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दोस्तो, मेरे एक मित्र हैं, श्रीमान प्रभात। प्रभात के माता पिता का स्वर्गवास कई साल पहले हो चुका था। प्रभात अपने दम पर ही पढ़ लिख कर इस काबिल बना के आज वो एक सरकारी दफ्तर में अच्छे ओहदे पर नौकरी कर रहा है। मेरे साथ प्रभात का बचपन से ही याराना है, हम दोनों ने अपनी 15 साल की दोस्ती में हर काम एक साथ ही किया है। प्रभात का ज़्यादा समय हमारे घर में ही बीता है इसलिए वो मेरे मम्मी पापा को ही मम्मी पापा कहता है और हमारे घर से ही उसको घर परिवार का पूरा प्यार और सम्मान मिला है।
जब उसकी सरकारी नौकरी लग गई तो उसकी शादी की बात भी चली। प्रभात की एक बुआ ही उसकी रिश्तेदारी में थी, उसने ही एक बहुत सुंदर लड़की का रिश्ता ढूंढा, सिर्फ माँ और बेटी थी, उस घर में। प्रभात को भी लड़की पसंद आ गई, जब दोनों तरफ से सेटिंग हो गई, तो प्रभात की शादी भी हो गई। बहुत ही सादे से ढंग से शादी हुई क्योंकि लड़की के पिता न होने की वजह से से लड़की ने अपनी कमाई में ही शादी की थी।
शादी को अभी 4 महीने ही हुये थे कि एक दिन प्रभात मेरे पास आया और बोला- यार तुझसे एक बात करनी थी। मैंने कहा- तुझे कब से पूछ कर बात करने की आदत पड़ गई, चल पूछ, क्या बात है? वो बोला- यार कुछ दिन हुये तन्वी बोली, क्यों न हम मम्मी को अपने पास बुला लें। मैंने कहा- तो दिक्कत क्या है, बुला ले। वो बोला- अरे यार, ये कुछ दिनों की बात नहीं है, वो हमेशा के लिए बुलाना चाहती है।
मैंने कहा- यार, यह तो प्रोब्लम है, हमेशा के लिए तो मुश्किल हो जाएगी। प्रभात बोला- यार तुझे तो पता है, अभी नई नई शादी है, हम तो साला कपड़े ही नहीं पहनते घर में, अगर बुड्डी आ गई तो हमारी तो शादीशुदा ज़िंदगी पर सेंसर बोर्ड बैठ जाएगा, साला सारा मजा ही चला जाएगा. वो थोड़ा चिढ़ कर बोला।
मैंने कहा- तो यार, इस बारे में तू तन्वी से बात कर, उसे समझा। प्रभात बोला- अरे बहुत समझा लिया, अकेली होने की वजह से इसकी भी अपनी माँ से बहुत अटेचमेंट है, तन्वी भी कह रही है कि माँ तो दूसरे कमरे में रहेगी। मगर दिक्कत यह है कि जब हम प्रोग्राम शुरू करते हैं तो तन्वी की आदत है, वो शोर बहुत मचाती है। अब रोज़ रोज़ ये सब मेरी सास भी सुनेगी। क्या अच्छा लगता है?
मैंने हंस कर कहा- तो अपनी सास को पूछ लेना किसी दिन, तेरी शादी पे देखी थी, सास तो तेरी अभी भी माल है। प्रभात मेरी बात सुन कर मुस्कुरा पड़ा और बोला- भोंसड़ी के, तू अपना लंड पहले अकड़ा लिया कर। इधर मेरा काम बिगड़ रहा है और तुझे मेरी सास के खंडहर में भी बहार दिख रही है। मैंने कहा- अरे मुझे तो दिख रही है, साले तू भी देख ले। हो सकता है, किसी दिन तेरी सास तेरी कमीनी हरकत देख कर खुद ही वापिस चली जाए। प्रभात बोला- और अगर नहीं गई तो? मैंने कहा- अगर नहीं गई, तो हो सकता है, तेरे नीचे आ जाए! कह कर मैं हंस पड़ा।
मगर प्रभात कुछ चिड़चिड़ा सा होकर उठ कर चला गया, बात आई गई हो गई।
अगले हफ्ते प्रभात की सासु माँ अपना बोरिया बिस्तर उठा कर उसके घर आ गई। हमारी लाईफ आम दिनों की तरह ही चलने लगी। कभी कभी जब मैं प्रभात के घर जाता, तो मुझे लगता कि प्रभात की सास का देखने का तरीका कुछ अलग सा है। पहले वो जिस तरह देखती थी, अब वो उस तरह नहीं देखती। मुझे एक बार लगा कि शायद आंटी लाईन दे रही है। अब रोज़ रात को अपने दामाद के द्वारा निकाली गई अपनी बेटी की चीखें सुनती होगी, तो सोचती तो होगी कि दामाद जी अच्छे से अपना काम कर रहे हैं, कोई ऐसा अच्छा सा मुझे भी मिल जाए। मैं भी जब भी प्रभात के घर जाता, उसकी सास के साथ बहुत बातें करता… मेरा पूरा मूड था कि अगर ये ढलता हुआ हुस्न मान जाए तो अपनी शादी से पहले पहले तजुर्बेकार औरत की भी ले कर देख लूँ।
मगर सीमा आंटी मेरे से बात तो खूब खुल कर हंस बोल कर करती, मगर गाड़ी लाईन पर नहीं आ रही थी।
करीब 2 महीने बाद एक प्रभात मेरे पास आया, मुझे वो बहुत परेशान सा लगा। मैंने उसे पूछा, तो बोला- अरे यार, बड़ी मुसीबत में हूँ, क्या बताऊँ, बताता हूँ तो मुसीबत न बताऊँ तो मुसीबत। मैंने कहा- अरे यार हम तो बचपन के दोस्त हैं, बोल क्या दिक्कत है, जो भी प्रॉबलम होगी, हम मिल के सुलझा लेंगे।
वो बोला- जिस बात का डर था, वही हो गई है। मैंने फिर पूछा- क्या हो गया? वो बोला- अरे यार, सासु माँ की वजह से मैं मुसीबत में घिर गया हूँ।
मैं कुछ कुछ समझ तो गया, मगर फिर भी पूछा- क्या कर दिया तेरी सास ने? वो बोला- अरे यार उनके आने से पहले जो समस्या हमने डिस्कस की थी, वही हो गई। “मतलब?” मैंने पूछा- क्या तेरी सास भी तेरे पे फिदा हो गई? मैंने बात मजाक में कही, मगर प्रभात ने बड़े गंभीर लहजे में सर झुका कर कहा- हाँ। फिर थोड़ा रुक कर बोला- अब तो वो अपने नाहक प्रदर्शन से भी बाज़ नहीं आती, कभी अपनी टाँगें दिखाएगी, कभी जान बूझ कर क्लीवेज दिखाती है। उसकी आँखें और बोलने का लहजा ऐसा हो गया कि बस मेरे एक बार कहने की देरी है, अगले पल वो मेरे बिस्तर पर होगी।
मैंने कहा- वाह बेटा तेरे तो मज़े हैं फिर। सोचता क्या है, ठोक दे साली बुड्ढी को। मगर प्रभात बोला- अरे नहीं यार, कल को अगर तन्वी को पता चल गया, तो मेरा तो बसा बसाया घर उजड़ जाएगा। मैंने पूछा- तो तूने तन्वी को अभी तक बताया क्यों नहीं, तेरी बीवी है, उसे खुल कर बोल, उस पर विश्वास कर, और इस समस्या का सही हल तो वही निकाल सकती है। प्रभात ने पूछा- कौन सा सही हल। मैंने कहा- देख, दो बातें हैं, पहली कि तेरी सास को वापिस जाना होगा। तन्वी खुद अपनी माँ को वापिस भेजे अगर उसे अपनी गृहस्थी बचानी है, या अपनी माँ को रोके, उसे समझाये कि तुम उसके दामाद हो, उसके बेटे जैसे। पर अगर वो अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आती और वापिस नहीं जाती तो फिर तेरे लिए समस्या है। अगर तेरी जगह मैं होता, तो सच कहता हूँ, तेरी सास जैसी मेरी सास होती, मैं तो खड़का देता आंटी को। पर तू कुछ और तरह सोचता है। या फिर एक काम और कर!
प्रभात ने पूछा- क्या? मैंने कहा- अपनी सास से मेरी सेटिंग करवा दे, सारी गर्मी निकाल दूँगा साली की। प्रभात हंस पड़ा- तू साले अपनी सेटिंग का ही सोचा कर। कमीना कहीं का। मैंने कहा- देख हंसी मजाक अलग बात है, तू तन्वी से बात कर, और खुल कर बोल कि तेरी माँ हम दोनों के बीच आने की कोशिश कर रही है, या तो उसे रोक ले, या वापिस भेज दे, अगर यहाँ रही तो ये न हो कल को तेरी माँ तेरी ही सौत बन जाए।
मैंने बहुत समझा बुझा कर प्रभात को भेजा मगर उसकी कोई भी तरकीब काम न आई। सबसे बड़ी बात, तन्वी को इस बात से कोई खास ऐतराज नहीं था कि उसकी माँ उसके पति पर डोरे डाल रही है।
2 दिन बाद प्रभात फिर मेरे पास आया। मैंने उसे कहा- देख बेटा, अगर तन्वी भी इस बात की गंभीरता को नहीं समझ रही है, तो चढ़ जा सूली पर, पकड़ ले अपनी सास को।
उसके एक हफ्ते बाद शाम को मैं और प्रभात बैठे पेग लगा रहे थे, प्रभात बोला- यार, मेरी तो सारी स्कीम फेल हो गई, न तन्वी समझ रही है और आंटी ने तीन नई साड़ियाँ ली हैं। अगर तू उसके ब्लाउज़ देखे तो कहे कि ये ब्लाउज़ इस आंटी ने पहनने हैं, या हेलेन ने। इतने गहरे गले, इतनी गहरी पीठ, जैसे साली ने नंगेज दिखाने का ठेका ले रखा हो। मैंने कहा- उफ़्फ़… क्या बात है यार! देख मेरी बात मान ले, अब आंटी का पूरा मूड है, या तो तू उसे चोद दे या मुझे सेवा का मौका दे। तू ऐसा कर किसी दिन पेग का प्रोग्राम अपने घर पे रख। दारू के नशे में तू बढ़िया को पकड़ ले, दोनों भाई मिल के चोदा चोदी कर देंगे आंटी की।
प्रभात ने पहले तो कुछ सोचा, फिर बोला- लगता है ऐसा ही कुछ करना पड़ेगा।
उसके बाद बात आई गई हो गई।
हफ्ते दस दिन बाद प्रभात ने मुझे अपने घर पे बुलाया, बोला- मौसम अच्छा है, बरसात हो रही है, घर आ जा, पेग लगायेंगे। मैं भी तैयारी करके चला गया। अपनी शेव की, लंड और आँड की भी अच्छी से शेव की। मुझे पता था कि आज हो न हो, उस सेक्सी आंटी की चूत चोदने का मौका मिलने वाला है।
शाम को 7 बजे मैं उसके घर पहुंचा। घर में भाभी मिली, उनसे नमस्ते हुई, फिर भाभी की माँ भी आई, सफ़ेद साड़ी में से भी मैंने उस आंटी का बड़ा सा क्लीवेज देख लिया। आंटी ने भी जान लिया कि मेरी नज़र कहाँ है मगर वो भी मुस्कुरा कर चली गई कि देख ले बेटा, अगर खाने की इच्छा हो तो बताना। मैं जाती हुई की मोटी गांड मटकती हुई देखने लगा तो प्रभात बोला- चल आ जा अब! और वो मुझे खींच कर ले गया। मैंने प्रभात से कहा- देख बात सुन, तू चाहे कुछ करे न करे, पर आज अगर मुझे मौका मिला गया, तो मैं इसको नहीं छोड़ने वाला। आज पक्का ये आंटी मुझसे चुदेगी।
खैर हम दोनों दोस्त बैठ कर पेग लगाने लगे, खाना पीना चलता रहा, इस दौरान कई बार प्रभात की सास हमारे आस पास से निकली, मगर हर बार मैंने और भी गंदी नज़र से उसे देखा। हालांकि भाभी भी कई बार आई, मगर मैंने उसे देखा तक नहीं, मेरा पूरा ध्यान प्रभात की सास पर ही था।
दारू का दौर खत्म हुआ तो खाना परोसा गया। खाने परोसा ही था कि लाइट चली गई, बाहर बहुत ज़ोर की बारिश आ रही थी। हम मोमबत्ती की रोशनी में खाना खाने लगे। मैंने सोचा, क्यों न पंगा ले कर देखा जाए, क्योंकि मैं नोटिस कर रहा था कि प्रभात की सास हमारी बातों में बहुत इन्टरेस्ट ले रही थी, बड़ा हंस हंस का हम से बात कर रही थी। कई बार उसने अपना आँचल ठीक किया, दिखाया कुछ नहीं पर जब भी वो अपना आँचल ठीक करती मेरी नज़र तो खास करके उसके मम्मों पर जाती, और ये बात उसने भी ताड़ ली थी कि जमाई राज तो नहीं पर जमाई का दोस्त बहुत ध्यान से देख रहा है।
हम सब डाइनिंग टेबल पर बैठे थे, खाना खाते खाते मैंने जानबूझ कर अपना पाँव आगे बढ़ाया और मेरे सामने बैठी प्रभात की सास के पाँव को छू दिया। वो एकदम से चौंक गई, मेरी तरफ देखा, मुझ पर तो पहले से ही शराब का नशा तारी था, मैंने बड़े हल्के से उसको नमस्ते बुला दी। उसने जैसे एकदम से अपने सभी अरमानों को अपने में समेट लिया, चेहरे पर आई अपनी खुशी को दबा लिया। मगर अपनी आँखों की चमक फिर भी नहीं दबा पाई। पहले सिर्फ पाँव को छुआ था, मगर जब उसने भी अपना पाँव पीछे नहीं किया, तो मैंने अपने पाँव से उसका पाँव सहलाना शुरू कर दिया। पाँव से एड़ी तक और फिर एड़ी से ऊपर भी भी सहला दिया। मेरा अपना पाँव नहीं जा पा रहा था, वरना उसके घुटने तक मैं सहला देता।
मेरा पाँव से छूना उसको शायद अच्छा लगा, उसने अपने दोनों पाँव आगे कर दिये, मैंने बारी बारी से उसके दोनों पाँव को अपने पाँव सहलाना चालू रखा। आंटी भी पूरी मस्त हुई बैठी थी और टेबल के नीचे होने वाली इस रोमांटिक कारगुजारी का मजा ले रही थी। खाना खत्म हुआ, दोनों औरतों ने बर्तन उठाए और किचन में रखने लगी।
मैंने मौका देख कर प्रभात से कहा- प्रभात, आज रात को तू अपनी बीवी को अपने पास सुलाना और अच्छे से बजाना उसकी। मैं तेरी सास को पकड़ने वाला हूँ। वो बोला- अरे यार तू मेरे जूते मत पड़वा देना! मैंने कहा- डर मत, आंटी से सेटिंग हो चुकी है, खाना खाते वक़्त सारा समय मैं उसके पाँव सहलाता रहा हूँ, अगर उसे बुरा लगता तो वो मुझे रोक देती, मगर साली ने दूसरा पाँव भी आगे बढ़ा दिया। मौसम भी रंगीन है, तू तन्वी को पकड़, उसकी माँ को मैं देख लूँगा।
खाने के बाद हमने आइस क्रीम खाई, लाइट अभी भी नहीं आई थी न ही बारिश रुकी थी।
जब रात के 12 बज गए और सोने का इंतजाम करना शुरू हुआ, तो मैंने कह दिया- मैं तो बाहर ड्राइंग रूम में दीवान पर ही सो जाऊंगा, आप सब अपने अपने कमरे में सो जाओ। तो प्रभात अपनी पत्नी को चुपके से इशारा करके अपने कमरे में ले गया, उसकी सास दूसरे कमरे में सोने चली गई।
मुझे अभी नींद नहीं आ रही थी, तो मैं ड्राइंग रूम की बड़ी खिड़की के पास खड़ा हो कर सिगरेट पीने लगा, और बाहर बरसात देखने लगा। मगर मेरा सारा ध्यान प्रभात की सास पर ही था, उसके रूम में मोम बत्ती जल रही थी और दरवाजा आधा खुला था। मुझे लग रहा था जैसे आधा खुला दरवाजा एक निमंत्रण था कि अगर चाहो तो आ जाओ। एक एक करके मैंने तीन सिगरेट पी डाली।
थोड़ी देर बाद मुझे प्रभात के कमरे से सिसकारियों की आवाज़ें आने लगी, मतलब प्रभात ने अपना जुगाड़ फिट कर लिया था, और तन्वी उसके नीचे लेटी सिसक रही थी। उसकी सेक्सी आवाज़ सुन कर मेरा तो लंड खड़ा होने लगा। मेरा दिल बहुत कर रहा था कि मैं जा कर प्रभात की सास के साथ लेट जाऊँ। वहीं खड़े खड़े मैंने अपनी बनियान और चड्डी भी उतार दी और अपना लंड हाथ में पकड़ कर हिलाने लगा। 1 मिनट में ही मेरा लंड किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह खड़ा हो गया। मैं सोच रहा था, इधर मैं चूत के लिए तड़प रहा हूँ, उधर एक और औरत लंड के लिए प्यासी है, और एक मर्द और औरत अपनी कामुकता को शांत कर रहे हैं, तो दूसरे जोड़े को भी अपनी कामुकता शांत करनी चाहिए।
अभी मैं सोच ही रहा था, तभी पीछे से आवाज़ आई- नींद नहीं आ रही है क्या? एक बार तो मैं काँप गया, क्योंके उस वक़्त मैं तो बिल्कुल नंगा था। पीछे मुड़ कर देखा, प्रभात की सास खड़ी थी, उसने नाईटी पहन रखी थी। मैंने सोचा कि अगर मैं इतनी धीमी से रोशनी में उसको देख पा रहा हूँ, तो वो भी तो मुझको देख सकती होगी। मैं बिना कोई शर्म या परवाह किए उसकी तरफ घूम गया और बोला- सोने तो लगा था, मगर प्रभात के कमरे से आने वाली आवाज़ों ने सोने नहीं दिया, अब तो नींद आने का मतलब ही नहीं। मैं ये देखना चाहता था कि ये औरत मेरी बात का क्या जवाब देती है ताकि मैं उस से आगे बात बढ़ा सकूँ।
उसने मुझे अंधेरे में ही अपनी नज़रों से टटोलने की कोशिश की। मुझे उसके हाव भाव से लगा जैसे वो ये देख रही हो कि मैंने कपड़े पहने हैं या नहीं, जबकि मेरे मन में या विचार आ रहा था कि मैं आगे बढ़ूँ और इसको अपनी बांहों में भर लूँ, और जब मेरा तना हुआ लंड इसके पेट पे लगेगा, तो इसको खुद ब खुद पता चल जाएगा कि मैं इस वक़्त बिल्कुल नंगा खड़ा हूँ।
तभी बाहर बिजली चमकी, बिजली की रोशनी ने एक सेकंड में ही आंटी के आगे सारे तस्वीर साफ कर दी। वो जैसे चौंक गई- आप… आप तो! आवाज़ जैसे उसके हलक में ही फंस कर रह गई। मैं जान गया कि आंटी ने मुझे नंगा देख लिया है, मैंने कहा- वो गर्मी सी लग रही थी न, और मुझे ये भी कोई अंदाज़ा नहीं था कि तुम आ जाओगी. मैंने जान बूझ कर उसे आप की जगह तुम कहा।
मैंने दिमाग में सोचा कि अब तो इसको पता चल गया है कि मैं बिल्कुल नंगा हूँ, पर ये अब भी यहीं खड़ी है, जा नहीं रही है, मतलब शैतानी तो इसके दिमाग में भी है। मैंने अपना गला साफ करके फिर बात आगे बढ़ाई- और वैसे भी अभी मेरी शादी भी नहीं हुई है, अब देखो प्रभात और तन्वी कैसे मज़े ले रहे हैं। मेरे पास तो कोई भी नहीं, जिस से मैं मज़े ले सकूँ, उसको मज़े दे सकूँ। पत्ता तो मैंने फेंक दिया था, अब देखना ये था कि आंटी उठाती है क्या।
वो चुप रही.
मैंने फिर दूसरी बात शुरू की- और वैसे भी तन्वी भाभी की सिसकारियाँ, कराहटें सुन सुन कर तो अब मेरा मन ऐसा हो रहा है कि मेरा मन कर रहा है कि मैं किसी को भी पकड़ लूँ और अपने मन की कर लूँ। रंग,रूप, उम्र मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, बस औरत होनी चाहिए। मेरी बात सुन कर वो पीछे मुड़ी और चली गई।
मैंने देखा कि वो अपने कमरे में चली गई, मगर उसने दरवाजा बंद नहीं किया। मैं बहुत उलझन में था, क्या करूँ, उसके पीछे उसके कमरे में जाऊँ या रहने दूँ। बहुत सोच कर मैं आगे बढ़ा और उसके कमरे के दरवाजे तक गया, अंदर मोमबत्ती की हल्की सी रोशनी थी। मैंने देखा कि आंटी बेड पे चादर ओढ़ कर लेटी थी।
मैं उसके पास जा कर खड़ा हो गया। अब मोमबत्ती की रोशनी में वो मेरा नंगा जिस्म ठीक से देख सकती थी। उसकी निगाह और मेरी निगाह आपस में उलझी थी.
तभी मैंने देखा बेड कि एक किनारे पर आंटी की नाईटी पड़ी थी, मतलब आंटी तो चादर में नंगी है। मैंने अपना लंड अपने हाथ में पकड़ा और उसे हिलाते हुये आंटी के साथ ही बेड पे लेट गया।
मेरे लेटते ही आंटी मुझसे लिपट गई, मैंने भी उसे अपनी बाहों में भर लिया, और बाहों में भरते ही अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिये। मैं खुद को गर्म समझ रहा था, मगर आंटी भी कम गर्म नहीं थी, मुझसे ज़्यादा उसने मेरे होंठ चूसे, तेज़ गर्म साँसें उसकी मेरे चेहरे पे गिर रही थी।
मैंने उसकी चादर उतार कर बेड से नीचे ही फेंक दी, और अपने एक हाथ से मम्मे पकड़ कर दबाये। उसको सीधा करके लेटाया और खुद उसके ऊपर लेट गया, आंटी ने अपनी टाँगें खोली, और मेरी कमर के गिर्द लिपटा ली। मैंने उस से कहा- बहुत ललचा रही थी अपने दामाद को देख कर, आ आज अपने दामाद के यार से मिल। मैं करूंगा तेरी चूत ठंडी। उसने मुझे और ज़ोर से अपनी बाहों में कस लिया।
अब ज़्यादा देर करने की कोई ज़रूरत तो थी नहीं, मैंने अपना लंड पकड़ा आंटी की चूत पर रखा और अंदर धकेल दिया। एक बार में ज़ोर लगा कर मैंने अपने सारा लंड उसकी चूत में घुसा दिया। आंटी के मुंह से एक ठंडी सांस निकली, एक सांस संतुष्टि की। “पेल, दबा के पेल!” वो बोली। मैंने कहा- बहुत तड़प रही हो चुदवाने को? वो बोली- बात मत कर, काम कर, अब जब तक मैं न कहूँ, गिरना नहीं चाहिए।
मैं लगा पेलने, पहले नीचे लेटा कर पेला, फिर घोड़ी बना कर पेला, फिर अपने ऊपर बैठा कर पेला, फिर खड़ी करके, फिर दीवार सटा कर पेला। हर बार मैं आसान बदलता और पूरे ज़ोर से आंटी की ठुकाई की। आंटी काँप रही थी, दो बार आंटी का पानी छूटा, दोनों बार झड़ते वक़्त आंटी रो पड़ी। मैंने पूछा- क्या हुआ, दर्द हुआ जो रोती हो? वो बोली- नहीं रे पगले… आनन्द ही इतना बढ़ गया कि खुशी के मारे रो पड़ी। मैंने कहा- अगर तुम्हारे रोना तुम्हारे बेटी और दामाद ने सुन लिया तो? वो बोली- जब मैं अपनी बेटी की चीखें हर रात सुनती हूँ, तो क्या एक दिन वो मेरी चीखें नहीं सुन सकती।
मैं आंटी की बहादुरी पर बड़ा खुश हुआ। पिछले आधे घंटे से मैं आंटी को चोद रहा था, अब मुझे भी सांस चढ़ने लगी थी। आंटी बोली- अगर थकने लगा है तो गिरा दे माल! बाकी काम बाद में कर लेना। मैंने भी ज़ोर ज़ोर से घस्से मारे और आंटी की चूत को अपने वीर्य से भर दिया।
आंटी ने खुश होकर मेरे होंटों को चूम लिया- मजा आ गया पट्ठे, दम है तेरे अंदर! अब आराम कर, सुबह से पहले एक बार और आना। और आंटी मुझसे लिपट गई, थोड़ी देर में हम दोनों सो गए। सुबह करीब 4 बजे आंटी ने मुझे जगाया- उठो, अरे उठो। मैंने उठ कर पूछा- क्या हुआ? वो बोली- सुबह होने वाली है, इससे पहले एक झट और लगा लेते हैं।
लाईट आ चुकी थी, इस बार हमने रूम की दोनों बत्तियाँ जगा ली, पूरी रोशनी में मैंने आंटी को खूब तसल्ली से चोदा, इस बार हमारा चोदन करीब एक घंटा चला। जो बूटी मैं खाकर आया था, उसने अपना पूरा असर दिखाया। 5 बजे के बाद मैंने अपने माल से आंटी की चूत फिर से भर दी, सारे मम्मे अपने दाँतों से काट काट कर निशानों से भर दिये। चुदाई के बाद मैं वहीं सो गया।
सुबह करीब 8 बजे तन्वी ने मुझे जगाया और चाय दी, मैंने देखा, आंटी वहाँ नहीं थी, वो बाथरूम में थी। अब चादर के अंदर तो मैं नंगा ही था, तन्वी बोली- आप अंदर कब आए? मैंने झूठ ही कह दिया- अरे भाभी, रात मैं लेट तो गया बाहर… मगर बाद में मुझे ठंड लगी, सो मैं उठ कर अंदर आ कर सो गया। रात लगता है ज़्यादा ही पी गया, तो पता ही नहीं चला के कहाँ पड़ा हूँ। मैं बेशक तन्वी भाभी से आँखें चुरा रहा था, मगर उसके चेहरे की मुस्कान और आँखों की चमक ने जैसे कह दिया हो- भैया, हमको चूतिया बनाते हो। रात क्या क्या हुआ, हमें सब पता है।
थोड़ी देर बाद प्रभात आया, उसने पास आकर बैठ कर मुझसे पूछा- साले रात बड़ी चीखें निकलवाई मम्मी जी की? मैंने कहा- अरे यार पूछ, मत कितनी आग है तेरी सास में, साली का दिल ही नहीं भरता। बहुत प्यासी है लंड की। वो बोला- तभी तुझे ये ड्यूटी दी थी तन्वी ने! “तन्वी ने?” मैंने हैरान हो कर पूछा।
प्रभात बोला- हाँ, तन्वी ने ही मम्मी जी के चोदन के लिए तुझे चुना था। इन माँ बेटी की आपस में पूरी सेटिंग है। मैंने इस काम के लिए मना किया तो तन्वी ने तुझे चुना था। अब तूने अपना काम बढ़िया से कर दिया तो अब तो जब मर्ज़ी आ और लग जा। एक तरफ बेटी चीखा करेगी और दूसरी तरफ माँ।
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