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सभी पाठकों को मेरा नमस्कार. मैं लव एक बार फ़िर हाज़िर हूँ अपनी नई कहानी के साथ. इस से पहले आप मेरी कई कहानियाँ पढ़ चुके हैं. मेरी पिछली कहानी थी दशहरा मेले में दमदार देसी लंड के दीदार
दोस्तो, आजकल तो सारा जमाना मानो जवान हो गया है, हर तरफ़ जहाँ देखो जवान लोंडे अपनी खूबसूरत जवानी का जाम बिखेरते नज़र आते हैं या फ़िर यह भी हो सकता है कि मेरी नज़रें ही जवानी का चश्मा लगा कर घूम रही हों.
खैर अपनी बात पर आते हैं… अभी कुछ दिन पहले त्योहारों का मौसम था और बाज़ार में जब भी जाना होता था कई जवान नये नवेले सेक्सी लौंडों के दीदार हो जाते और दिल करता कि यहीं पर इनकी जवानी का जाम पी लूँ और इस खूबसूरत जिस्म से लिपट जाऊँ… लेकिन क्या करें, ऐसे सड़क पर चलते किसी के साथ ऐसा तो नहीं कर सकते. बस दिल को यूं ही देखकर तसल्ली करनी पड़ती.
ऐसे ही एक दिन किसी काम से सरकारी अस्पताल के पास की एक दुकान पर किसी काम से जाना पड़ा, दुकान पर जब पहुँचा तो वहाँ पर खड़े 3 नये नवेले लड़कों को देखकर दिल में मानो कामुकता की आग सी लग गयी… तीनों ही लौंडे दोस्त लग रहे थे और नयी उम्र के लग रहे थे. गोरे चिट्टे, लंबे और सभी की शर्ट की एक बटन खुली हुई…
मैं काम होने के बाद भी कुछ समय वही खड़े होकर उन जवान कातिलाना जिस्मों को निहारता रहा… साले हँस हँस कर बाते करते हुए काफ़ी मर्दाना और कातिलाना लग रहे थे.
कुछ समय बाद वे तीनों तो अपनी बाईक पर बैठ कर चले गये और मेरे मन में मानो लन्ड की आग लगा गये… मेरा भी लंड खड़ा हो चुका था और अब मुझे किसी दमदार जिस्म और फाड़ू लन्ड की जरूरत थी, मैं चाहकर भी लन्ड को भूल नहीं पा रहा था. तभी मुझे सामने सरकारी अस्पताल दिखाई दिया और दिमाग ने तुरंत समस्या का हल ढूँढ लिया और अचानक ही किसी जवान मर्द के मोटे ताजे लन्ड की तलाश में मेरे कदम अस्पताल की तरफ़ बढ़ने लगे.
अस्पताल के अंदर घुसते ही मेरा दिल खुश हो गया… अस्पताल सरकारी था इसलिये काफ़ी सिम्पल जवान मर्द वहाँ दिखाई दे रहे थे… और इतने मर्दाना और मजबूत जिस्म और लन्ड का उन्हें कोई घमण्ड नहीं था. दिल कर रहा था कि मैं इन जवान जिस्मों को चूम लूं और उनके जिस्म की मस्तानी महक को अपने अंदर भर लूँ. गाँव देहात के मजबूत जानदार लड़के, मजबूत कड़क हाथ, शर्ट की खुली बटन… वाह क्या नज़ारा था… अब बस मैंने तो सोच ही लिया था कि आज यहाँ मैं किसी ना किसी गाँव वाले लन्ड का स्वाद तो आज जरूर चखूँगा. लेकिन दिक्कत यह थी कि ज्यादातर मर्द समूह में थे, अकेले नहीं थे और दिन का ही समय था इसलिये कुछ कर पाना मुश्किल था.
अब मैं अस्पताल के पीछे की तरफ गया जहाँ एक खुला मैदान सा था. जैसा कि अस्पताल नया ही बना था, इसलिये काफ़ी सफाई थी और सामने डॉक्टर के नये क्वाटर बने हुए थे जो लम्बी बिल्डिंग के रूप में थे और इन घरों में अभी कोई रहता नहीं था… मतलब ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी वहाँ पर!
दूर से बस एक लगभग 25 साल का मर्द दिखाई दे रहा था, जो अस्पताल की सीढ़ी के साईड में बनी ओटली पर बैठा फोन पर किसी से बात कर रहा था. उस अकेले मर्द को देख कर मेरे दिल को मानो राहत मिली. लेकिन अब पास जा कर देखना था कि मर्द दमदार है या नहीं!
लेकिन एक समस्या वाली बात भी थी कि उससे कुछ दूरी पर 2-3 लोग और भी बैठे हुए थे जो शायद अस्पताल में भर्ती किसी मरीज के रिश्तेदार लग रहे थे और आराम की मुद्रा में बैठे थे जिनका वहाँ से जाने का कोई प्लान नहीं था. जिससे मेरी चिंता और बढ़ गयी और दिल में बस यही उथल पुथल चल रही थी कि आज मुझे किसी मस्त जवान मर्द का फड़कता लंड मिल पायेगा या मुझे यहाँ से बिना कामरस का पान किये खाली ही लौटना पड़ेगा.
जैसा कि अस्पताल के बाहर मिले तीन जवान लौंडों ने मेरे दिमाग में हवस और गान्ड़ फाड़ू लंड की भूख भर दी थी जिससे रह रह कर मेरी आंखों के सामने उन जवान लड़कों का कातिलाना जिस्म घूम रहा था और मेरे दिमाग में उन तीनों के अलग अलग साईज़ के मोटे ताज़े लंड और मस्त चुदाई की काल्पनिक कहानी चल रही थी जिससे मेरा लंड भी खडा होकर झटके मारने लगा था.
उस मर्द के नज़दीक बैठे उन तीन अधेड़ उम्र के आदमियों को देखकर मन ही मन उनसे कहने लगा कि चाहो तो तुम तीनों भी अपने मोटे लंबे लंड से मुझे चोद दो और अपने लंड का मीठा पानी मुझे पिला दो लेकिन बस मेरे कलेजे में लगी लंड की भूख मिटा दो और उस जवान लौंडे के लंड का दीदार करवा दो. हालांकि उन तीनों की उम्र लगभग 40 से 50 के बीच थी और मेरे लायक नहीं थे.
अब मैंने अपने शिकार पर ध्यान दिया… उसकी उम्र लगभग 25 साल होगी, रंग थोड़ा साँवला… देखने में किसी गाँव का लग रहा था, सफ़ेद रंग की शर्ट जिस पर हल्की धारियाँ थी और हल्की ढीली सिली हुई शर्ट जिसकी आस्तीनें ऊपर चढ़ी जिससे हाथों के मर्दाना बाल दिखाई दे रहे थे. शर्ट की ऊपर की दो बटन खुली हुई थी इसके अलावा सिला हुआ पेन्ट, पैरों में बैराठी की चप्पल… फ़ोन पर बात करते हुए बार बार जर्दा थूक रहा था… मतलब कुल मिलाकर गाँव वाला चोदू लग रहा था.
उसकी बात फ़ोन पर खत्म हुई और वह खड़ा हुआ तो उसकी हाईट और चोदू अंदाज़ का मैं कायल हो गया. देखने में वह बिल्कुल इरफ़ान पठान की तरह लग रहा था बस काला था वह… आप यदि अभी इरफ़ान पठान का फोटो देखेंगे तो उसके लुक का अंदाज़ा लगा सकेंगे… वह लंबा और काफ़ी सादा आदमी लग रहा था… हाथ की आस्तीन ऊपर चढ़ी हुई और शर्ट के दो बटन खुले हुए जिसमें से सफ़ेद बनियान और छाती और हाथ पर मर्दाना काले बाल मुझे दीवाना बना रहे थे.
उसे देखकर में मन ही मन उसके गान्ड फाड़ू लंड और भयंकर चुदाई के सपने देखने लगा, वह लंबा और काला था और जर्दा खा रहा था जिससे मुझे पूरा भरोसा था कि लंड काफ़ी मज़बूत होगा क्योंकि यह मेरा पुराना अनुभव था, लोगों को देखकर ही मैं उनके लंड के साइज़ और चुदाई का अंदाज़ा लगा लेता हूँ.
इसके अलावा वह शादीशुदा लग रहा था, मतलब उसे रोज़ चुदाई करते हुए अच्छा अनुभव हो चुका था और अपने चोदू लंड से बड़ी आसानी से वह मेरी लंड की प्यास बुझा सकता था. बस यही सोच सोच कर मेरे मुंह में पानी आने लगा था.
वह अकेला बैठा था, मैं उसके नज़दीक जाकर फ़ोन पर बात करने का नाटक करने लगा और चुपके चुपके उसे देखने लगा. कुछ समय में उसे भी लगा कि मैं उसे देख रहा हूँ और वह तिरछी नज़र से कभी कभी मुझे नोटिस भी कर रहा था.
कुछ समय के बाद अचानक बारिश होने लगी जिससे बचने के लिये वह अपनी जगह से उठा और जाने लगा. मैं भी तुरंत उसके पीछे पहुंचा क्योंकि यदि वह भीड़ में चला गया तो मेरी मोटे ताज़े लन्ड की प्यास तो बुझ ही नहीं पायेगी. मैं उसके नज़दीक पहुँच गया और उसके साथ चलने लगा. अगले 15 सेकंड में वह किसी वार्ड में घुस जाता या फिर आगे बरामदे में लगी भीड़ में चला जाता… और उससे पहले मुझे उसे रोकना था.
मैंने आव देखा ना ताव और उस जवान मर्द को हाथ लगाते हुए रोका… साल रुका नहीं और चलते हुए ही बोला- हाँ क्या हुआ? मैं मन ही मन कह रहा था- साले रूक जा, आगे भीड़ है क्या भीड़ में जाकर रुकेगा… भीड़ में कैसे बात कर पाऊँगा. मैंने दोबारा कहा- सुनो… रुको तो सही…
अब वह थोड़ा सा रुका लेकिन साला खजूर कहीं का… मेरी बात सुनने के लिये थोड़ा भी झुक नहीं रहा था और मैं ऐसे चिल्लाकर तो बोल नहीं सकता था इसलिये मैं थोड़ा ऊँचा हुआ और कान के पास जाकर बोला- अपना लंड चुसवाओगे? इतना सुनकर वह थोड़ा झुका और अपना कान मेरे मुह के पास लगाते हुए बोला- कई बोलियो तू?(क्या बोला तू?) मैंने अपनी बात एक बार और दोहरा दी. उसने कोई जवाब नहीं दिया और आगे बढ़ते हुए एक नवजात शिशु वार्ड में घुस गया.
साले ने कोई जवाब ही नहीं दिया… मैंने भी दिल को तसल्ली देते हुए मन ही मन कहा- हाँ नहीं की है लेकिन ना भी तो नहीं की है… उम्मीद अभी बाकी है… यही सोचते हुए मैं वार्ड के बाहर उसका इंतज़ार करने लगा.
कुछ देर बाद वह एक महिला के साथ बाहर आया और बच्चे के बारे में बात करने लगा जिसे सुनकर मुझे समझ आया कि वो जवान मोटे लंड वाला चोदू आदमी अपनी दमदार चुदाई से अपनी बीवी को माँ बना चुका था. अब तो उसके लंड की तड़प और भी बढ़ गयी थी.
उसके साथ वाली महिला वापस अंदर जा चुकी थी और वह वहीं खड़ा था. अब उसकी चेन पर उसके लंड का उभार थोड़ा बढ़ गया था.
वह पास ही में लगी कुर्सी पर जाकर बैठ गया. कुर्सियाँ आपस में जुड़ी हुई थी. मैं भी उसके पास वाली कुर्सी पर जाकर बैठ गया और उसकी तरफ़ देखते हुए उसके जवाब का इंतज़ार करने लगा. मैंने थोड़ी हिम्मत करते हुए उसके कान में एक बार फ़िर कहा- क्या हुआ आपने कुछ कहा नहीं? उसने बड़े ही कठोर ढंग से सर हिलाते हुए कहा- नी असो काम नी करू भैया हूँ… म्हरो ब्याव हुई गयो है… (ऐसा काम नहीं करता मैं, मेरी शादी हो गयी है) उसने गाँव की मलवीय भाषा में जवाब दिया.
अब तो मानो मेरे दिल के अरमान की पतंग की डोर कट सी गयी थी और मेरा काम खत्म हुए डेढ़ घंटा हो चुका था. मैं तो बस उन तीन जवान मर्दों की लगायी लंड की प्यास को बुझाने के लिये किसी जवान चोदू लंड को खोज रहा था और अब मेरे पास इतना समय नहीं था कि एक नये मर्द की तलाश करूँ…
मैं बिना कुछ बोले वहाँ से खड़ा हुआ और थोड़ी दूर पर लगी कुर्सी पर जाकर आराम की मुद्रा में बैठ गया, अब मेरा ध्यान उस पर नहीं था.
लगभग 10 मिनट बाद मेरे पास कोई मर्द आया और आवाज़ की- हूँ… मैंने ऊपर देखा तो वही मर्द मेरे पास खड़ा था… मेरे देखने पर वह धीरे से बोला- चल कहाँ चलना है? मेरी तो मानो लाटरी लग गयी थी उसकी बात सुनकर…
जब मैंने उसके लंड के उभार को देखा तो वहाँ लंबा सा कड़क खीरे जैसा लंड उसकी सिली हुई पेंट में से साफ़ दिखाई दे रहा था. मैं समझ गया कि मेरी लंड लेने की कही बात को सोचते हुए इसका तम्बू तन गया और अब इसका लंड मान नहीं रहा हे और अपना कामरस पिलाने मेरे पास आया है.
लंड की प्यास की कहानी जारी रहेगी. आपका लव [email protected] कहानी का दूसरा भाग: सरकारी अस्पताल में मिला देसी लंड-2
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