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भाई बहन की चुदाई की कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे मौका मिलते ही मेरा भाई समर हम दो बहनों सर मुसल्लत हो जाता है और पहले पानी से भीगे गलियारे और फिर बाथरूम में खेल करता है और हम बुरी तरह गर्म हो जाते हैं। अब आगे पढ़िये..
“अब थोड़ा कड़वा तेल ले आओ और बाथरूम में चलो।” आखिरकार वह उठता हुआ बोला।
अब यह कड़वा तेल पता नहीं क्या करेगा.. यह सोचती मैं ही उठी और किचन में घुस गयी। वहां सरसों के तेल की शीशी मौजूद थी और मैं उसे ही ले आई, जब तक वे दोनों भी उठ चुके थे। हम बाथरूम में आ गये।
बाथरूम में एक सिटकनी वाली थोड़ी दिक्कत छोड़ दो वह काफी बड़ा था और आज तो वैसे भी सिटकनी की जरूरत नहीं थी। उसने शॉवर चालू किया तो हम तीनों फिर नहा गये।
फिर उसके कहने पर हमने अपने शरीरों पर तेल चुपड़ लिया और इसके बाद जो खेल हुआ वह तीनों की चिंगारियाँ छुड़ाने के लिये काफी था।
तेल पानी के साथ बुरी तरह चिकनाये शरीर लिये हम बुरी तरह एक दूसरे को रगड़ने लगे। कभी मैं उसका लिंग चूसने लगती, कभी वह और अहाना मेरे दूध मसलने और चूसने लगते, कभी वह नीचे मुंह डाल कर कभी मेरी, कभी अहाना की योनि चाटने लगता।
जल्दी ही हम तीनों सुलगने लगे। फिर दीवार से टेक लगा कर वह नीचे बैठ गया और अपने लिंग को तेल से नहला लिया।
“पता नहीं राशिद ने तुम लोगों की गांड मारी या नहीं, लेकिन आज मैं पहले वही मारूंगा.. ताकि आगे की आग बरकरार रहे और दर्द के बावजूद तुम लोग मरवा लो।” उसने पहले अहाना को खींचते हुए कहा। “भक.. आगे से कर न। क्यों गंदे छेद के चक्कर में पड़ा है।” अहाना ने कमजोर सा प्रतिरोध किया। “गंदा छेद? हे हे हे हे.. दो लौंडों की मार चुका हूँ। उसका मजा अलग ही होता है बे… गंदा क्या.. मारने के बाद धो लेंगे न।”
प्रतिरोध मैं भी करना चाहती थी लेकिन यह अहसास था कि चलनी उसकी ही थी तो खामखाह पें-पें करने का कोई मतलब भी नहीं था। “रज्जो.. तू बैठ के यहीं देख, तेरी देख-देख के गीली हो जायेगी और मुनिया मांगने लगेगी।” उसने बेशर्मी से हंसते हुए मुझे भी पास बिठा लिया।
मैं उसके पास उससे सट कर बैठ गयी। हम दोनों ने पैर सीधे फैला रखे थे और उसने अहाना को औंधा, मतलब पेट के बल हमारी जांघों पे ऐसे लिटाया कि अहाना का कमर के ऊपर का हिस्सा मेरी जांघों पर आया और नीचे का, या यूँ कहो कि उसके चूतड़ समर की गोद में आये।
“देख छेद इसका!” समर ने मुझे कोहनी मारते हुए कहा। उसने तेल से चिकनाये चूतड़ फैला कर मुझे अहाना का चुन्नटों भरा गहरे रंग का छेद दिखाया, जो अंदर लाल हो रहा था। पहले उसे यूँ ही एक उंगली से सहलाया फिर उसमें शीशी के ढक्कन में तेल लेकर उड़ेल दिया। थोड़ा तेल कटोरी की तरह ऊपर रुका तो थोड़ा अंदर उतर गया।
फिर उसने मुझसे कहा कि मैं उसके चूतड़ों की दरार फैलाये रखूं कि छेद सामने उभरा रहे और वह खुद एक उंगली से छेद को खोदने लगा।
ऊपर दिखता तेल भी अंदर उतर गया।
फिर धीरे से उसने अपनी बीच वाली उंगली एक पोर अंदर उतार दी। अहाना जोर से ‘सी…’ कर उठी, जबकि वह बेशर्मी से हंसने लगा- अभी देखना कैसा मजा आने लगेगा। उसने एक ही पोर अंदर बाहर करना शुरू किया धीरे-धीरे.. मैं यह देख सकती थी कि हर बार वह उंगली एक सूत ज्यादा धंसा देता था और देखते-देखते अब उसकी पूरी उंगली अंदर बाहर होने लगी थी। और अहाना इस तरह ‘सी… सी…’ कर रही थी जैसे उसे अब मजा आने लगा हो।
“क्यों अन्नू.. अब मजा आ रहा है न?” उसने दूसरे हाथ को नीचे ले जा कर मेरी गोद में मौजूद दूध मसलते हुए पूछा। “हं-हां।” “बस ऐसे ही लंड से भी आयेगा, थोड़ा छेद ढीला हो जाये बस।” “करो कैसे भी.. अब अच्छा लग रहा है।” यह सुन कर मेरे छेद की सलवटों में मसमसाहट होने लगी।
उसने ढक्कन से भर कर और तेल छेद में उड़ेला और एक पूरी के साथ दूसरी उंगली भी थोड़ी-थोड़ी घुसाने लगा। अहाना ने भी इसे महसूस कर लिया था इसलिये अब उसकी सीत्कारें ठंडी पड़ गयी थीं।
शायद वह दर्द के साथ एडजस्ट करने की कोशिश कर रही थी.. और उसकी एडजस्टमेंट देख समर ने बाकायदा दोनों उंगलियां पूरी उतार दीं।
फिर पहले कुछ देर तो मुझे भी लगा कि छेद सख्त है और उंगलिया पूरे कसाव में अंदर जा रही हैं लेकिन धीरे-धीरे वह भी आसानी से अंदर बाहर होने लगीं।
अहाना फिर “सी… सी…” करने लगी थी।
जब उसकी दोनों उंगलियां तेजी और सुगमता से चलने लगीं तो उसने अहाना को हटा दिया। “अब तू आ.. तेरा छेद ढीला करता हूँ।”
मैंने महसूस किया जैसे मैं यह शब्द सुनना चाहती थी… जैसे मैं अपनी बारी आने के लिये मानसिक रूप से खुद ही तैयार थी कि कब वह कहे और कब मैं उसकी गोद में औंधी लेट जाऊं।
मेरी जगह अहाना ने ले ली थी और मैंने अपना चूतड़ वाला हिस्सा समर की गोद में टिका कर दूध वाला हिस्सा अहाना की गोद में रख लिया था।
फिर मेरे साथ भी वही हुआ और जिस घड़ी उसने एक उंगली मेरे छेद में उतारी तो एकदम बेहद हल्के से दर्द का अहसास तो जरूर हुआ लेकिन फौरन ही मजा भी आने लगा। जल्दी ही मैंने उसकी दोनों उंगलियों को आत्मसात कर लिया और मजा लेने लगी।
अहाना की मनःस्थिति क्या थी, पता नहीं लेकिन मैंने दिमाग में यह बिठा लिया था कि मलत्याग में भी जब कभी पैखाना टाईट होता है तो उतनी मोटाई में तो मल निकलता ही है जितनी उसके लिंग की थी.. तो मतलब उतना फैल ही सकता था।
यानि अगर दर्द होता भी तो बर्दाश्त के लायक ही होगा और जब अभी उंगलियों के अंदर बाहर होने पे मजा आ रहा था तो लिंग के अंदर बाहर होने पे क्या न आयेगा। छेद उसके हिसाब से ढीला हो चुका तो उसने मुझे उठा दिया।
“अब बताओ.. पहले कौन डलवायेगा?” “मेरी मारो.. मैं अभी एकदम गर्म हूँ। अहाना को फिर से गर्म कर के तब डालना।” मैंने खुद आगे बढ़ कर मौका ले लिया।
“ठीक है.. देख मैं ऐसे ही बैठा हूँ। तू मेरी तरफ पीठ कर के मेरे लंड पर ठीक वैसे ही बैठ, जैसे हगते में बैठती है और अन्नू.. तू सामने से लगी रह और अपने हाथ से इसकी चूत का दाना सहलाती रह ताकि इसकी गर्मी बरकरार रहे।”
उसके बताये मुताबिक मैं अपनी पीठ उसके पेट से सटाते उस पर लगभग शौच की पोजीशन में बैठ गयी। मेरी गुदा का छेद उसके लिंग की टोपी पर टिक गया। अहाना मेरे एकदम सामने मुझसे लगभग चिपकी हुई बैठ गयी एक हाथ से मेरे इस कंधे से उस कंधे तक दबाव बनाती, दूसरे हाथ से मेरी योनि के ऊपरी सिरे को सहलाने लगी, योनि के छेद में उंगली करने लगी। मेरे दिमाग में फुलझड़ियां छूटने लगीं।
समर ने पीछे से मेरी कमर पर दबाव बना लिया था और मुझे नीचे बिठाने लगा था.. मैं खुद भी नीचे बैठने पर जोर लगा रही थी, लेकिन लगता था उसके लिंग की कैप जैसे फंस गयी हो।
फिर लगातार दबाव की वजह से चुन्नटें एकदम फैल गयीं और “गच” से टोपी अंदर धंस गयी। मेरी एकदम चीख निकल गयी और दर्द की एक तेज लहर उठी। मैंने वापस उठना चाहा लेकिन अहाना ने ऊपर से दबा दिया और समर ने नीचे से दबा लिया। मेरे एकदम से आंसू छलक आये- छछ-छोड़ दो… बहुत दर्द हो रहा है। मैंने कसमसाते हुए कहा।
“पहली बार में दर्द तो होता ही है.. क्या आगे में दर्द नहीं हुई थी, लेकिन फिर मजा आया था न? उसी तरह इसमें भी आयेगा.. थोड़ा सब्र तो करो।”
बचने की कोई सूरत न देख मैंने खुद को शिथिल छोड़ दिया और पहले जो बस टोपी ही अंदर धंसी थी, वहीं खुद को ढीला छोड़ने से पूरा ही अंदर चला गया।
जब समर ने जान लिया कि मैं निकलने की कोशिश नहीं करूँगी तो उसने अहाना को कहा कि वह मेरा एक दूध मसलते हुए दूसरे हाथ से मेरी योनि में उंगली से चोदन करे, जबकि खुद उल्टे हाथ से मेरा दूसरा दूध मसलते सीधे हाथ से योनि के ऊपरी सिरे को सहलाने लगा।
थोड़ी ही देर में उत्तेजना का पारा वापस चढ़ने लगा और यह ख्याल भी निकल गया कि उसका लिंग मेरी गुदा में ठुंसा हुआ था। “हम्म.. अब करो।” मैंने समर की जांघ थपथपाते हुए इशारा किया। “मैं बाद में करूँगा.. अभी तुम करो। ऊपर नीचे हो।”
मैंने ऊपर नीचे होना शुरू किया। पहले थोड़ी जलन महसूस हुई और कुछ-कुछ अहसास इस बात का भी हो रहा था कि जैसे पोट्टी का दबाव हो लेकिन धीरे-धीरे इन पर लज्जत का अहसास भारी पड़ गया और नीचे होने पे जब मेरे चूतड़ उसके बाल भरे पेट के निचले हिस्से से टकराते तो अलग ही मजा आता।
हालाँकि यह पोजीशन मेरे लिये सुविधाजनक नहीं थी और मैं जल्दी ही थक गयी। थक गयी तो उसने मुझे हटा दिया और अहाना को बिठा लिया। अहाना के साथ भी सेम प्रक्रिया दोहराई गयी और उसे भी सब ठीक वैसा ही महसूस हुआ जैसा मुझे हुआ था। फिर वह भी थक गयी तो हम उठ खड़े हुए।
अब चूँकि बाथरूम के सख्त फर्श पर कोई ऐसा आसन तो आजमाया नहीं जा सकता था, जिसमें घुटने इस्तेमाल होते हों.. इसलिये बेहतर बस यही था कि हम नलके को पकड़ कर झुक गये और उसने खड़े-खड़े पीछे से भोगना चालू कर दिया।
करीब आधे घंटे तक वह हम दोनों से उसी अंदाज में बारी-बारी गुदामैथुन करता रहा।
इसमें फिलहाल कोई आर्गेज्म की गुंजाइश तो नहीं थी लेकिन यह भी सच था कि मजा भरपूर आया था, हालाँकि बाद में हम दोनों के छेद सूज गये थे और यहां तक कि पोट्टी करने में भी तकलीफ हुई थी और कई दिन तक दर्द रही थी।
बहरहाल, आधे घंटे के बाद उसने अहाना की गुदा में अपना सफेदा उगल दिया और ढीला हो कर वहीं पड़ गया। जबकि अहाना के छेद से धीरे-धीरे बह कर उसका वीर्य पड़े रहने तक बाहर आता रहा।
फिर हम कायदे से नहाये और बाथरूम साफ करके बाहर आ गये।
वह कहीं चला गया और हम खा पी कर आराम करने लग गये। पता तो था ही कि शैतान अभी फिर धमकेगा।
दो बजे वह वापस आया और इस बार रणक्षेत्र हमारा बेडरूम ही बना। वह कई तरह के कंडोम ले आया था.. एक्स्ट्रा थिन, एक्स्ट्रा डॉट्स, एक्स्ट्रा रिब्स जैसे पता नहीं क्या क्या।
फिर उसने चार बार और हमें आगे से फक किया। इस दौरान शायद ही कोई आसन बचा हो जो उसने आजमाया न हो और सारे कंडोम भी इस्तेमाल कर डाले।
इस बीच उसने चार बार अपना वीर्य निकाला और दो बार हम भी आर्गेज्म तक पंहुचे। जब जाने की नौबत आई तो बच्चू की खुद भी टांगें लड़खड़ाने लगी थीं। फिर आगे चल कर यह सिलसिला आम हो गया।
जब यह सब हुआ, उस दौरान में ग्यारहवीं में थी और जब इंटर के बाद प्राइवेट से बीए कर रही थी तब आरिफ के साथ मेरी शादी हो गयी।
इस बीच जितनी बार हो सकता था राशिद और समर ने हम दोनों बहनों की मुनिया की खुजली मिटाई.. और इस बीच शायद हमने सेक्स से सम्बंधित सभी कांड किये।
पहली बार ब्लू फिल्म देखने के बाद जिन चीजों पर हमने चर्चा की थी, उनमें से अंततः लगभग सभी कांड करते हुए फिर हमने वीर्य मुंह में लेना भी शुरू कर दिया था, भले बाद में थूक देते थे।
बस एक ही चीज थी जो हम कभी नहीं कर पाये.. कभी अपनी गुदा से निकले उनके लिंग को चूसने की हिम्मत हम न जुटा पाये।
समर के बार-बार करने से जब हमें गुदामैथुन की भी लत हो गयी थी तब हमने खुद से फोर्स करके राशिद को भी इसके लिये तैयार कर लिया था, हालाँकि खुद उसका इसमें कोई खास रुझान नहीं था।
लेकिन समर के मुकाबले हमें राशिद के साथ ज्यादा मजा आता था इसलिये हमने खुद ही एनल सेक्स के लिये उसे परोस दिया था।
शादी के बाद मेरी ढीली योनि ने आरिफ में शक के बीज जरूर बोये थे और वह मेरे हस्तमैथुन वाले बयान से एकदम संतुष्ट भी नहीं हुआ था, उसने बाकायदा मेरी जासूसी कराई थी लेकिन हाथ कुछ न लगा था।
वैसे भी हमारे साथ जो भी हुआ था, वह घर में ही हुआ था.. इस बात पे भला कौन शक करता और बाहर के लोगों के लिये तो हम शरीफजात लड़कियाँ ही थे, जो कभी भी किसी को देखना तक गवारा नहीं करते थे।
फिर खुद आरिफ कौन सा शरीफ था.. शादी से पहले एक भाभी से सम्बंध थे और शादी के बाद सऊदी में भी जहां तहां मुंह मारता रहता है।
यहां सास ससुर, देवर के बीच कोई जुगाड़ बन पाना मुश्किल है, देवर पर ट्राई किया कि वही मेरी विपदा समझ ले, लेकिन वह कहीं और किसी लड़की के चक्कर में पड़ा है।
ऐसे में बस यही है कि साल में तीन चार बार बस जो मायके जाना हो पाता है तो समर काम आ जाता है। घर में चूँकि कोई अब होता भी नहीं अम्मी के सिवा, तो उतनी दिक्कत नहीं। राशिद की शादी हो चुकी और उसे अब मेरे मायके जाने पे इतना भी मौका नहीं मिल पाता कि मेरे साथ अकेले हो सके.. सेक्स तो दूर की बात है।
हालाँकि अब्बू सऊदी छोड़ अब यहीं रहते हैं लेकिन घर पर उनके पांव कम ही टिकते हैं, सो जब तक समर की शादी नहीं हो जाती, पूरी सुविधा है मुनिया की खुजली मिटाने की.. समस्या बस यही है कि वहां ज्यादा जा नहीं सकती।
कभी जमीर अंकल और अम्मी के सम्बंधों के बारे में बहुत खराब लगता था और किसी-किसी वक्त में नफरत भी होती थी लेकिन आज अपनी सोचती हूँ तो उनकी तकलीफ समझ में आती है।
आज सबकुछ वैसा ही तो है, अब्बू की जगह आरिफ हैं और अम्मी की जगह मैं हूँ.. लेकिन अम्मी के पास जमीर अंकल जैसी परमानेंट सुविधा थी जो मेरे पास नहीं है।
काश मेरे पास भी वैसी कोई सुविधा होती, काश मैं भी ऐसे ही किसी के जरिये अपने हिस्से का सुख हासिल कर सकती।
इन्हीं सब “काश” को मेरे मुंह पर मारते हुए रजिया ने अपनी बात खत्म की थी। उसने यह सारी बातें तीन रातों में बताई थी। बातें तो और भी थीं लेकिन लिखीं मैंने बस उतनी ही, जितनी मुझे लिखने लायक लगीं।
अब मेरा अगला सवाल यही था कि क्या मैं उसके “काश” का जवाब बन सकता था?
कहानी के बारे में अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करायें। मेरी मेल आईडी हैं.. [email protected] [email protected] फेसबुक: https://www.facebook.com/imranovaish
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