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इस गे कहानी के पहले भाग नागपुर से दिल्ली ट्रेन यात्रा-1 में आपने पढ़ा कि कैसे मुझे रेलवे स्टेशन पर टिकेट की लाइन एक बन्दा मिला जो मेरी गांड का चाहवान था. वो मेरे वाले डिब्बे में ही था.
मैंने पेशाब किया और थोड़ी देर वहीं खड़ा रहा. मेरा दिल बहुत जोर से धड़क रहा था. यह मेरा पहला अवसर नहीं था पर समीर बहुत हैंडसम था और उसका लंड बहुत बड़ा लग रहा था इसलिए मेरा दिल बैठ जाता था सोच सोचकर. ऐसा लगता था कि कब उसके लंड को अपनी गांड में ले लूं!< अब आगे: मैं टॉयलेट से बाहर आया तो सुस्त महसूस कर रहा था, तो सो गया. जब सो के उठा तो समय देखा, 10 बजे थे, रात हो रही थी, ट्रेन चल रही थी. मैंने समीर की सीट की तरफ देखा, वो सो गया था. मैं शॉर्ट्स और टीशर्ट लेकर टॉयलेट गया, कपड़े बदले, पेशाब किया और वापस आ कर नमकीन और बिस्कुट निकाला और खाने लगा. खाने से बाद पानी पिया, और एक सेब लेकर सीट के पास ही खड़े हो कर खाने लगा. तभी मेरे मोबाइल पर वाइब्रेशन हुआ. देखा तो समीर का मैसेज था व्हाट्सएप्प पर. मेरा दिल फिर जोर से धड़कने लगा. मैंने जल्दी जल्दी सेब खाया और आ कर बिस्तर में लेट गया. फिर मोबाइल उठा कर मैसेज खोला, चाट कुछ इस प्रकार है : समीर- सो के उठ गए? मैं- हाँ, अभी थोड़ी देर पहले ही उठा. समीर- हां, मैंने देखा. मैं- मुझे लगा आप सो चुके हो. समीर- नींद ही नहीं आ रही है. और इसके वजह तुम हो. मेरा दिल धक से हो गया, मैंने पूछा- मैं कैसे हूँ, मैंने क्या किया? समीर- तुमने क्या किया? तुम्हें कुछ पता ही नहीं है? मैं- नहीं... मुझे कुछ पता नहीं. समीर- प्लेटफॉर्म टिकट लेते टाइम तुमने क्या किया. तुम्हें पता नहीं? मैं- नहीं, मुझे क्या पता रहेगा. आप ही चिपक रहे थे. समीर- एक बार मैं गलती से चिपक गया. बाद में आप अपनी गांड को ऐसे बाहर कर के खड़े हो गए कि मुझसे रहा ही नहीं गया, कण्ट्रोल ही नहीं हुआ. गांड शब्द सुन कर के ही मेरे दिमाग में अब नशा चढ़ने लगा- नहीं, मैंने बाहर नहीं लिया था. वो ऐसा ही है. समीर- कुछ भी मत बोलो. तुमने साफ साफ अपनी गांड बाहर निकाली थी. छोडो ये बातें... तुम गे हो? मैं- नहीं, मैं बाइसेक्सुअल हूँ. समीर- मतलब गांड और लंड दोनों तरफ से चलते हो. अच्छा है. कितनी बार गांड मराई है? मैं- गिना नहीं है. बहुत बार. पर सेफ सेक्स ही करता हूँ. समीर- तुझे देख कर लगता भी है. तुम्हें क्या पसंद है? मै- मुझे लंड चूसना, गांड में लंड लेना, वीर्य को पीना बहुत अच्छा लगता है. मुझे गालियाँ सुनना बहुत अच्छा लगता है. जब कोई गाली दे देकर मेरी गांड मारता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. समीर- हम्म तो तुम स्लेव हो मादरचोद. अच्छा लगा? गाली. मैं- आअह्ह्ह... हाँ... बहुत अच्छा लगा. समीर- तेरी गांड मारने का बहुत मन कर रहा है. मैं- पर यहाँ कैसे? समीर- तू टॉयलेट में आ जा. मैं- अगर कोई देख लिया तो? समीर- इतने लोग नहीं हैं कि कोई देख लेगा. और यहाँ कोई है जो तुम्हें पहचानता है? मैं- नहीं. समीर- तो फिर कोई बात ही नहीं है. तुम भी अकेले हो, मैं भी अकेला हूँ, सुबह जब हम उतरेंगे तो तुम अपने रास्ते जाओगे, मैं अपने रास्ते. तो कोई देखकर क्या कर लेगा? मैं- ठीक है. समीर- देख, मैं टॉयलेट में जा रहा हूँ, मेरे जाने के ठीक 2 मिनट बाद, तू आ कर 3 बार नॉक करना मैं दरवाजा खोलूंगा, तू अंदर आ जाना. बस. ठीक है? मैं- ठीक है. मेरा दिल तो ऐसे लगता था, जैसे वो मेरे मुँह के रास्ते बाहर आ जायेगा. मैंने समीर को उसकी चप्पल ढूँढते देखा. उसने चप्पल पहनी और वो मेरी तरफ आने लगा. मैं उसकी तरफ ही देख रहा था. उसने लोअर और टी-शर्ट पहन रखा था. जब वो मेरे बगल से गुजरा तो, उसके चेहरे पर अलग ही मुस्कान थी. मैं 2 मिनट का इंतज़ार करने लगा. ये 2 मिनट ऐसे लग रहे थे कि 2 घंटे हों, जैसे पास ही नहीं हो रहा था. जैसे ही दो मिनट हुए, मैं दरवाज़े के पास गया और 3 बार नॉक किया. दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी और मैं अंदर घुस गया. जैसे ही अंदर घुसा, समीर ने मुझे पीछे से दबोच लिया और मेरे गर्दन पर किस करने लगा. मैंने कैसे कैसे कर के दरवाज़ा बंद किया. मैं उसकी तरफ घूमा और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिये. कभी वो मेरे होंठ चूसता तो कभी मैं उसके. वो मेरे मुँह में अपनी जीभ पूरी ही डाल देता था, मैं उसे चूसने लगता था, जैसे भूखा बच्चा अपनी माँ की छाती को चूसता है. जब मैं चूस रहा था, तो वो मेरे चूतड़ को मसल रहा था. उसके हाथ और पंजे इतने बड़े बड़े थे कि ऐसा लगता था कि मेरे पूरे चूतड़ उसके एक हाथ में ही आ जायेंगे. ऐसे ही हम एक दूसरे को 10 मिनट तक चूसते रहे. फिर मैं नीचे बैठ गया और उसके लोअर और अंडरवियर को एक झटके में ही नीचे कर दिया. वॉव, उसका 7 इंच का लंबा लंड मेरे सामने ऐसे आया जैसे कोई साँप वर्षों से पिजरे में कैद रहा हो और अभी आज़ादी मिली हो. उसका लंड जैसे लंबा था, वैसे ही मोटा भी था. तो मेरा अंदाज़ा हमेशा की तरह यहाँ भी सही निकला. मेरा स्पेशल टैलेंट है कि मैं लोगों की पैंट की तरफ देख कर बता सकता हूँ कि उसके अंदर कितना बड़ा लंड है, बशर्ते, मुझे थोड़ा क्लोज रहने का मौका मिल जाये. मैं उसके लंड को मुँह में लेकर चूसने लगा, वो मेरे बालों को सहला रहा था और कभी कभी मेरे मुँह में, पूरा लंड पेलने की असंभव कोशिश भी करता था. उसका लंड इतना मोटा था कि मेरे गले में नीचे ही नहीं जा पाता था. इसलिए 1 इंच के आस पास बाहर ही रह जाता था. मैं 8-9 इंच में लंड को ऐसे घोट जाता हूँ, जैसे वहाँ कुछ हो ही ना, पर ये 7 इंच का लंड नहीं जा रहा था जबकि मैं पूरी कोशिश कर रहा था. मेरे मुँह से लार की नदियाँ बहने लगी. मैं अपने हाथ से, उस लार को रोककर, उसकी गोली पर लगा देता, कभी कभी उसके गांड पर भी लगाता था. वो और उत्तेजित हो जाता और तेज़ तेज़ से मेरे मुँह में पेलने लगता था. मेरी आँखों से आंसू आ रहे थे और नाक से भी पानी बह रहा था. समीर कभी कभी मेरे गाल पर एक धीमे से चांटा भी मारता था और गालियाँ देते हुए बोलता था- चूस, अंदर तक ले! इसी बीच समीर ने अपना लंड मेरे मुँह से खीच लिया और अपनी गोली मेरे मुँह में भर दी. वो भी बहुत बड़ी थी, ऐसा लगता था जैसे लट्टू! मैं मज़े में चूसने लगा उसे. उसने मुझे औए दबाया और अपनी गांड मेरे मुँह के सामने लाया और बोला- चाट मादरचोद, यहीं से तेरा खाना आता है. मैं उसे तेज तेज से चाटने लगा. वो अपनी गांड मेरे मुँह पर ऐसे रगड़ रहा था जैसे वो पागल हो गया हो. फिर उसने मुझे ऊपर किया और मेरे मुँह में अपना लंड फिर से भर दिया. उसने अपने दोनों हाथों से मेरा सर पकड़ लिया और जोर जोर से मेरे मुँह में पेलने लगा. मेरा मुँह दर्द करने लगा. मेरे आँख, नाक और मुँह से तो धाराएं चल रही थी. फिर उसने अपनी स्पीड थोड़ी धीमी की और मेरा मुँह को अपने वीर्य से भरता चला गया. उसने इतना वीर्य निकाला कि मैंने 3 घूंट पूरा पिया. और बाद में जो चाट चाट के पिया वो अलग है. जब मेरा मुँह भर जाता था तो घोटने के टाइम वो मेरे मुँह के ऊपर ही गिरा देता था, जो बाद में मैंने चाटा. उसने मुझे खड़ा किया और एक लंबा किस दिया, फिर बोला- यार मज़ा आ गया. आज के पहले मुझे इतना मज़ा कभी नहीं आया था. मेरी वाइफ कभी मेरे लंड को मुँह में ही नहीं लेती, इसलिए मैं बाहर लड़कों से चुसवाता रहता हूँ. पर किसी के साथ इतना मज़ा नहीं आया जितना आज आया है. इतना कहने के बाद उसने फिर किस किया. फिर उसने बोला- अपनी गांड इधर कर, मुझे तेरी गांड मारनी है. मैंने कहा- कंडोम है? उसने नहीं से सर हिलाया. तो मैंने कहा- नहीं, ये तब नहीं हो सकता है, मैं हमेशा सेफ सेक्स ही करता हूँ. तो वो बोला- भाई, मेरे अंदर कोई बीमारी नहीं है, विश्वास कर! मैं बोला- नहीं, विश्वास की बात नहीं है. मैं बस नहीं करता हूँ. वो थोड़ा उदास हो गया. फिर उसने बोला एक बार और चूस ले. मैंने कहा- बहुत देर हो गई, लोग शक करेंगे. अब रहने दो, मेरा मुँह भी दर्द कर रहा है. "एक लास्ट बार प्लीज... बस दो मिनट के लिए..." उसने कहा. मैंने उसके सुस्त पड़े लंड को मुँह में लिया ही था कि मुझे लगा उसके लंड से पानी निकला हो, मुझे पता चल गया, वो पेशाब था. बस थोड़ा सा निकला था. पर स्वाद से पता चल गया. वो हँसने लगा, बोला- कैसा लगा? मैं खड़ा हो गया और मुस्कुराते हुए उसे घूरने लगा. वो बोला- पी जा प्लीज... थूकना नहीं! मैंने उसकी बात मान ली और घोट गया. "कैसा लगा?" उसने फिर पूछा. "अच्छा लगा." मैंने कहा. "और पियेगा?" उसने कहा. "नहीं... तुम्हारे वीर्य से ही आज पेट भर गया." मैंने कहा. "दिल्ली में मिल ले प्लीज, फिर देखो मैं तुझे क्या क्या पिलाता हूँ!" उसने हँसते हुए कहा. मैं भी हंसने लगा. उसने एक बार फिर मुझे किस किया और कहा- प्लीज दिल्ली में जरूर मुझे कॉल करना जब भी तुम्हारे पास टाइम हो. हम मज़े करेंगे. मैंने बोला- ठीक है. हम वहाँ से बाहर निकले बारी बारी से... मैं बाद में निकला. जो मेरे सीट के ऊपर सोया था, शायद उसने देख लिया था हम दोनों को एक ही टॉयलेट से निकलते हुए. वो मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था. अच्छा ये हुआ कि उसने कुछ बोला नहीं. सुबह को हम दिल्ली पहुँच गए. मैं अपने रास्ते चला गया और समीर अपने रास्ते. शाम को उसका मैसेज आया. हम फिर मिले और बहुत मज़े किये इस बार... पर वो अगले कहानी में. आप मुझे जरूर बताइये कि आप को मेरी गांड की यह कहानी कैसी लगी. यह एक रियल कहानी है. इसमें कोई भी मसाला नहीं लगाया गया है इसलिए हो सकता है कि आपको कभी बोर भी लगे. पर मैं केवल सच्ची कहानी ही लिखूंगा. अगर आप में से कोई नागपुर आये किसी काम से तो मुझसे मिल सकता है, या हो सकता है मैं आप के शहर आया तो मैं आप से मिल सकता हूँ. आप मुझे मेल करें [email protected] पर. वहीं पर आप से खूब सारी बाते होंगी. धन्यवाद.
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