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जिन्दगी में कहीं कभी ऐसा भी होता है… यह घटना मेरी जिंदगी की अकल्पित घटनाओं का आइना है. मेरे साथ जो घटा उस पर मन की कहूँ या फिर मेरे किस्मत का फेर कहूँ, ये तो मैं नहीं जानता लेकिन ये घटित जरूर हुआ है.
भूतिया कहानी का मजा लें.
मेरा गाँव है रायगाँव, गाँव के समीप ही मेरे खलिहान हैं. मैं करीब सत्तावन एकड़ खेती का मालिक हूँ.
सन 2013 के सर्दी के मौसम की बात है. शहर से मैं खेत खलिहानों के कामों से एक महीना रुकने के लिए गाँव आया था. नई फसल का काम था तो खेत में ही रुकने के लिए एक कमरे का घर बनाया था. उसमें सभी सहूलियतें भी थीं, जैसे कि हीटर, फ्रिज वाटर कूलर आदि…
मुझे रात में एकाध पैग लगाने की आदत भी थी तो मैं मेरा स्टफ ओल्ड मंक रम की एक बोतल साथ लेकर आया था.
उस दिन अचानक काले काले बादल घिर आए, बरसात के बादल तो नहीं थे… वो कुछ अनचाहे से बादल भटकते हुए जैसे इस ओर आए थे. फिर आधा घंटा बड़ी जोर की बारिश हुई. बारिश थमने के बाद मैं नुकसान कितना हुआ, ये देखने के लिए बाहर निकला. नजदीक के आम के पेड़ के नीचे मैंने हलचल देखी. कोई स्त्री वहाँ बारिश से बचने के लिए खड़ी है, ऐसा महसूस हो रहा था.
एक स्वभाविक उत्कण्ठा से मैं आम के पेड़ के पास गया तो वहां एक साधारण कपड़ों में लिपटी हुई एक स्त्री खड़ी थी. वैसे कपड़े तो साधारण थे लेकिन उसका डील डौल कुछ सेक्सी था. उसका फिगर कुछ 36-30-34 का था. मुझे उसके कूल्हे बड़े भाये… क्या मस्त माल थी.
लेकिन गाँव का मामला था… कहीं ऊंच नीच हो जाती तो सारा गाँव मेरे खिलाफ हो जाता. इसलिए मैंने उससे पूछा- यहाँ क्यों खड़ी हो?
सकुचाकर उसने आकाश की तरफ देखा. मैंने समझ लिया कि उसे क्या कहना है. मैंने उससे कहा कि जाओ मेरा फॉर्म हाउस नजदीक ही है… वहाँ जाकर कपड़े सुखाओ और पानी रुकने तक आराम से बैठो. उसने मुझे नजरों से ही शुक्रिया कहा और वो फॉर्म हाउस की तरफ चली गई.
मैंने खेत में नुकसान का जायजा लिया और फिर मैं फॉर्म हाउस की तरफ पलटा. जब मैं फ़ार्म हाउस में गया तो मैंने उसे उन्हीं कपड़ों में देखा. वहाँ मेरा चौकीदार बिसना अपनी महरारु के साथ रहता था. कुछ जरूरी काम के लिए मैंने उसे शहर घर पर भेजा था. वो शहर ही जा रहा था तो उसकी महरारु भी उसके साथ हो ली.
बिसना की झोपड़ी में ताला नहीं था. उसकी बीवी के कुछ कपड़े सामने की रस्सी पर टंगे थे. उसमें से मैंने एक साड़ी उठाई और फ़ार्म हाउस की तरफ आया. तो वो स्त्री उसी तरह सकुचाई सी वहाँ बैठी थी. मैंने उसे वह साड़ी दी और उससे कहा- बदल लो कपड़े, नहीं तो ठण्ड लग जाएगी.
उस वक्त तक मेरे अन्दर कोई काम वासना नहीं थी. बिसना की बीवी मेरे आड़े वक्त में काम आती थी. वो मेरी रखैल जैसी थी. तो उसकी साड़ी इस औरत को देने में मुझे कोई संकोच नहीं हुआ.
बाथरूम में जाकर उस औरत ने कपड़े बदले और वह बाहर आई.
मेरा दिमाग सन्न सा हो गया… क्या चीज थी यार ये औरत… एकदम लाल होंठ, साड़ी के नीचे ब्लाउज नहीं था. तो दोनों मम्मों की गोलाई को साफ़ साफ़ महसूस किया जा सकता था. नीचे आधी साड़ी बंधी थी, जिससे उसकी टांगों को उघाड़ कर देखने की तकलीफ नहीं हो रही थी. मैंने आग जलाई, जब वो सेंकने के लिए मेरे सामने बैठी, तो उसके कटाव जैसे उघड़ कर सामने आने लगे. जांघों के बीच का भाग जैसे पुकार पुकार कर मुझे बुला रहा था.
धीरे धीरे वो खुलती गई. नजदीकी गाँव मारन की रहने वाली थी वो. नाम था रतना. उसके घर में कोई नहीं था. बाप दारु पीकर मर गया. माँ बचपने में ही गुजर गई.
बोली- एक टूटा फूटा घर है, उसमें रहती हूँ, कभी कोई आता है… चोदता है कुछ पैसे दे देता है और चला जाता है.
हे भगवान कितने साफ़ लफ्जों में ये बोल रही थी. यानि खेली खाई थी, तो मेरा भी मन डोल गया. मैंने उसे रात को वहीं सोने का निमंत्रण दिया. आगे क्या करना था, ये मुझे किसी ने बताना नहीं था. कमरे में एक ही बिछौना था, गद्दी भी एक ही थी, तो होना क्या था? आपके मन में जो भी कल्पना आई होगी वही हुआ.
एक बेड पर एक तरफ में और एक तरफ वो सोई. धीरे धीरे मेरे हाथ उसके शरीर के करीब पहुँचने लगे. उसके छत्तीस के मम्मों पर मेरे पंजे ने चढ़ाई की. जो रणक्रंदन मचा वहां पर… कि धरती थर्राने लगी, हाहाकार सा मचा और चुदाई का वो आलम हुआ कि उसकी चूत ने भलभला कर पानी छोड़ा. मेरे लंड ने उसकी चुत में पानी की जो बौछार करी कि वह हवस की मारी मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी.
उसके कूल्हों पर मैंने चपत जमानी शुरू की. “आह, स्स्स्सस्स, अच्छा लग रहा है, करते रहो, आज तो मैं पूरा चुदूँगी दोनों तरफ से…” उसके कहने का मतलब था गांड और चूत दोनों मरवाएगी यानि मेरी तो चांदी ही चांदी थी. रात अभी तो शवाब पर आ रही थी. रतना ने अपने पूरे कपड़े उतारे, फिर वो मेरे सामने से पानी पीने जाने लगी. मैं वैसे ही उठ खड़ा हुआ, रतना को पानी पीने दिया और वहीं पर उसको झुकाकर उसकी चुत में पीछे से लंड डालकर उसकी चूत मथने लगा.
“आह… मस्त… बहुत अच्छे बाबू… ऐसे ही करो… अब ठहरना मत, मैं तो दीवानी हो गई हूँ तुम्हारे चुदाई की… आह बाबू अगर मैं रोज रात यहाँ सोने आऊं तो आपको दिक्कत तो नहीं…?” मेरे लिए तो अँधा क्या मांगे एक आँख, यहाँ तो दोनों आँखें मिल रही थीं.
उस रात मैंने रतना की चूत इतनी बार चोदी और गांड इतनी बार बजाई कि वह लस्त पस्त हो गई थी. उसके सारे बदन पर मेरा लंड रस जैसे पानी की तरह बह रहा था. वो भी बड़ी खुश थी.
सुबह उसने मुझसे विदा ली और मैं अपने काम में लिप्त हो गया. लेकिन मुझे बड़ी गलावट आ रही थी… शायद रतना के साथ की चुदाई का कारण था.
शाम को बिसवा और उसकी औरत वापस आ गई थी. अब उसकी चुत में मुझे कोई इंट्रेस्ट नहीं रहा था इसलिए मैंने उसका बनाया हुआ खाना खाया और उसे वापस भेजा.
रात अपने शवाब पर आ रही थी. बिसवा अपनी जोरु को लेकर झोपड़ी में दुबका उसे चोद रहा था. उनकी चुदाई की आवाज मेरे कानों में गूंज रही थी. लंड की हालत धीरे धीरे बढ़ने लगी थी, आकार जैसे पूरा हो रहा था. आज रतना अगर आए तो उसकी खैर नहीं थी. आज तो उसे खुले में चोदना था. बीसी तो पूरी थी, अब तीसी शुरू करना था. यानि उसकी चुदाई हो चुकी थी, अब आज तो उसकी ठुकाई करना था.
तभी दरवाजे की सांकल बजने की आवाज आई. मैंने किवाड़ खोल दिए… रतना सामने खड़ी थी. आज तो वो खास साज श्रृंगार करके आई थी. थनों पर लोकट ब्लाउज, जैसे उसके दोनों चांदों को उघाड़ रहा था. नीचे पहनी साड़ी कभी भी निकलने का इंतज़ार कर रही थी. मैंने उसे अन्दर लिया और उसको बांहों में लेकर उसके कूल्हों को जोर से मसला.
“इस्स्स्श… ज़रा धीरे करो ना… क्या जल्दी है जानू… मैं यहीं हूँ, तुम भी यहीं हो मेरी चूत भी यहीं है… जितना चाहो मसलो… चोदो… गांड मारो या मुँह में दो आज तुम्हारे लिए सब खुला है.” उसकी ये बातें सुनकर मेरा लंड जैसे किसी नागराज की तरह फुंफकारने लगा. हाय क्या माल था साला, उसकी चूत जैसे मक्खन की टिकिया, उसके बोबे जैसे दूध से भरे दो घट, उसके बड़े बड़े कूल्हे मेरे सबसे पसंदीदा चीज थे.
आज तो उसकी खैर नहीं थी. मैंने उसके कपड़े खींचकर निकाले. उसके दूध भरे बोबे मेरे होंठों में लेकर मैंने चूस चूस कर लाल कर दिए. फिर मैंने उसके नीचे के होंठों को अपने दांतों में दबाया और चुभलाने लगा. क्या मस्त रसभरे होंठ थे उसके… आह… मुझे शहद से मीठे लग रहे थे.
उसी वक्त मैं उसके होंठों को छोड़ कर एकदम से नीचे बैठा और उसकी चुत में अपनी जीभ घुसा दी.
“ओ माँ… क्या कर रहे हो… आह… इस्स… ऐसा मत करो… मुझे कुछ होता है.” “क्या होता है रांड… मेरी चुदक्कड़ छिनाल… तेरी माँ की चूत… साली तेरी चूत को मथना है मेरे को, चल साली मेरे सामने नंगी होकर लेट जा भैन की लौड़ी…”
रात के साढ़े बारह बज गए थे. हमारी चुदाई अब स्पीड पकड़ चुकी थी. मेरी कमर पर बैठकर, मेरे सामने झुककर, नीचे सर और ऊपर पाँव करके, दीवार से सटाकर… एक ही रात में उसने सारे आसन में चुत चुदवा डाली. सबसे आखिर में उसने मुझे नीचे लिटाया और फिर अपनी चूत को मेरे मुँह से लगाकर मुझे अपनी चूत चाटने को कहने लगी. मैं तो उसका दीवाना हो गया था. क्या चीज थी रतना… साली एक नंबर चुदक्कड़ थी भैन की लौड़ी.
सुबह के साढ़े पाँच बज गए. रतना ने मुझसे विदा ली. दूसरे दिन मुझे और भी थकावट महसूस होने लगी थी. शायद ये रतना के साथ होने वाली चोदन लड़ाई का परिणाम था.
शाम को जब बिरसा की बीवी खाना बनाने आई तो उसे सारे गद्दी पर वीर्य पड़ा मिला. उसने पूछा- बाबूजी कल यहाँ क्या हुआ था? ‘कुछ नहीं, अरे वो कुत्ता आया था तो मैं उसे भगाने के चक्कर में था.’
उसने शक से मेरी तरफ देखा और वह अपना काम करने लगी. वो जिस तरह बैठी थी अगर कोई और वक्त होता तो मैं उसे वहीं पटक कर लंड पेल देता. लेकिन अभी मेरे बदन की हालत ऐसी नहीं थी कि मैं उसकी चूत का मजा ले सकूं. मैं बड़ा थका थका सा और उनींदा सा महसूस कर रहा था.
तीसरे दिन जब रतना आई तो मेरा लंड फिर तैयार था. दिन भर की थकावट जैसे उड़न छू हो गई थी. मेरा लंड जैसे किसी नाग सा फुंफकार मार रहा था. आज तो रतना जैसे कयामत लग रही थी. कंधों पर खुले छोड़े हुए बाल, नाभि के नीचे बंधी साड़ी, लोकट ब्लाउज से बाहर झांकते दो मोटे मोटे मम्मे और मटकते कूल्हे… जैसे जान खा रहे थे. आज तो उसको मेरे लौड़े का बाजा बजाना पक्का था. शायद ये ही सोचकर आई थी वो. आते ही उसने मेरे कपड़ों पर हाथ डाला. मेरे पायजामे का नाड़ा छोड़ा. जैसे ही मेरा पायजामा नीचे गिरा वैसे ही उसने मेरी निक्कर के ऊपर से मेरे लंड को चूम लिया. मेरा लंड वैसे ही तैयार नब्बे के एंगल में खड़ा था.
खड़ा लंड देखकर रतना मुस्कुराई, उसने कहा- बाबू तुम्हारा तो अन्दर जाने के लिए एकदम तैयार है. आज मेरी मुनिया की खैर नहीं लगती है. मैंने आव देखा न ताव, उसकी साड़ी ऊपर की और उसकी गांड अपने हाथ के पंजों में लेकर जोर से मसल दी, साथ ही उसके दोनों बोबे अपने होंठों से पीने की कोशिश की. इसके बाद उसकी चुत में उंगली घुसा दी.
आज मैं अपने खास फार्म था. जो मेरा चोदने का खास तरीका है. लड़की एक बार चुद जाए तो उसको माँ बहन की गाली भी दो तो उसे गुरेज नहीं होता. मेरा ये खास नजरिया था, उधर रतना तो जबरदस्त चुदक्कड़ थी ही. मैंने मेरी ख़ास आदत को इम्प्लीमेंट कर देना ही मुनासिब समझा. “चल साली, चुदक्कड़… रांड… मेरे नीचे सोने वाली छिनाल, तेरी माँ की चूत, बहनचोद… आज मैं तेरी चुत की पूरी गरमी निकालकर रहूंगा, तेरी नंगी चूत का भोसड़ा नहीं बनाया तो चोदना छोड़ दूंगा मादरचोदी… मेरी कुतिया रानी.”
मेरी गालियों से रतना भी तैश में आ गई. उसने मेरे कपड़े उतारे नहीं… फाड़कर मेरी निक्कर फेंक दी. ‘साले चूत के लौड़े… तेरी माँ की चुत… मैं सोकर तेरे से चुदी… आ साले भड़वे चोद… आज मैं भी देखती हूँ… तेरे लंड में कितनी ताकत है…” उसने अपनी जांघें फैला कर अपनी चूत पर मेरा लंड रखा और मुझे सामने खींचा. मेरा लंड खच्च से उसकी चुत में घुस गया. “आह… चोद लवड़े… चोद मेरी मुनिया तरस रही है तेरे मुस्टंडे लंड के लिए… आह… भैन के लंड चोद मुझे…”
फिर मैंने अपने जिन्दगी की पहली तूफानी चुदाई को प्रारम्भ किया. आज मुझे उसकी चूत और गांड दोनों पेलना था. अचानक उसने आसन बदल दिया. वो कुतिया की स्टाइल में हो गई. अब मैंने भी फ़िक्र करना छोड़ दिया था. मैंने कुछ भी न सोचते हुए उसकी गांड के छेद में मेरा लौड़ा पेल दिया. “हाय आह… क्या गांड फ़ाड़ने का इरादा है क्या रे भड़वे…” ऐसा कहते हुए उसने मेरा लौड़ा अपने गांड के अन्दर तक घुसवा लिया. पहला शॉट होने के बाद वो मेरे रसभरे लंड को गांड में दबा कर चूसने लगी.
कुछ ही मिनट की गांड चुदाई के बाद चुत में घुसेड़ दिया. बस अब मेरा लंड फट पड़ने को हुआ, तो मैंने लंड बाहर खींच लिया. मेरा लंड उसके रज एवं मेरे वीर्य से भरा था, उसने लपक कर अपने मुँह में लंड भर लिया. मेरा लंड उसके मुँह में अलग स्वाद दे रहा था. वो रतना का आखरी दिन था क्योंकि दूसरे दिन वो अपने नाना जी के घर जाने वाली थी. मेरा भी काम पूरा हो गया था, सो मैं भी एक दो दिन में शहर जा रहा था.
रतना मेरे लिए एक अजनबी से एक हमसाया बन चुकी थी. दूसरे दिन अचानक मारन का एक आदमी मुझसे कुछ सिलसिले में मिलने आया. तो बातों बातों में रतना का जिक्र छिड़ गया. उसने मुझे जो बताया वो मेरी गांड फाड़ने वाला था. रतना को मरे हुए दो साल हो गए थे. गाँव के सरपंच ने उसके साथ बुरा काम किया था और उसको मारकर खाई में फेंक दिया था. सरपंच को उम्रकैद की सजा हुई थी. मुझे झुरझुरी सी आ गई, यानि मैंने चुड़ैल की चुदाई की.
लेकिन कहीं से भी उसने मुझे कोई तकलीफ नहीं होने दी थी. तो मैं उस वाकिये से डरा नहीं… क्योंकि रतना मुझसे प्यार जो करती थी.
ये है मेरी चुड़ैल से अनोखी चुदाई की भूतिया कहानी.
यह भूतिया कहानी पूर्ण काल्पनिक है अपने चुदाई के अनुभवों को कहानी की शक्ल में ढालकर लिखी गई है. कृपया इसे सत्य न समझें. [email protected]
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