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दोस्तो, मेरा नाम रुद्र ठाकुर है, और मैं भोपाल में रहता हूँ। मैं अपने आप को बहुत बड़ा इनसेस्ट आदमी समझता हूँ। इनसेस्ट वो इंसान होता है जो अपने ही घर की औरतों के साथ सेक्स करता है। मैंने भी अपने ही घर की बहुत सी औरतों से सेक्स किया है, मगर मैं शुरू से ऐसा नहीं था, पहले तो मैं बहुत ही शर्मिला सा लड़का था, मगर जो किस्मत में लिखा होता है, वो तो होता ही है, और ऐसे ही एक बार एक ऐसी घटना घटी जिसने मेरे जीवन की दिशा ही बदल दी। मगर ये सब कैसे हुआ, कब हुआ, आज मैं आपको उसकी ही बात बताने जा रहा हूँ।
मैं अपने परिवार के साथ में भोपाल में रहता हूँ, घर माँ पिताजी, बड़ी बहन और मैं हम चार ही लोग है। कुछ ही दूरी पर हमारा चाचा जी का घर है, चाचा फौज में हैं। घर में चाची और उनके बच्चे ही रहते हैं। उनका घर पास होने की वजह से हमारा हर वक़्त का उनके घर आना जाना है। हमें कभी यह पता नहीं चला कि हमारे और चाचा के घर में क्या फर्क है, बस यही लगता था कि हमारे दो घर हैं।
जब तक मैं छोटा था, बच्चा था, मैंने न तो कभी इन बातों पे ध्यान दिया, और न कभी मुझे ऐसा कुछ नज़र आया, क्योंकि चाची को भी मैं अपनी माँ ही समझता था, बस कहता चाची था। मगर ज्यों ज्यों मैं बड़ा होता गया, मुझे कुछ कुछ समझ आने लगा कि मेरी चाची जो है वो कोई ठीक औरत नहीं है, तब मैं 12वीं क्लास में था, जब मुझे पहली बार यह पता चला।
माँ पिताजी को बता रही थी कि अंजलि का बाहर कहीं चक्कर चल रहा था। अंजलि मेरी चाची का नाम है। मुझे बड़ा अजीब लगा कि यार चाचा इतने हैंडसम आदमी है, इतनी अच्छी सेहत है, शक्ल से ही हट्टे कट्टे मर्द लगते हैं तो चाची को बाहर किसी और की तरफ देखने की क्या ज़रूरत है। मुझे ये बात तब समझ नहीं आई थी। मगर ये जो नाजायज रिश्ते होते हैं न, कभी छुपते नहीं हैं।
एक बार चाची छुट्टी पर घर आए हुये थे, एक मिलिट्री ऑपरेशन में उनकी टांग ज़ख्मी हो गई थी, तो इलाज के बाद उनको आराम करने के लिए 2 महीने की छुट्टी पर भेज दिया गया। इसी दौरान एक दिन चाची के चक्कर का चाचा को भी पता चल गया, दोनों में बहुत झगड़ा हुआ, चाचा उठ नहीं सकते थे, वरना उस दिन चाची की खूब पिटाई हो जाती।
मैं कुदरती उस वक़्त उनके घर गया, तो अंदर से शोर सुन कर मैं बाहर ही रुक गया। अंदर चाचा के चीखने की और चाची के रोने की आवाज़ आ रही थी। मैं रुक गया और सुनने लगा कि आखिर झगड़ा किस बात पर हो रहा है।
चाचा बोले- तो अब तुम्हें इतनी आग लग रही है कि अगर मैं घर में नहीं हूँ, तो तू किसी और के नीचे लेट जाएगी, मादरचोद, मेरे से पेट नहीं भरता तेरा? चाची भी रोते रोते बोली- आप चार दिन के लिए आते हो, और फिर सारा साल मुझे अकेली को मरना पड़ता है, आप क्या जानो, अकेले रहने की तकलीफ क्या होती है। चाचा गरजे- क्यों, मैं वहाँ अकेला नहीं रहता क्या? चाची फिर बोली- आपके साथ तो बहुत से आपके साथी होंगे, मेरे पास कौन है जिस से मैं अपने दिल की बात करूँ, मेरा भी दिल है, मेरे भी अरमान हैं। चाचा फिर बोले- तो इसका मतलब ये कि अगर पति घर में नहीं है तो किसी और से यारी कर लो, किस और से अपनी माँ चुदवा लो। हैं? हरामजादी, कितने समय से उसका लंड खा रही है, कुतिया, बता मुझे।
मैंने देखा चाची भी पूरी बेशर्मी पर उतरी हुई थी, बोली- एक साल हो गया। चाचा कुछ चुप से हो गए, बोले- शादी करेगा तुझसे? चाची बोली- नहीं, वो शादीशुदा है, बाल बच्चेदार है। चाचा फिर भड़के- तो हवस का नंगा नाच खेलने के लिए वो तुम्हारा इस्तेमाल कर रहा है, समझ में नहीं आता, क्या करूँ, दिल तो कर रहा है कि तुम्हें गोली मार दूँ।
चाची डर गई और जा कर चाचा के पाँव में पड़ गई- नहीं, मुझे माफ कर दो, मैं बहक गई थी, अपनी मजबूरी के हाथों विवश हो कर मैंने ऐसा काम किया. और चाची रोने लगी। चाची अब चाचा के पास थी तो चाचा ने उसके बाल पकड़ लिए और उसके मुँह पर तड़ातड़ कई चांटे मारे और बालों से पकड़ कर उसकी चोटी खींच दी, मुझे भी बाहर से ये सब देखते हुये डर सा लगा कहीं चाचा चाची को मार ही न दें, तो मैं भी आगे को बढ़ कर उनके सामने हो गया। चाचा ने मुझे देखा और रोआब से पूछा- तू यहाँ कब आया? मैंने चाचा से डरते डरते कहा- जी थोड़ी देर हुई।
तो चाचा ने चाची से कहा- ले देख ले, अब तेरी काली करतूत का बच्चों को भी पता चल गया, छिनाल, अब बोल क्या कहती है? और चाचा की जो टांग ठीक थी, वही उन्होंने चाची को दे मारी और चाची दर्द से बिलबिला उठी, मैंने जा कर चाची को संभाला। चाची को शायद मैं ही उनके दर्द का सहारा मिला तो वो मुझसे ही लिपट कर रोने लगी। बेशक चाची मुझसे लिपटी थी, मगर उनके नर्म और बड़े बड़े मम्में जो मेरे कंधे से सटे थे मुझे बड़ा आनन्द दे रहे थे। बेशक वो मेरी चाची थी, और मैंने कभी उन्हें पहले गंदी नज़र से न कभी देखा, न छुआ था, मगर आज तो वो मुझसे लिपटी पड़ी थी।
मैं भी 18 साल का जवान हो गया था और अब मेरी सेक्स के प्रति चाहत बढ़ रही थी। मगर चाची का मुझसे यूं लिपट कर रोना तो मुझे इतना अच्छा लगा कि उसने तो मेरी चाची के प्रति सारी सोच ही बदल दी। चाचा ने गुस्से से कहा- जानता है रुद्र, ये तेरी चाची, किसी और से अपनी माँ चुदवा रही है। चाची भी एकदम से पलटी- चुप रहो, बच्चों को इन सब बातों में मत लाओ। चाचा चीखे- क्यों न लाऊं, अब बच्चे बड़े हो गए हैं, उन्हें भी तो सब पता चले कि उनके घर वाले क्या कर रहे हैं। कुत्ती, छिनाल, अपने यार से भी ऐसे ही लिपटी होगी।
चाची ने एकदम से मुझे छोड़ा, और चाचा पर गरजी- हाँ लिपटी हूँ, और इससे भी ज़्यादा लिपटी हूँ, और आगे भी लिपटूँगी, कर ले जो तुझसे होता है, जा मर जा कहीं जा कर, अब मैंने भी सोच लिया, जो करना है, खुल कर करूंगी, तेरे सामने करूंगी, तेरे से जो उखाड़ होता है, उखाड़ ले। चाची का ये रूप देख कर मैं और चाचा दोनों सहम गए।
अब चाचा को भी समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करें, मेरी तो क्या समझ में आना था। फिर चाचा जो पहले गरज रहे थे, थोड़ा धीमे स्वर में बोले- सुन अंजलि, ऐसा नहीं हो सकता कि तू घर के बाहर मेरी इज्ज़त को मिट्टी में मत मिला। उनका नर्म सा स्वर सुन कर चाची भी नर्म पड़ गई और जाकर उनका घुटना पकड़ कर बैठ गई- मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ, आपको कभी धोखा नहीं देना चाहती थी, पता नहीं क्यों मेरे भाग फूटे कि मैं उसकी चिकनी चुपड़ी बातों में आ गई।
चाची रोने लगी तो चाचा उसका सर सहलाने लगे, फिर बोले- तू ऐसा कुछ क्यों नहीं करती के जिस से घर से बाहर न जाना पड़े तुम्हें। चाची बोली- ऐसा क्या है, जिस से मैं घर से बाहर न जाऊँ? चाचा बोले तो कुछ नहीं पर उन्होंने मेरी तरफ देखा, उनके देखने का अर्थ तो मैं नहीं समझा, मगर मेरे दिमाग में जैसे एक खतरे की घंटी बजी हो।
चाची ने पहले चाचा की ओर देखा और फिर मेरी ओर, फिर बड़ी हैरानी से बोली- रुद्र?!? आप पागल तो नहीं हो गए हो? चाचा बोले- नहीं, मैं पागल नहीं हूँ, अब अपना रुद्र भी जवान हो गया है, ये तुम्हारा अच्छे से ख्याल रखेगा। फिर मुझसे बोले- क्यों रुद्र, अपनी चाची का ख्याल रखेगा न? मैं क्या कहता बस हल्के से सर हिला दिया।
चाचा बोले- चल जा घर जा, कल मैं जब बुलाऊँ तब आना। मैं चुपचाप अपने घर आ गया.
उस दिन मैंने पहली बार चाची को सोच कर अपना लंड हिलाया, मैं बार उस नर्म एहसास को महसूस कर रहा था, जब चाची का मोटा मम्मा मेरे कंधे को छू रहा था। मैं सोच रहा था कि अगर मुझे चाची की चुत चुदाई करनी पड़ी तो मैं कैसे चोदूँगा, बाथरूम में खड़ा मैं कई तरह से अपनी कमर हिला हिला कर प्रेक्टिस करता रहा। अभी तक मैंने चूत चोदनी तो क्या, देखी तक नहीं थी कि होती कैसी है।
अगले दिन दोपहर बाद चाचा का फोन आया कि रुद्र इधर आ। मैं अपने बाल मन में सैकड़ों अरमान लिए चाचा के घर जा पहुंचा। चाचा ने मुझे अपने पास बैठाया, इतने में चाची चाय लेकर आ गई, उसने बहुत सुंदर साड़ी पहनी थी, पूरा मेक अप किया था। खूबसूरत लग रही थी। गहरे हरे रंग की साड़ी, सफ़ेद ब्लाउज़, ब्रा में कसे हुए उसके मम्मे, और थोड़ा सा बाहर झाँकता उसका क्लीवेज, जिसमें उसके गले की चेन का पेंडेंट फंसा हुआ था।
चाय पीते पीते चाचा बोले- रुद्र, कल जो हमारा झगड़ा हुआ, वो तुमने सुना, तुम्हें पता लग ही गया होगा के तुम्हारी चाची का किसी और मर्द से चक्कर है। मगर मैं चाहता हूँ कि हमारे घर की कोई भी औरत बाहर ना जाए, अगर उसको ज़रूरत है, तो अपने घर में ही ढूँढे, बाहर किसी का क्या पता, कौन है कौन नहीं, अपने का ये है कि घर की बात घर में ही रह जाएगी, काम भी बन जाएगा, और किसी को पता भी नहीं चलेगा, और बदनामी भी नहीं होगी। मैंने चुपचाप चाचा की बातें सुनता रहा।
वो आगे बोले- कल तुम्हारे जाने के बाद हमने इस विषय पर बहुत सोचा, और फिर ये तय किया कि इस काम के लिए तुम सबसे सही बंदे हो। बोलो, अपनी चाची को संतुष्ट कर पाओगे? अब मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं थी, तो मैं हकलाते हुये चाचा से कहा- चाचाजी मैं… मैं… चाची से कैसे…? वो बोले- कल मैंने देखा था, जब वो तुमसे लिपटी हूई थी तो तब तो बड़े मज़े से उसके साथ तू भी चिपका पड़ा था, भोंसड़ी के अब मेरे सामने ड्रामें करता है।
मैंने समझ लिया के चाचा ने मेरी चोरी पकड़ ली थी, अब किसी भी ड्रामे की कोई गुंजाइश नहीं थी, मगर शर्म अभी भी बाकी थी।
चाचा बोले- अंजलि से मैंने बात कर ली है, और वो तुमसे संबंध बनाने को मान गई है, अब तुम्हारी भी मंजूरी चाहिए, बोलो, करोगे अपनी चाची के साथ? मैंने सोचा, अब अगर चुप रहा तो कहीं ये मौका मेरे हाथ से न चला जाए, सो मैंने हल्के से सर हिला कर हाँ कर दी।
मगर मुझे शरमाता देख चाची ने मेरे सर को सहला दिया और बोली- ये तो बहुत शरमाता है। चाचा बोले- रुद्र सुन, पहले कभी किया है? मैंने ना में सर हिलाया।
तो चाचा बोले- अबे चूतिये, अब तक क्या हाथ से हिला हिला कर ही जी रहा है। चाची ने चाचा को मीठी झिड़की थी- चलिये न आप भी, एक तो वो पहले से नर्वस है, दूसरा आप उसे और डरा रहे हो। फिर चाची मुझसे बोली- देखो रुद्र, एक न एक दिन तुमको ये सब करना ही है, इस लिए डरो मत, शर्माओ मत, मैं और तुम्हारे चाचा है, हम तुम सब सिखाएँगे, ठीक है. मैंने हाँ में सर हिला दिया मगर अंदर से मेरी फटी पड़ी थी कि पता नहीं कुछ हो भी पाएगा मुझसे या नहीं।
फिर चाचा बोले- तो चलो फिर शुरू करो, मैं भी देखूंगा.
मैं तो वैसे ही बैठा रहा, मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूँ। पर चाची उठ कर आई, और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बिस्तर पर ले गई, चाचा भी सामने ही सोफ़े पर अधलेटे से बैठे थे, एक टांग पर प्लास्टर और वो टांग उन्होंने सामने मेज़ पर रख रखी थी। मैं और चाची बेड पर थे, हम दोनों ने अपनी टाँगें नीचे लटका रखी थी।
चाची ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी जांघ पर रख लिया, साड़ी के अंदर से भी मुझे उनकी गुदाज़ जांघ का एहसास हुआ, मेरे चेहरे पर अपना हाथ फिरा कर बोली- इतना डर क्यों रहे हो? बड़ी मुश्किल से मैं बोल पाया- नहीं चाची। वो बोली- अब मैं तुम्हारी चाची नहीं हूँ, मुझे मेरे नाम से पुकारो, अंजलि कहो। मैंने थोड़ा सा हिचकिचाते हुये कहा- अंजलि। सच में बड़ा अच्छा लगा मन को।
उधर से चाचा बोले- अंजलि, ऐसे ये नहीं खुलेगा इसे कुछ दिखा कर गरम करो।
चाची उठ खड़ी हुई और बिल्कुल मेरे सामने उन्होंने अपने कंधे से अपनी साड़ी का आँचल उतारा और नीचे फर्श पर गिरा दिया। आज पहली बार चाची को ब्लाउज़ में देखा था, सफ़ेद ब्लाउज़ में उनके उठे हुये चूचे बहुत मस्त लग रहे थे। देखते देखते चाची ने अपनी साड़ी खोल दी, सिर्फ एक सफ़ेद ब्लाउज़ और हरे रंग के पेटीकोट में वो मेरे सामने खड़ी थी। पेटीकोट का नाड़ा अपने पेट पर सामने बांध रखा था।
चाची ब्लाउज़ पेटीकोट में चल कर मेरे पास आई, उनके मम्में बिल्कुल मेरे चेहरे के सामने थे, दो बड़े ही उन्नत, भरपूर, मोटे, गोरे और नर्म मम्मे, जो मेरे मन में हलचल मचा रहे थे। मैं मन ही मन सोच रहा था, क्या आज मुझे इन मम्मों से खेलने का मौका मिलेगा।
चाची ने मेरा चेहरा ऊपर उठाया और अपने सीने से लगा लिया। चाची के दोनों मम्में अब मेरी गाल और मेरे चेहरे पर दबा कर लगे हुये थे, मुझे तो जन्नत का नज़ारा आ रहा था। मैंने भी चाची की कमर पर अपनी बाहें कस दी। चाची ने मेरा मुँह सीधा किया तो मैंने ब्लाउज़ के ऊपर से ही चाची के मम्मे पर किस किया, चाची मुस्कुरा उठी और बोली- पिएगा लल्ला? मैंने भी हां में सर हिलाया।
चाची थोड़ा सा पीछे को हटी और अपने ब्लाउज़ के हुक खोलने लगी, अपने ब्लाउज़ के हुक खोल कर उसने अपना ब्लाउज़ सारा ही उतार दिया। वाह… क्या मस्त लग रही थी चाची सफ़ेद ब्रा और पेटीकोट में… मेरी तो आँखें चौंधिया गई, उसकी सेक्सी फिगर देख कर। चाची ने अपनी भवें उचका कर पूछा- कैसा लगा? मैंने भी बड़ी सारी स्माइल दे कर कहा- मस्त, चाची आप तो कोई अप्सरा हो। उधर से चाचाजी बोले- और आज से ये तेरे ही दरबार में नाचेगी, अगर तूने इसकी तसल्ली करवा दी तो।
मैं चुपचाप बैठा आगे होने वाली घटना का इंतज़ार कर रहा था। इतना तो तय था कि कि चाची की चुत मेरे लिए चाचा का उपहार थी. [email protected] कहानी का अगला भाग : चाची को चाचा के सामने चोदा-2
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