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नमस्ते अन्तर्वासना के नियमित पाठको, मेरा नाम राजा (बदला हुआ नाम) है, मेरी उम्र 25 साल की है. मैं जमशेदपुर झारखंड का रहने वाला हूँ. मैं आपको पहले अपने बारे में बता देता हूँ. मैं दिखने में काफ़ी सीधा साधा भोला भाला हूँ. मैं बहुत ज्यादा हैंडसम तो नहीं हूँ, पर औसत से थोड़ा अच्छा दिखता हूँ. मेरा लंड नॉर्मल देसी साइज़ के लंड जैसा ही है. लंड की मोटाई काफ़ी अच्छी है, टोपा की मोटाई ऐसी है कि किसी भी औरत की माँ चोद दे, उसकी आऊच निकाल दे. मेरी बॉडी भी ठीक-ठाक है. हाइट कुछ ज़्यादा नहीं, पर ऐसा भी नहीं कि कोई नज़रअंदाज़ कर दे. मेरी फैमिली में मैं और मम्मी-पापा हैं.
अन्तर्वासना की बहुत सारी कहानियाँ पढ़ने के बाद आज हिम्मत हुई कि अपनी आपबीती आप सभी के साथ शेयर करूँ. यह कहानी उस टाइम की है, जब मेरी दादी हमारे साथ थीं. भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दे, वे अब हमारे साथ नहीं हैं. तब मैं जब जवानी की दहलीज पर पाँव रखने को था. उस टाइम चुदाई क्या होती थी, मुझे मालूम नहीं थी.
मैं अपने परिवार के साथ शहर में रहता था, क्योंकि मेरे पिताजी वहां काम करते थे. दादीजी गाँव में अकेली रहती थीं, सो मैं माँ के साथ अक्सर गाँव जाया करता था. इधर पापा अकेले हो जाते थे. इससे कुल मिलाकर सब परेशान ही रहते थे.. तो घर वालों ने ये फ़ैसला किया कि दादी की सेवा के लिए किसी को रखा जाए.
अब तलाश शुरू हुई और अंत में मेरी रिश्ते में मौसी को चुना गया, जो दादी के साथ रह कर उनकी सेवा करेंगी. मौसी को उनके गाँव से हमारे गाँव लाया गया और उनको सारे काम समझा दिए गए. वो कच्ची उम्र पार कर चुकी थीं और 18 की दहलीज पर थीं.
उनको दादी के साथ छोड़ कर मैं और माँ वापस शहर चले आए. कुछ हफ्तों बाद दादी के बीमार होने की खबर मिली तो मैं और माँ दादी के पास गाँव चले गए. दादी बहुत बीमार थीं तो माँ बहुत ही बिज़ी रहने लगीं. मैं मौसी के साथ घुल-मिल गया.. हम लोग अक्सर गाँव में खेलते और मस्ती करते थे. मौसी भी मुझे बहुत प्यार करती थीं. कुछ दिन यूं ही निकल गए.
एक दिन मुझे दोपहर मैं शौच लगी. माँ तो बिज़ी थीं, तो उन्होंने मौसी को मेरे साथ भेज दिया. आप सोच रहे होंगे शौच के लिए बाहर जाने की क्या ज़रूरत.. मगर दोस्तों उस टाइम गाँव में शौच बाहर ही जाना पड़ता था.
अब मैं मौसी के साथ खेतों की झाड़ियों की तरफ चला गया. गर्मियों का दिन था तो दोपहर में इक्का-दुक्का लोग ही नज़र आ रहे थे. दूर पहाड़ की तरफ कोई बैल-बकरी चरा रहा था. मैं झाड़ियों के पीछे शौच के लिए बैठ गया.. मौसी पास में ही खड़ी इधर-उधर नजरें दौड़ा रही थीं.
फिर पता नहीं मौसी को क्या सूझी, वो ठीक मेरे सामने मेरे दूसरी तरफ मुँह करके शौच करने के लिए बैठ गईं. उन्होंने आपकी सलवार का नाड़ा ढीला किया और बैठ गईं.
उस टाइम मेरी झांटें नहीं उगी थीं. जबकि मौसी के गुप्त अंग के पास इतने घने काले बाल देख कर पहले मैंने खुद की तरफ देखा और आश्चर्य से मौसी से पूछा- मौसी आपके वहां इतने सारे बाल कैसे हैं, मेरे तो नहीं हैं?
मौसी बस मुस्कुरा दीं और कुछ नहीं बोलीं.. पर उनकी नज़र मेरे लॉलीपॉप पर उस समय पहली बार नज़र गई. जब तक हम शौच में बैठे रहे, इधर-उधर की बातें करते रहे, पर मौसी की नज़र मेरी लॉलीपॉप पर ही टिकी थीं.. शौच करने के बाद हम तलाब में पिछवाड़ा धोकर वापस आ गए.
घर आने के बाद मैंने फिर से मौसी से पूछा- मौसी आपके इतने बाल कैसे थे? इस बार मौसी फिर से मुस्कुराईं और बोलीं- अच्छा ठीक है शाम को बताऊंगी, पर तुम किसी को नहीं बताओगे.. यह वचन दो. मैंने बोला- ठीक है.. किसी को नहीं बताऊंगा.
शाम को खेलने के बाद मैं घर आ गया और सीधे मौसी के पास जाकर बोला- मौसी मैं खेल कर आ गया हूँ.. अब बताओ ना? ‘बताती हूँ.. बताती हूँ..’ कह कर मौसी बोलीं- देख मैं जवान हो गई हूँ इसलिए मेरी झांटें उग आई हैं. पहले तो मुझे झांट का मतलब समझ नहीं आया तो मौसी ने कहा- नीचे के बालों को झांटें बोलते हैं. लेकिन सबके सामने नहीं बोलना. तो मैंने झट से ‘ठीक है..’ बोलते हुए कहा- मौसी मुझे भी जवान होना है. मौसी फिर से हंस दीं और ‘हाँ.. हाँ..’ कह कर बात को टाल दिया.
अगले दिन से मौसी मुझे रोज़ शौच के दोपहर को जाने को कहने लगीं. मैं भी चला जाता था. रोज़ ही मौसी ठीक मेरे आगे बैठ जाती थीं और मेरे लंड को निहारती रहती थीं. मुझे उस टाइम कुछ पता नहीं था तो मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था. इसी तरह दिन निकलते गए.. शायद मौसी को मेरा लंड देखने का नशा हो गया था तो जब भी मौका मिलता, मौसी मुझे मेरा पेंट उतरवा कर लंड दिखाने को कहती थीं. कभी कुछ न कुछ बहाना बना कर मेरे लंड को देख लेती थीं.
एक दिन दोपहर को खाने के बाद दोपहर को हम शौच के लिए निकल पड़े. रोज़ की तरह मौसी मेरे सामने बैठी थीं और बातों ही बातों मैं मौसी ने मुझसे कहा- तुम्हें जवान बनना है ना! मैंने कहा- हाँ मौसी बनना है. मौसी बोलीं- ठीक है, मैं तुम्हें जवान बनाऊंगी मगर मैं जो बोलूँगी, वो तुम्हें करना पड़ेगा.. और तुम ये बात किसी को नहीं बताओगे. मैंने ‘हाँ’ कह दिया, मुझे तो सिर्फ़ झांटें उगाना थीं. मौसी ने कहा- आज शाम को मैं तुम्हें कुछ सूंघने को दूँगी, तुम्हें बताना होगा कि वो कहाँ की खुशबू है. मैंने कहा- ठीक है.
मैं वापस आ गया. शाम को खेलने और खाने के बाद मैंने माँ को बोल दिया- माँ मैं मौसी के साथ सोऊंगा.
माँ ने मना नहीं किया.. मैं मौसी के पास खाट पर सोने के लिए चला गया. मैं मौसी के बगल में चिपक कर लेट गया. मौसी कच्ची नींद में थीं, इसलिए मेरे स्पर्श से वो जाग गईं- अरे राजा आ गए अपनी मौसी के पास..! मैंने कहा- हाँ मौसी मैं आ गया. खाट पर लेटने के बाद मैंने मौसी को याद दिलाया- मौसी दोपहर में आपने कहा था कि आप मुझे कुछ सूँघने को देंगी. मौसी बोलीं- अभी ही चाहिए? मैंने बोला- हाँ. तो मौसी बोलीं- अच्छा तुम अपना हाथ आँखों पर रखो, मैं देती हूँ.
मैंने वैसा ही किया और मौसी ने अपनी दो उंगलियां अपनी चुत में घुसाईं और उंगली गीली करके बाहर निकाल कर मेरी नाक के सामने रख दीं. मौसी बोलीं- बताओ कहाँ की.. और कौन सी चीज़ की सुगंध है?
मैंने ऐसी चीज़ जिंदगी में पहली बार सूँघी थी. मैंने अपनी आँखों के आगे हाथ रखा हुआ था, सो मैंने देखा भी नहीं था. मैं जवाब नहीं दे पाया. मैंने मौसी से पूछा- मुझे समझ नहीं आया.. आप बताओ ना, ये किस चीज़ की महक थी.. बहुत ही अजीब दुनिया से परे किस्म की महक लग रही है मौसी. मेरे बहुत ज़ोर देने पर वे बोलीं- कल दोपहर को शौच के समय बताऊंगी. यह सुन कर मैं जल्दी ही उसने चिपक कर सो गया ताकि जल्दी से कल आ जाए और मुझे जवाब मिल जाए.
सुबह उठते ही मुझे दोपहर का इंतज़ार था. मेरे मन में बहुत ही उत्सुकता थी. मैं दोपहर होने का बेसब्री से इंतज़ार करने लगा. जल्दी नहा-धो कर खाना पीकर मैं शौच के लिए तैयार था. उस दिन हम दोनों शौच को जल्दी ही निकल गए. एक झाड़ी की आड़ में हम दोनों बैठ गए. उत्सुकता के मारे मुझे शौच कहाँ होनी थी, बस मैं तो जवाब के लिए उतावला था.
हम दोनों के बैठने के तुरंत बाद ही मैंने मौसी से पूछ लिया- मौसी बताओ ना? मौसी ये सुन कर मुस्कुरा दीं और बोलीं- हाँ बाबा बताती हूँ.. पहले शौच तो कर लूँ. पर मैं कहाँ मानने वाला था, मैं बार-बार वही पूछता रहा. मौसी भी बताने को राज़ी हो गईं और बोलीं- तुम तैयार हो जानने को. मैं- हाँ मौसी हाँ.
ये सुनते ही मौसी ने मेरे सामने अपनी दो उंगलियां चुत के अन्दर घुसाईं और निकाल कर मेरे नाक के सामने रख दीं. मौसी बोलीं- सूँघो, है ना वही सुगंध? मैं भी सूँघते ही झट से पहचान गया- हाँ वही है.. छी मौसी तुम कितनी गंदी हो.. वहां कोई उंगली डालता है छी.. मौसी मुस्कुरा दीं और बोलीं- तुम्हें जवान होना है ना, तो जो मैं करने को कहूँगी, तुम्हें करना पड़ेगा. मैं भी चुपचाप उनकी बात मानने को राज़ी हो गया.
मौसी ने कहा- अब तुम अपनी दो उंगलियां मेरे यहाँ डालो और वैसे ही सूँघो. मैं ना-नकुर करने लगा क्योंकि मुझे वहां उंगली करने में बहुत ही गंदा लग रहा था. फिर मौसी ने कह दिया- तुम मेरी बात नहीं मानोगे तो मैं तुम्हें जवान नहीं बनाऊँगी. मैं डर गया और राज़ी हो गया.
मौसी सामने ही बैठी थीं… मैंने कांपते हुए दो उंगलियां उनकी चुत में घुसा दीं. मेरी उंगलियां उनकी चुत के अन्दर जाते ही उन्होंने आँखें बंद कर लीं और हल्की सी ‘आह..’ भरी. जैसे ही मेरी उंगलियां उनकी चुत के अन्दर गईं.. पता नहीं मेरे लंड को क्या हुआ. वो अचानक अकड़ कर बड़ा हो गया और सख्त हो गया. इससे मेरी मौसी की नज़र मेरे कड़क लंड पर पड़ गई.
उधर मेरी उंगलियों ने मौसी की चुत की दीवार को जैसे ही छुआ, अन्दर इतनी गर्मी थी कि मुझे ऐसा लगा मैंने गरम तवा में उंगली रख दी हो, तो मैंने झट से उंगली बाहर निकाल ली. मैं हैरान था कि मेरे लिंग को क्या हुआ, इतना अकड़ क्यों गया और बड़ा कैसे हो गया. मैं चुप ही रहा और वहां से उठ कर पिछवाड़ा धोने जाने लगा. मेरा लिंग अब भी अकड़ा हुआ ही था. मौसी की नज़र मेरे लिंग पर ही थी.. वो एकटक लंड को ही देखे जा रही थीं. मुझे जाता देख वो भी उठ गईं और हम दोनों चुपचाप घर वापस आ गए.
इसके बाद हम दोनों पूरे दिन बात नहीं की. रात को खाने के बाद भी मैं मौसी के पास सोने नहीं गया. मौसी खुद ही आ गईं और बहुत बोलने लगीं- राजा.. मौसी से नाराज़ हो क्या.. मौसी के साथ नहीं सोओगे? उनके बहुत बोलने पर माँ ने मुझे मौसी के साथ ये कहकर भेज दिया- जा बेटा, मौसी इतने प्यार से बुला रही तो चले जाओ.. मैं चला गया.
हम दोनों खाट पर लेट गए. मैं सोने लगा, पर मुझे नींद नहीं आ रही थी. फिर भी मैंने मौसी से कुछ नहीं कहा. मौसी टोकती रहीं, पर मैं कुछ नहीं बोला. थक हार कर उन्होंने भी बोलना छोड़ दिया और सोने की कोशिश करने लगीं.
पर नींद हम दोनों को कहाँ आ रही थी. मौसी के दिमाग़ में शायद मेरा लंड ही घूम रहा होगा. मेरे दिमाग़ में भी वही सब मौसी की चुत की अन्दर इतनी गर्मी क्यों थी और मेरा लिंग सख्त और बड़ा कैसे हो गया था? ये सब सोचते हुए मेरा लिंग फिर से सख्त हो गया. चूंकि मैं मौसी से सटा हुआ था तो मौसी को मेरे बदन की गर्मी से एहसास हो गया था. शायद मौसी ने अपनी उंगली फिर से चुत में डाली होगी और ऊपर-नीचे करने लगीं. मुझे इससे मालूम हुआ क्योंकि खटिया हिलने लगी थी और मौसी अपने होंठों को दांतों से दबा कर सिसकियाँ लेने लगीं थीं.
कुछ ही पलों बाद शायद चुत को काफ़ी तेज रगड़ने से मौसी का बदन ऊपर की ओर उठा, फिर धम से खाट पर उनकी कमर गिरी और वो शांत हो गईं.
दोस्तो, आप मुझे मेरी मेल पर इस चुदाई की कहानी पर अपने कमेंट्स भेज सकते हैं. कहानी जारी है. [email protected]
कहानी का अगला भाग: चुदासी जवान मौसी ने दिया मुझे सेक्स का ज्ञान-2
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