मेरे शरीर मरदाना स्पर्श के लिए तड़पने लगा। दस दिन में ही मैं व्याकुल हो गयी और एक दिन हॉस्पिटल से भाग निकली। हॉस्पिटल से निकल कर छुपते छुपाते मैं पहले अपने घर गयी वहां कुछ देर मम्मी पापा के कमरों में बैठी रही फिर बाहर निकली किसी ऐसे इंसान की तलाश में जो मेरे पिता की कमी दूर कर सके। मुझे उस दिन पिता के प्यार की उनके स्पर्श की बहुत तलब हो रही थी। उसी दिन जब मैं हाईवे में खड़ी थी तो इन अंकल की गाड़ी आयी। इनको देखते ही मेरे मन की मुराद जैसे पूरी हो गयी। मैं बिना देर किये जबरदस्ती इनकी गाड़ी में घुस गयी उसके बाद क्या हुआ ये सब आप जानते हैं।
पिंकी ने अपनी बात पूरी की।
सब कुछ सुनने के बाद डॉक्टर खड़ा हुआ और चहलकदमी करने लगा।
कुछ देर तक सिगरेट फूंकने के बाद डॉक्टर मुझे लेकर रूम के अंदर गये. “कहिये डॉक्टर क्या बात है… आप मुझसे अकेले में क्या कहना चाहते हैं?” मैंने बेचैन होकर पूछा। “रोहित जी, अगर आप चाहते हैं कि पिंकी सामान्य जीवन जिए तो आपको उससे शादी करनी होगी।” डॉक्टर गम्भीर होकर बोला- मैं ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि यह इंसानियत के नाते आपका कर्त्तव्य है… बल्कि इसलिए भी कह रहा हूँ कि पिंकी का इलाज़ आपके अलावा किसी भी डॉक्टर्स या इंसान के पास नहीं है।
“यह आप क्या कह रहे हैं डॉक्टर… म…मैं भला पिंकी से शादी कैसे कर सकता हूँ? उसकी उम्र का तो मेरा एक बेटा है। लोग क्या कहेंगे?” “लोगों की चिंता छोड़िये… उन्हें जवाब देने के लिए मैं हूँ। किसी इंसान की दम तोड़ती ज़िन्दगी को सहारा देना कोई गलत नहीं रोहित जी! और फिर आप भी अकेलेपन का जीवन जी रहे हैं। और यह भी मत भूलिये कि आपने उसके साथ रात भी गुजारी है।”
“लेकिन डॉक्टर…?” मैं कुछ कहते कहते रुका। “रोहित जी ज़्यादा मत सोचिये… वो बहुत दुखी लड़की है… उसके साथ बहुत बुरा हुआ है। हम इंसान सिर्फ खाने कमाने के लिए इंसान नहीं कहे जाते हैं… इंसानियत के काम आना ही इंसान की सही पहचान है। और फिर वो आप में अपने पिता की छवि देखती है। आप मेरी बात मान लीजिये… इसमें आप दोनों का भला है।”
“ठीक है, जैसा आप कहेंगे, मैं करने को तैयार हूँ। लेकिन उसने फिर से मुझ पर जानलेवा हमला किया तो?” मैंने घबराकर पूछा।
“सिर्फ एक बात का ध्यान रखना है रोहित जी… बस यूँ समझ लीजिये कि वो एक छोटी बच्ची है और आपको उसकी हर बात प्यार से माननी है। जब उसकी खाने की इच्छा हो तो उसे खुद से खाना खिलायें… जब उसे सेक्स की इच्छा हो, तभी उसके साथ सेक्स करें और वो भी प्यार से जैसे कि उसके पिता शुरू में उसके साथ करते थे। धीरे धीरे उसकी जिन्दगी सामान्य होती चली जाएगी।”
“उसके ठीक होने में कितना समय लगेगा डॉक्टर?” “6 महीने या ज़्यादा से ज़्यादा एक साल या फिर उसके माँ बनने तक… जैसे ही वो माँ बनेगी, वो पूरी तरह से ठीक हो चुकी होगी। बस तब तक मेरी बातों का ध्यान रखें।” “ओके डॉक्टर…” मैंने हामी भरी। “आइये अब बाहर चलें।”
हम दोनों बाहर आये तो पिंकी वैसे ही सोफ़े पर बैठी किसी सोच में डूबी हुई थी। दोनों उसके पास पहुंचे। “पिंकी… क्या सोच रही हो।” डॉक्टर ने पूछा। “मम्मी की याद आ रही है… पता नहीं वो कैसी होगी!”
“तुम फ़िक्र मत करो!” डॉक्टर उसके काँधे पर हाथ रखते हुए बोले- हम कल तुम्हारी मम्मी से मिलने चलेंगे। “क्या सच में आप मेरी मम्मी से मिलाने ले जाएंगे?” वो खुश होते हुए बोली। “हाँ और तुम्हारी बीमारी भी नार्मल है। बस तुम्हें एक काम करना होगा।” “आप जो कहेंगे मैं करूँगी डॉक्टर… आप बस एक बार मुझे मम्मी से मिला दीजिये।” “हम कल तुम्हारी मम्मी से जरूर मिलेंगे। लेकिन उससे पहले मैं तुम्हारे सामने एक प्रस्ताव रखना चाहता हूँ… अगर तुम मुझ पर भरोसा करती हो तो रोहित से शादी कर लो। ये बेचारे अकेले हैं।”
“शादी…” पिंकी ने आश्चर्य से डॉक्टर को देखा। उसकी आँखें ख़ुशी से डबडबा गई। उसने तो कभी सोचा भी नहीं था कि उसकी हक़ीकत जानने के बाद कोई उससे शादी भी कर सकता है। “हाँ… ये तुम्हें बहुत प्यार करते हैं। इनका एक बेटा भी है जो बाहर पढ़ाई कर रहा है। तुम इनके घर हमेशा खुश रहोगी। तुम पूरे अधिकार से जो चाहिए इनसे माँग सकती हो।” “आप जैसा कहेंगे, डॉक्टर मैं करने को राज़ी हूं।”
“ठीक है, तो पहले हम कल सुबह मंदिर में जाकर शादी का कार्यक्रम निपटायेंगे। फिर तुम्हारी मम्मी के पास जाएंगे। वहीं तुम अपनी मम्मी से मिल भी लेना और आशीर्वाद भी ले लेना। तुम्हें दुल्हन के रूप में देखकर तुम्हारी मम्मी बहुत खुश होंगी।” “मैं आपका ये एहसान कभी नहीं भुला सकूँगी।” पिंकी ने डॉक्टर से कहा।
“अगर तुम किसी की गुणगान करना चाहती हो तो रोहित जी की करो! अगर इन्होंने मुझे न बुलाया होता तो ये सब न होता! तुम हमेशा इनका साथ निभाना।”
कुछ देर बाद डॉक्टर वहां से बाहर निकल गया। अगले रोज़ हम तीनों मंदिर पहुंचे। पुजारी ने पिंकी और मेरी शादी करा दी। शादी सम्पन होने के बाद हम तीनों जेल पहुंचे और वहां पिंकी की मम्मी से मुलाकात की, फिर मैंने और पिंकी ने उनसे आशीर्वाद भी लिया। अपनी बेटी को दुल्हन के रूप में देखकर सच में उसकी आँखें ख़ुशी से भीग गयी।
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