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आप सभी अन्तर्वासना के पाठकों को शिवम गांडू का गांड उठा के नमस्कार. यह मेरी पहली कहानी है, अगर कोई गलती हो तो माफ़ कर दीजियेगा. आप लोगों के फीडबैक के अनुसार लिखाई जारी रहेगी. मैं गांडू कैसे बना, किस-किस से गांड मरवायी, यह बहुत लंबी कहानी है. यहाँ मैं अभी एक जल्द ही घटित हुयी सच्ची कहानी के बारे में बताने जा रहा हूँ.
पहले मेरे बारे में कुछ, मेरा नाम शिवम् शर्मा (बदला हुआ) है. मैं अभी नागपुर में रहता हूँ. मेरे घर में माँ, बाप, और मेरी एक बहन है. मैं सबसे छोटा हूँ, मेरी उम्र 25 साल है. मैं न बहुत गोरा हूँ ना और ना ही बहुत काला. पर ना जाने भगवान् ने मुझे क्या दिया है कि औरत हो या मर्द, सब घूरने लगते हैं मुझे. थोड़ी सेक्स अपील ज्यादा है मुझमें. मैं बाईसेक्सयुअल हूँ, मतलब मुझे आदमी के लंड और औरत की बुर, दोनों ही पसंद है. मुझे लंड चूसना, और पूरा माल पी जाना बहुत पसंद है. मेरी पसंद बुर के बारे में भी ऐसी ही है.
गांड मरवाना तो जैसे, भगवान का आशीर्वाद हो मुझे. जब 7-8 इंच का लंड मेरे गांड में अंदर बाहर होता है तो जैसे, मुझे स्वर्ग का मज़ा आता है. जब वो अंदर बाहर होता है, तो गांड सिकुड़ा कर महसूस करने का अपना ही मज़ा है. अभी मत मुठ मार लीजिये. कहानी पढ़िए, और साथ साथ में अपने लंड देवता को भी हाथ में लेकर मसलते रहिये. अब कहानी पढ़िए.
अभी हाल की बात है मुझे दिल्ली जाना था. मैं स्टेशन टाइम से पहुँच गया, मेरे साथ मेरे पापा मुझे छोड़ने गए थे. दिन के 3 बजे थे. मेरा टिकट कंफर्म नहीं था तो पापा बोले- मैं तेरा टिकट कंफर्म करवा के लाता हूँ, तू मेरे लिए एक प्लेटफॉर्म टिकट ले के आ जा. मैं बोला- ठीक है.
मैं जब प्लेटफॉर्म टिकट लेने गया तो देखा कि वहाँ पर लाइन लगी है, 8-10 लोग लाइन में खड़े थे. मैं लाइन में लग गया. देखते ही देखते लाइन बड़ी हो गयी.
इसी बीच जो आदमी टिकट बना रहा था, उसे कोई काम आ गया तो, वो उठ के चला गया. सभी लोग शोर करने लगे- कहाँ गया… किसी और को बुलाओ! इत्यादि.
तभी मैंने महसूस किया कि जो मेरे पीछे खड़े हैं, वो कुछ ज्यादा ही चिपक के खड़े हैं और चिल्ला रहे हैं. ऐसे में मेरे अंदर का शैतान जाग गया और मैं भी थोड़ा अपने गांड को बाहर निकाल के खड़ा हो गया और मज़े लेने लगा. वो रह रह के आगे चढ़ आता और उसका लंड मेरे गांड की दरार में घुस जाता था. अभी तक मैंने उनका चेहरा नहीं देखा था, बस आवाज़ से लगता था कि कोई आदमी है.
हम टिकट काटने वाले का इंतज़ार करने लगे. हमारे पास इंतज़ार के अलावा कोई और रास्ता भी तो नहीं था.
दस मिनट के बाद वो आया और टिकट बनाने लगा. तभी मेरे पीछे से आवाज़ आई- अगर ये अपना काम अच्छे से करते, तो इतनी गन्दगी भी नहीं होती और ट्रेन भी टाइम से चलती! अभी भी वो थोड़ी थोड़ी देर में मेरे गांड में अपना लंड घुसाते रहता था पर ऐसा लगता था कि वो जान बूझकर नहीं कर रहे हैं इसलिए मैंने अपने तरफ से कुछ एक्सट्रा नहीं किया. डर लगता था. पर इस टाइम जब उन्होंने बोला तो ऐसा लगा वो मुझ से बोल रहे हैं, मैंने पीछे मुड़ के देखा, मुझे एक आदमी दिखा, कुछ छह फ़ीट के आस पास लंबा, क्लीन शेव्ड, गोरा, ब्लू शर्ट पहने हुए, तंदरुस्त, एकदम हैंडसम. उसके चेहरे पर थोड़ी फ्रसट्रेशन थी. मैंने भी वैसे ही भाव अपने चेहरे पर बनाये और कहा- ठीक कह रहे हैं, इन्हें काम से कोई लेना देना नहीं है, बस सैलरी चाहिए, समय से! “इन जैसे आदमियों से ही मिलने के बाद लगता है, इस देश का कुछ नहीं हो सकता है.” उन्होंने कहा.
“सही, एकदम सही!” कह कर मैं मुस्कुराने लगा. पर यह मुस्कराहट कम थी, इनविटेशन ज्यादा था कि आप का लंड मेरे गांड पर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है- पर कुछ लोग है जो अच्छा काम भी कर रहे हैं. मैंने जोड़ा. “हर जगह, कुछ ना कुछ लोग होते ही हैं. वैसे आप जा कहाँ रहे है?” उन्होंने पूछा.
जब भी मैं बोलता था तो घूम कर बोलता था और फिर पहले जैसे ही खड़ा हो जाता था. मैंने घूम कर बोलते टाइम एक बार उसकी पैंट नोटिस की और मेरा रोम रोम खड़ा हो गया. वहाँ एक कड़क लंड साफ साफ दिख रहा था; बहुत मोटा लग रहा था. मेरा गला सूख गया.
“मैं दिल्ली जा रहा हूँ. मैं अपने पापा के लिए प्लेटफॉर्म टिकट लेने के लिए खड़ा हूँ.” कहकर मैं सीधा हो गया. वो मेरे और नजदीक आ गए और मुझे अब साफ साफ अपने चूतड़ पर लंड की गर्माहट, महसूस हो रही थी. “मैं भी दिल्ली ही जा रहा हूँ.” उन्होंने कहा.
तभी मेरा ध्यान, हमारे लाइन से अलग खड़े कुछ लड़कों पर गयी, वो बहुत ध्यान से मुझे घूर रहे थे. मुझे लगा कि शायद ये उन लोगों में से कोई होगा, जिससे मैंने पहले ही कही गांड मरवाई होगी. पर उनका चेहरा मुझे याद नहीं आ रहा था. और यही मेरी क्वालिटी है कि मैं नाम भले ही भूल जाऊं पर चेहरा कभी नहीं भूलता.
तब मुझे ध्यान आया कि वो पीछे वाला आदमी कुछ ज्यादा ही चिपक कर खड़ा है और वो लोग उसी को देखकर मुस्कुरा रहे हैं. मैं सहम गया और लाइन से थोड़ा बाहर आ कर खड़ा हो गया.
1-2 लोगों के बाद मेरा नंबर आ गया, मैंने अपना टिकट लिया और बाहर आ गया. मेरे पापा पहले से ही आकर खड़े थे, उन्होंने बताया कि मेरा रिजर्वेशन कंफर्म हो गया है AC में. हम प्लेटफॉर्म पर आ गए. तभी वो आदमी भी प्लेटफॉर्म पर दिखा मुझे. वो निरंतर मुझे देख रहा था और मैं भी देख लेता था. उसकी पर्सनालिटी ही ऐसी थी. मेरे गांड में गजब की हलचल मची थी. और पसीना भी आ रहा था, ऐसा लगता था, जैसे चूत से पानी आता है, वैसे ही मेरे गांड से आ रहा था.
संजोग कहेंगे या क्या? जब ट्रेन आयी तो मैंने उस आदमी को में मेरे ही डब्बे B3 में चढ़ते हुए देखा, मैं एक दरवाज़े से चढ़ा तो वो दूसरे वाले से. उसने मुझे चढ़ते हुए देखा और स्माइल किया. मेरा सीट साइड लोअर था एकदम टॉयलेट के बाजु में. मेरे पापा मुझे बैठाने के बाद मेरे लिए फल, नमकीन, बिस्कुट और पानी खरीद कर के लाये, मुझे देने के बाद वहाँ से चले गए.
मैं बार बार उसे देखता था, वो मेरे सामने ही बैठा था, 5-6 खाना छोड़ कर. ट्रेन में ज्यादा भीड़ नहीं थी, हर खाने में 3-4 लोग ही बैठे थे, जो आपस में बात करते और कभी कभी तेज तेज हँसते रहते थे.
थोड़ी देर बाद वो वहाँ से उठा और मेरी तरफ आने लगा. वो जब मेरी तरफ चल रहा था, तो मेरी तरफ ही देख रहा था, मेरा दिल बहुत जोर जोर से धड़कने लगा. जैसे जैसे वो मेरे नजदीक आ रहा था, मेरा चेहरा लाल होता जा रहा था. जब वो नजदीक आ गया तो मैं नीचे देखने लगा. मैंने सोचा वो मेरे पास ही आ रहा है पर वो आगे निकल गया और वो टॉयलेट में घुस गया.
मैं मन ही मन हँसने लगा.
थोड़ी देर बाद जब वो बाहर निकला तो वो मेरी तरफ देखकर स्माइल करने लगा. वो स्माइल कम था, मानो वो पूछ रहा था- क्या हुआ? मुझे छेड़ने के अंदाज़ में. मैं शरमा गया.
वो हाथ धोने लगा. मेरे बाजु में किसी का, न्यूज़ पेपर था. शायद जो मेरे पहले वहाँ बैठा था, जो नागपुर उतरा होगा उसका था. मैं उसे उठा कर पढ़ने लगा. “क्या मैं यहाँ थोड़ी देर के लिए बैठ सकता हूँ?” उसने मेरे पास आकर पूछा. “थोड़ी देर क्यों, आप जब तक मर्ज़ी करे तब तक बैठ सकते हैं.” कहते हुए मैं अपने पैर नीचे कर के बैठ गया, मेरे चेहरे पर हल्की सी स्माइल थी, वो मेरे बाजु में बैठ गया. उसके शरीर से गजब की सुगंध आ रही थी. मुझे ऐसा लगता था की कहीं मुझे चक्कर ना आ जाये.
“मेरा नाम समीर है, आप को क्या बुलाते हैं?” उसने पूछा. मैं अपना गला साफ करते हुए बोला- शिवम! इससे ज्यादा कुछ बोल नहीं पाया.
“आप दिल्ली क्या करने जा रहे हैं?” “पापा का काम है, कुछ डॉक्यूमेंट है, उनके दोस्त को देना है, अर्जेंट है, पोस्ट नहीं कर सकते थे इसलिए मुझे भेजा.” मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा. क्या मस्त दिख रहा था.
“आप क्या करते हैं?” मैंने पूछा. “प्लीज ‘आप’ ना बोलो, तुम मुझे बूढ़ा बना दोगे.” कह कर वो हँसने लगा, मैं भी हँसने लगा. “तुम मुझे समीर बोल सकते हो.”
फिर हम ऐसे ही बात करने लगे. मुझे पता चला कि वो दिल्ली से ही है और अच्छे खासे परिवार से है, यहाँ पर एक शादी अटेंड करने आये थे और ये उनकी नागपुर की पहली ट्रिप थी. उन्हें नागपुर बहुत अच्छा लगा. इसी बीच उसने भी एक पेपर उठा लिया और पढ़ने लगा. इंटरेस्टिंग बात ये थी कि जब उसने अपने हाथ फैलाये न्यूज़ पेपर खोलने के लिए तो उसने दाहिना हाथ मेरी जांघ पर रख दिया. मैं कुछ बोल नहीं सकता था. और मैं बोलू भी क्यों, मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.
धीरे धीरे वो हाथ खिसक कर मेरे लंड के ऊपर आ गया. मेरा लंड तो जैसे, उसके अंदर ज्वालामुखी फुट रहा हो, वो एक दम खड़ा हो गया. शायद समीर ने भी महसूर कर लिया और उसने अब पूरा आराम से मेरे लंड पर ही अपना हाथ रख दिया.
कोई देख ना ले, इसलिए मैंने अपना न्यूज़ पेपर ऐसे लगा लिया कि सामने से ना दिखे. जैसे मुक्का मारते हैं, वैसे ही समीर मेरे लंड को धीरे धीरे ठोकता रहता था. मुझे ऐसा लगता था कि मेरा वीर्य अभी निकल जायेगा.
जब मुझसे नहीं रहा गया तो मैंने उसका हाथ पकड़ के हटा दिया. मेरी साँसें बहुत तेज हो गयी थी. वो भी समझ गया और साइड में बैठ गया. “तुम व्हाट्सएप्प यूज़ करते हो?” समीर ने पूछा. मैंने हां से सर हिलाया. उसने पूछा- क्या मुझे नंबर मिल सकता है?
तो मैंने अपना नंबर दिया, उसने नंबर सेव किया और हेल्लो मैसेज कर के अपने सीट पर चला गया. मैंने उसका नंबर सेव किया और टॉयलेट में चला गया. जब मैंने अपनी पैंट खोली तो देखा कि मेरी अंडरवियर पूरी गीली हो गयी है. मेरा वीर्य निकल गया था, मेरे अंडरवियर को गीला कर दिया था. बाहर से भी गीला गीला दीखता था. फिर भी मेरा लंड अभी भी खड़ा था.
मैंने पेशाब किया और थोड़ी देर वहीं खड़ा रहा. मेरा दिल बहुत जोर से धड़क रहा था. यह मेरा पहला अवसर नहीं था पर समीर बहुत हैंडसम था और उसका लंड बहुत बड़ा लग रहा था इसलिए मेरा दिल बैठ जाता था सोच सोचकर. ऐसा लगता था कि कब उसके लंड को अपनी गांड में ले लूं!
हिंदी गे स्टोरी जारी रहेगी. [email protected]
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