This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे अहाना ने मुझे मानसिक रूप से तैयार करके अपनी उंगली से मेरी सील तोड़ी. अब आगे पढ़िये:
जब मैं सिसकारती हुई बुरी तरह मचलने लगी तब वह एकदम से रुक गयी और उसने अपनी उंगली बाहर निकाल ली।
कुछ पल लगे मुझे संभलने में… फिर मैंने आंख खोल कर देखा तो वह उस कपड़े से, जिसे उसने दराज से निकाला था.. अपनी उंगली और मेरी योनि पौंछ रही थी। मैंने कुहनियों के बल थोड़ा उठ कर प्रश्नसूचक नेत्रों से उसे देखा। “कुछ नहीं.. झिल्ली फटने का जो ब्लड था, वही साफ कर रही थी। फिक्र मत कर.. फारिग हो कर गर्म पानी से धो देंगे।”
मुझे भरोसा था उस पे… कि वह सब संभाल लेगी, मैं फिर वापस पीठ टिका कर धीरे-धीरे अपने दूध दबाने लगी। नशा टूटा था, खत्म नहीं हुआ था.. पौंछ पांछ कर वह ऊपर आई और मेरी घुंडियां चुसकने लगी। “सुन.. जो थोड़ी दर्द होगी वह बर्दाश्त कर लेना क्योंकि मजा तब ही मिलेगा। कोई लड़का करता तो काफी दर्द होता.. ऐसे उतना नहीं होगा।” “क्या करने वाली हो?” मैंने संशक भाव से कहा। “छोटा बैंगन तेरे लिये है।”
मुझे थोड़ा अजीब लगा.. ‘अभी उंगली जाने में तो खंजर भुकने जैसा लगा था, वह बैंगन कितना दर्द देगा.. लेकिन थोड़ी देर में वह दर्द कम भी तो हो गया था।’ ‘देखा जायेगा.. होने दो जो होना है।’
वह थोड़ी देर चुसकती रही मेरे निप्पलों को… फिर मेरे पेट को चूमती हुई नीचे चली गयी और जैसे पहले थी उसी पोजीशन में पंहुच कर उल्टे हाथ से योनि पर दबाव बना कर पहले थोड़ी देर उसे सीधे हाथ की उंगली से सहलाया, फिर एक उंगली अंदर उतार दी।
नाम का दर्द जरूर हुआ, लेकिन जल्दी ही जाता रहा और जब उसने उंगली अंदर बाहर करनी शुरू की तब जल्दी ही पहले जैसा मजा आने लगा और मैं ‘आह… आह…’ करने लगी।
जब मैं उसी प्वाइंट पर पंहुच गयी जहां उसके रुकने से पहले थी तब उसने एकदम दूसरी उंगली भी घुसा दी… मांसपेशियों पर एकदम से खिंचाव पड़ा और दर्द की एक तेज लहर दौड़ी, लेकिन अब मैं दर्द के बाद का मजा देख चुकी थी तो बर्दाश्त करने की ठान ली थी।
उसने इस बार उंगली रोकी नहीं थी, बल्कि चलाती रही थी और दस बारह बार में ही योनि की दीवारों ने उन दो उंगलियों भर की जगह दे दी थी और दोनों उंगलियां सुगमता से अंदर बाहर होने लगी थीं।
यह बिलकुल वैसे ही चल रहा था जैसे मैंने उसके साथ किया था। बस फर्क इतना था कि मैं बस एक काम कर पाई थी, जबकि वह दो कर रही थी।
वह चौपाये जैसी पोजीशन में थी.. और जहां अपने सीधे हाथ की उंगलियों से मेरा योनिभेदन कर रही थी, वहीं उल्टा हाथ पेट की तरफ से नीचे ले जा कर अपनी योनि भी मसलने लगी थी, जहां शायद वह बड़ा बैंगन अब भी ठुंसा हुआ था।
कमरे में पंखा चल रहा था और बाहर होती बारिश की वजह से बड़ी ठंडी हवा फेंक रहा था लेकिन हम दोनों के जिस्म ऐसे तप रहे थे कि उस ठंडक का अहसास ही नहीं हो रहा था। पंखे की आवाज में घुली हम दोनों बहनों की मादक आहें कराहें भी कमरे के वातावरण में आग भर रही थीं।
अचानक मेरे जहन को झटका लगा और दर्द की एक लहर के साथ मज़े में विघ्न पड़ गया। अहाना ने दोनों उंगलियां निकाल कर वह छोटा वाला बैंगन घुसा दिया था जो योनि की संकुचित दीवारों को फैलाता हुआ अंदर फंस गया था.. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मेरी योनि की मांसपेशियों ने उसे जकड़ लिया हो।
जबकि अहाना ने उसे फंसा छोड़ मेरी योनि के ऊपरी सिरे पर मौजूद मांस के उभार को ढेर सी लार से गीला करके रगड़ना शुरु कर दिया था। मजा दर्द पर हावी होने लगा। मैं जो गर्दन उठा कर उसे देखने लगी थी फिर गर्दन डाल कर पड़ गयी और वह एक हाथ ऊपर ला कर मेरे एक दूध को दबाने लगी.. दूसरे वाले को मैं खुद मसलने लगी।
कुछ पलों में महसूस हुआ कि योनि की अंदरूनी दीवारों से छूटते रस से गीला और मांसपेशियों के ढीला पड़ने पर बनने वाली जगह के चलते अंदर ठुंसा बैंगन बाहर सरकने लगा था। और इससे पहले वह पूरा बाहर सरक जाता, अहाना ने उसे वापस अंदर ठूंस दिया और डंठल की तरफ से पकड़ कर धीरे-धीरे अंदर बाहर करने लगी।
सख्त उंगलियों के मुकाबले यह नर्म-नर्म गुदीला बैंगन ज्यादा मजा दे रहा था। मैंने उसके हाथ पर दबाव दे कर उसे इशारा किया कि ‘जल्दी-जल्दी करे।’
अब वह थोड़ा उठ कर सुविधाजनक पोजीशन में आ गयी और फिर तेजी से उस बैंगन को अंदर बाहर करने लगी। मेरे नशे और मजे का पारा चढ़ने लगा।
और फिर वह मुकाम भी आया जब मेरा जिस्म कमान की तरह तन गया.. अपने दोनों हाथों से मैंने अपने दूध नोच डाले और शरीर की सारी मांसपेशियाँ अकड़ गयीं। ऐसा लगा जैसे कोई ठाठें मारता लावा किनारे तोड़ कर बह चला हो। दिमाग में इतनी गहरी सनसनाहट भर गयी कि दिमाग ही सुन्न हो गया.. कोई होश ही न रहा।
तन्द्रा तब टूटी जब अहाना ने थपक कर जगाया। “यह क्या हो गया था मुझे.. उफ! इतना मजा.. इतना नशा!” “आर्गेज्म.. जो इस खुजली के अंत पर मिलता है। इसी के पीछे तो मरती है दुनिया।” “मेरा भी सफेदा निकला है क्या?” मैं उठ कर अपनी योनि देखने लगी। “नहीं.. वह तो वीर्य होता है, जो लड़कों के निकलता है क्योंकि उसमें शुक्राणु होते हैं जो रिलीज होते हैं। हमारा तो जो थोड़ा बहुत निकलता है वह पानी जैसा होता है। छू के देख।”
मैंने अपनी उंगली योनि में लगाई तो जैसे वह बहती मिली। उंगली उसके रस से भीग गयी जो चिपचिपा था और तार बना रहा था। “अमेजिंग!” मेरे मुंह से बस इतना ही निकला। “चल अब मुझे इसी तरह आर्गेज्म तक पंहुचा।” वह मेरे सामने लेटती हुई बोली। और फिर मेरी भूमिका शुरू हो गयी।
अगले दो घंटे हम दोनों बहनें यही करती रहीं और जब लगा कि पानी रुक चुका था, अम्मी कभी भी आ सकती थी तो खेल खत्म कर लिया।
यह मेरी जिंदगी का पहला मजा था जो मुझे इस कदर लज्जत भरा लगा था, जिसे शब्दों में बयान कर पाना मेरे लिये मुश्किल है।
इसके बाद मेरी जिंदगी में जो बदलाव आया वह यह था कि अब रोज रात में हम मजा लेने लगे। बैंगन तो रोज घर में ना आते थे न सुलभ थे तो हमने एक मोटे मार्कर पेन को अपना औजार बना लिया था जो रोज रात को हमारे सैयाँ जी की भूमिका निभाता था और हमारी मुनिया की खुजली मिटाता था। जब एक बार बाधा हट गयी और मजा ले लिया तो इसमें अपरिचय जैसा कुछ न रह गया और जो भी बचा खुचा अहाना जानती थी, वह सब मुझे बता दिया।
राशिद ने कह रखा था कि अगले महीने उसके मामू के यहाँ बाराबंकी में कोई रस्म है तो उसके घर के सब लोग वहां जायेंगे और वह घर पे अकेला होगा तो कंप्यूटर पे हमें कुछ स्पेशल दिखायेगा। लेकिन अगले महीने में तो अभी महीना बाकी था।
बहरहाल वक्त जैसे-तैसे गुजरता रहा और हम अपनी रातें अपने अंदाज में गुजारते रहे।
यह बात सही है कि हमें उन रातों में मजा मिलता था लेकिन बकौल अहाना कि जो मजा गर्म गुदाज मर्दानी मुनिया में होता है, वह सख्त बेजान मार्कर कभी नहीं दे सकता। और धीरे-धीरे मेरी तड़प इस बात के लिये भी बढ़ने लगी थी कि काश मेरी मुनिया को भी एक लिंग किसी दिन नसीब हो।
मैं ग्यारहवीं में पंहुच गयी थी लेकिन लड़कियों का ही स्कूल था तो किसी लड़के से संपर्क की गुंजाइश न के बराबर थी। राह चलते लाईन मारने वाले लड़के तो बहुत थे, लेकिन उनमें से किसी पर मेरा भरोसा नहीं बनता था।
जबकि घर के आसपास भी दो ऐसे लड़के थे जो मुझ पर लाईन मारते तो थे लेकिन मैं उनकी मंशा समझ नहीं पाती थी कि वे मुनिया ही लड़ाना चाहते थे या फिर इश्क में मुब्तिला थे।
चूँकि ताजी-ताजी जवान हुई लड़की थी। फिल्में सर चढ़ कर बोलती थीं तो ऐसा तो खैर नहीं हो सकता था कि मन इश्कियाए न और दोनों में से एक पसंद भी था, लेकिन बड़ा डरपोक था कि कभी ठीक से बात भी न कर पाता था।
दूसरे मेरी इच्छा शायद इश्क से ज्यादा सेक्स की थी, लेकिन उसके हाल से लगता नहीं था कि उससे कुछ हो पायेगा।
जबकि जो दूसरा था, वह तो मौका पाते ही चढ़ जाने की फिराक में लगता था लेकिन वह एक तो मुझसे काफी बड़ा था, दूसरे शक्ल से उतना अच्छा भी नहीं था जिससे मुझे डर यह रहता था कि मैं कभी उसके साथ पकड़ी गयी, बदनाम हो गयी और उसी से शादी की नौबत आ गयी या वही शादी के लिये अड़ गया तो क्या वह मुझे जिंदगी भर के लिये शौहर के रूप में गवारा होगा। मैं खुद को इसके लिये तैयार नहीं कर पाती थी और उसके नीचे लेटने के लिये मानसिक रूप से तैयार होते हुए भी बस इसी डर से उसकी तरफ नहीं बढ़ पाती थी कि कहीं वह हमेशा के लिये गले न पड़ जाये।
इसी ऊहापोह में मार्कर के मजे लेते महीना गुजर गया।
राशिद के घर वाले तो चले गये, लेकिन समस्या हमारी थी कि हम कैसे वहां फिट हों? जाने को धड़ल्ले से जा सकते थे, लेकिन वह सबकी नजर में रहता या तब कोई भी बुलाने या वैसे ही वहां आ सकता था।
और मुझे पक्का पता था कि हम किसी को फेस करने वाली पोजीशन में शायद वहां न हों।
रास्ता यही निकाला कि रात हम छत वाले कमरे में सोने की जिद करेंगे और सबके सोने के बाद राशिद की तरफ उतर जायेंगे।
इत्तेफाक से उस दिन भी बारिश का ही मौसम था तो हमने रात ऊपर सोने की जिद की तो किसी ने कोई ख़ास ध्यान न दिया। वैसे भी जब तब लोग करते ही थे ऐसा।
अपने यहां का हमें पता था कि अप्पी या सुहैल ऊपर नहीं जाने वाले थे, बस डर इस बात का था कि सना या समर में से कोई न ऊपर पंहुच जाये। लेकिन ऐसा न हुआ और सब अपनी जगह ही सो गये.. तब ग्यारह बजे हम ऊपर चले आये।
बारिश कोई खास नहीं हो रही थी, बस बूंदाबादी हो रही थी और मलिहाबाद के हिसाब से देखा जाये तो हर तरफ सन्नाटा था।
हमने जीने के दरवाजे को उसी तरह एक अद्धे से फंसाया जैसे उस दिन राशिद ने फंसाया था ताकि कोई एकदम से आ न सके। फिर चुपचाप जीने के दूसरी साईड से राशिद की तरफ उतर आये। इत्तेफाक से उसका कमरा ऊपरी मंजिल पर ही था और वह हमारा इंतजार करता मिला।
दरवाजे को मैंने लॉक किया और वह दोनों लिपट पड़े और एक दूसरे के होंठ चूसने लग गये। साथ ही राशिद अहाना के दूध भी दबाता जा रहा था।
फिर दोनों अलग हुए तो राशिद मेरी तरफ आकर्षित हुआ.. उसका कंप्यूटर ऑन था लेकिन स्क्रीन पर कोई सीन नहीं था। “तुम्हें पता है रजिया कि सांप को सांप खा जाता है?” “सुना है। तो?”
“देखा तो नहीं न.. लेकिन देखोगी तो यह कहने का कोई मतलब नहीं कि छी, ऐसा कैसे हो सकता है।” “मैं समझी नहीं।” “कहने का मतलब यह है कि दुनिया में बहुत कुछ ऐसा होता है जो तुम्हें मालूम नहीं, लेकिन चूँकि तुम्हें मालूम नहीं तो उसका यह मतलब नहीं कि ऐसा होता ही नहीं।” “मैं अब भी नहीं समझी।”
“मैं एक फिल्म दिखाऊंगा तुम्हें.. यह खास तुम्हारे लिये हैं क्योंकि अहाना पहले भी देख चुकी है। ब्लू फिल्म.. समझती हो न? गंदी वाली.. जिसमें लोग मुनिया की खुजली मिटाते हैं।”
मेरा दिल धड़क उठा.. मैं अजीब अंदाज में उसे देखने लगी।
“उसमें वह सब है, जो दुनिया में होता है। लोग करते हैं.. तो इत्मीनान से देखो लेकिन यह मत सोचना कि ऐसा भला कैसे हो सकता है, तुम्हें तो पता ही नहीं था। सब कुछ होता है और सब कुछ लोग करते हैं।” “ओके।” मैंने भी ठान लिया कि किसी तरह रियेक्ट ही नहीं करूँगी।
उसने फिल्म लगा दी और हम कंप्यूटर टेबल के पास ही तीन कुर्सियों पर बैठ गये।
कहानी कैसी लगी, कृपया इस बारे में अपने विचारों से जरूर अवगत करायें। मेरी मेल आईडी है.. [email protected] [email protected] फेसबुक: https://www.facebook.com/imranovaish
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000