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मेरी कहानी में मैं केवल चुदाई की बातें नहीं करता, चुदाई का माहौल कैसे बना, उसकी बात करता हूँ, वही अपनी चूत और लंड का पानी निकलेगा. यह कहानी है एक साल पहले की.
मेरी एक कहानी पढ़कर मुझे मुंबई के एक 18 साल के लड़के का मैसेज आया उसने मुझे फेसबुक पर अपना दोस्त बनाया और मुझसे बात करने लगा. मुझे लगा कि शायद और लड़कों की तरह यह भी मुझ से लड़कियों के नंबर माँगने की कोशिश करेगा लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं था, उसने मुझे अपनी माँ को चोदने का मौका दिया. यह कैसे हुआ? आइए बताता हूं आपको उसके सच की कहानी
शुरुआत के दिनों में उससे मेरी काफी बात हुई तो धीरे-धीरे उसने खुलते हुए बताया कि उसकी माँ बहुत ही अय्याश किस्म की औरत है, उसका अफेयर तो नहीं है किसी से लेकिन बहुत से मर्द को वह घुमाती है. उसने मुझे बताया कि वह चाहता है कि वह अपनी माँ को अपने आँखों के सामने किसी बड़े मर्द से चुदते हुए देखे वह चाहता था कि कोई एक मुस्टंडा मर्द उसकी माँ को उसकी आँखों के सामने रौंद डालें.
वह हर दिन मुझे अपनी माँ की सेक्सी सेक्सी फोटो दिखाता था मैंने भी उसकी माँ को देखा, बला की खूबसूरत 40 साल शायद उसकी उम्र रही होगी लेकिन एकदम गोरा बदन मोटी मोटी चूचियाँ जोशी एकदम सीधी तनी थी, बड़ी सी गांड और हल्का सा निकला हुआ पेट बहुत ही सेक्सी लगता था. रोहन ने मुझे कई कहानियाँ भी बतायें कि कैसे उसकी माँ जान बूझ कर बस में चलते वक्त जवान लड़कों के आगे खड़ी हो जाती थी और वह लड़के पीछे से उसकी माँ की गांड चोदते थे कपड़ों के ऊपर से ही… कैसे पीछे से गुजरने वाला आदमी उसकी माँ की गांड मसल दिया करता था. और वो बोला कि उसने ये यह सब देख कर बहुत मुठ मारी है लेकिन वह चाहता था कि मैं उसकी माँ सरिता को उसकी आँखों के सामने चोद डालूँ. वह देखना चाहता था कि उसकी कमीनी माँ जब किसी से चुदती है तो कैसे आहें भरती है, कैसे लंड के लिए तड़पती है.
बिना मिले सीधा उसकी माँ को चोद पाना बहुत मुश्किल था इसके लिए मैंने रोहन के साथ मिलकर एक प्लान बनाया. रोहन ने मुझे बताया कि वे लोग जल्द ही वह और उसकी माँ उत्तर प्रदेश में लखनऊ के एक गांव जाने वाले हैं किसी शादी में.
यह सुनकर मुझे एक आइडिया आया और मैंने उसी तारीख के आसपास फर्स्ट AC की दो टिकट बुक करा ली. अब आप जानते हैं फर्स्ट ए सी में दो टिकट का मतलब है एक कैबिन आपका हो जाता है. उसके बाद मैंने अपना प्लान रोहन को बताया और हम दोनों बहुत खुश हुए.
समय बीतता गया और रोहन ने अपना नाटक शुरू किया और यह कह दिया कि टिकट नहीं मिल रही है. उसकी माँ सरिता परेशान होने लगी तारीख से 2 दिन पहले रोहन ने बोला कि मेरा एक दोस्त है रोहित वह भी मुंबई से लखनऊ जा रहा है, हम चाहें तो उसके साथ चल सकते हैं, उसके एक दोस्त का प्लान कैंसिल हो गया है तो अब उसके पास एक सीट बची है.
उसकी माँ तुरंत मान गई और हम आगे का प्लान लेकर स्टेशन पर मिलने के लिए तैयार हो गए.
जैसे ही मैंने सरिता को स्टेशन पर देखा मेरा लंड फुंफकार मारने लगा और जब पहली बार मेरी और सरिता की नजरें मिली तो हम दोनों ने एक दूसरे को अच्छी तरह पहचान लिया. उसकी नजरों में जवान मर्द की नापते हुए और मेरी नजरों में उसके चुचियों को खा जाने वाली हवस से देखते हुए.
कुछ 10 सेकंड के लिए हम एक दूसरे को घूरते रहे और फिर एक टेढ़ी सी मुस्कान लिए समझ गए. फिर कुछ देर हम बात करते रहे.
मैंने रोहन को इशारे से कहीं जाने के लिए कहा था कि मुझे सरिता से बात करने का मौका मिले, रोहन के जाते ही मैं सरिता के पास बैठ गया और उसकी तारीफ करने लगा. मैंने कहा- सरिता जी, आप बेहद खूबसूरत लग रही है साड़ी में! वो थोड़ा शरमाई और बोली- शुक्रिया, लेकिन अब मैं जवान नहीं रही, आप तो जवान हैं. मैंने कहा- बिल्कुल नहीं, आप किसी से भी पूछ कर देखिए. सब आपको 27-28 की बतायेंगे. ऐसे ही बातों-बातों में सरिता और मैं काफी खुल गए हम दोनों ही एक दूसरे को समझ गए थे, दोनों ही खिलाड़ी थे.
अब मेरी बातें सरिता से कुछ डबल मीनिंग होनी शुरू हो गई, जैसे कि बात बात में मैंने सरिता की चुचियों को घूरते हुए कहा- आपके तो गाल बड़े मुलायम लगते हैं, काश इनको दबा कर देख पाता! इस पर वह हंसने लगी और बोली- मेरे गाल सबके हाथ में नहीं आते. मैंने कहा- मैं भी कहाँ सब में आता हूँ और मेरे हाथ में जो गाल आता है फिर वह कहीं नहीं जाता है.
मेरी ऐसी बातों से वो शरमा गई. मैंने कहा- आइए, थोड़ा घूम कर आते हैं. वह बोली- कहाँ? मैंने कहा- ट्रेन आने में अभी वक्त है, चलिए थोड़ा जहाँ कोई ना हो वहाँ चलते हैं. मेरा इशारा साफ था कि अब बात थोड़ी आगे बढ़ाते हैं. उनको भी समझ आ गया, वह इधर उधर देखने लगी रोहन के लिए.
मैंने कहा- रोहन दूसरी तरफ गया है, मैं उसे फोन कर देता हूँ, वह वापस आ जाएगा ताकि सामान का ध्यान रखे, फिर हम चलेंगे ताकि वह हमारे पीछे ना आए. मेरा यह कहना था कि वह हंस पड़ी, बोली- आप तो बहुत तेज हैं. मैंने कहा- आप जैसी हसीन औरत साथ हो तो दिमाग घोड़े की तरह ही भागेगा.
वह बोली- मुझे घोड़े ही पसंद हैं जो खूब तेज भागें, बस भागते ही रहें! मैं समझ गया कि वह चुदाई की बात कर रही है ताबड़तोड़ चुदाई.
अब मुझे सरिता की बातों में मजा आने लगा था, वह बड़ी ही कामुक औरत थी, अपनी बातों में उलझाकर मर्द को अपने काबू में करना उसे अच्छे से आता था.
रोहन को वापस बुला मैं और सरिता एक दूसरे कोने की तरफ चलने लगे जिस तरफ लोग बहुत कम थे. कुछ कदम चलने के बाद मैं सरिता के पीछे आ गया ताकि दो कदम पीछे से उसकी मटकती गांड देख सकूँ. मेरे अंदर की हवस उसकी मटकती गांड देखना चाहती थी मैं दो कदम पीछे चलने लगा, और दोस्तो, जो मैंने देखा वही आपको बता रहा हूँ. हल्के नीले रंग की साड़ी उसमें कसी हुई गोल गांड जो हर कदम के साथ बाहर निकल रही थी और अंदर जा रही थी. उसकी कमर कुछ अलग ही अंदाज में हिल रही थी. ऐसे जैसे मुझे बार बार बुला रही है- आओ साड़ी उठा कर चोद दो मुझे यहीं पटक कर!
उसकी साड़ी नाभि से बहुत नीचे बंधी थी तो उसके ब्लाउज से लेकर उसकी नाभि का हिस्सा बिल्कुल नंगा था, एकदम दूध से गोरा मन कर रहा था अभी उसे पकड़ कर चूमने लगूँ. कुछ ही पल बीते थे कि सरिता ने पीछे पलटकर मुझे देखा और मुझे अपनी गांड को घूरता पाया वह शरमा गई और बोली- आप पीछे क्यों रह गए? साथ आइए. मैंने कहा- आपके पीछे चलने में जो मज़ा है, वो साथ चलने में नहीं. वह हंसने लगी.
वहीं एक दुकान थी, हम दोनों वहाँ चाय लेने चले गए, मैं ठीक उनके पीछे खड़ा था और कुछ दुकान वाले से बात करने के बहाने मैंने अपना शरीर उनके शरीर में छुआ दिया. उसका बदन एक भट्ठी की तरह गर्म था. शरीर इतना नाजुक कि मानो रुई की तरह दब गई मेरे शरीर के दबाव में… एक कामुक आह निकली सरिता के मुंह से, एक पल के लिए सरिता ने डर कर मेरी तरफ देखा फिर मुस्कुराई और फिर दुकान वाले से चाय लेने लगी.
उसको विरोध ना करता देख मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैं फिर एक बार बात करने के बहाने सरिता की कमर को पकड़ कर दुकान वाले की तरफ झुक कर बात करने लगा. रूई जैसी मुलायम उसकी कमर पर हाथ लगा तो मेरा लंड ठुनकरी मारने लगा, शायद मेरे लंड की चुभन उसे भी हुई और ना चाहते हुए भी उसने अपनी गांड थोड़ी पीछे कर कर मेरे लंड पर दबाव बनाया. अब चाह कर भी मैं कंट्रोल नहीं कर पा रहा था, हम चाय लेकर जैसे ही घूम रहे थे, मैंने कमर पर रखा, हाथ वहाँ से हटाने की अंदाज में नीचे की तरफ ले जाते हुए उसकी गोल गांड के ऊपर से ले गया. जो कमर से उसकी गांड का चढ़ाव था… क्या कहूं दोस्तो… और फिर उसकी नाजुक मुलायम चौड़ी गांड के ऊपर से मेरा हाथ जब गुजरा तो यूं लगा कि इसको अभी पकड़ लूं, उसको दबा दूँ लेकिन मैंने अपने आप पर काबू पाया, सोचा यह तो मेरी हो कर ही रहेगी, इतनी जल्दी किस बात की!
फिर इसके आगे कुछ खास नहीं हुआ और हम लोग ट्रेन में बैठ गए. यों ही बात करते-करते अब मेरे और सरिता के विचार क्लियर हो चुके थे एक दूसरे के लिए, हम दोनों ही हवस में पागल थे, बस मौका ढूंढ रहे थे एक दूसरे को पा लेने का और वह मौका मिला मुझे रात के खाने के बाद. हम सबने साथ में खाना खाया, तभी मैंने रोहन को मैसेज किया कि तुम अब तबीयत खराब होने का बहाना करके दूसरी सीट पर सो जाओ.
उसने वैसा ही किया, रोहन बोला- मुझे सर दर्द हो रहा है, मैं सोना चाहता हूँ. मैंने एक दवाई रोहन को दी और बोला- इसे खाकर सो जाओ, जल्दी आराम होगा. वो दवाई खाकर ऊपर की सीट पर सोने चला गया.
अब मैं और सरिता ही जगे हुए थे, दूसरी तरफ रोहन ऊपर की सीट पर सोने का नाटक कर रहा था और उसने अपने मुंह पर चादर ढकी थी. मैं और सरिता अब एक ही सीट पर आजू बाजू में बैठे थे. मैंने ताश के पत्ते निकाले और सरिता को खेलने के लिए कहा. वह मान गई अब हम आलथी पाल्थी मार कर बैठ गए, सीट पर एक दूसरे के सामने मेरी नजरें बार-बार सरिता के पेट पर जा रही थी जो वह देख पा रही थी और वह मुस्कुराये जा रही थी.
अब मुझे कंट्रोल नहीं हो रहा था मैंने ताश खेलते खेलते मामला शुरू करने के लिए एक बाजी जीतने के बाद सरिता को एक फ्लाइंग किस दे दी जिस पर वह शर्मा गई लेकिन जवाब में उसने भी मुझे वापस एक किस दी मैंने अपना एक पैर सीधा किया और वह सीधा करते ही सामने बैठी सरिता की गांड की बाजू में जा लगा. अब मैं धीरे-धीरे अपने पैर से उसकी गांड सहलाने लगा.
अब मैंने धीरे से उसे अपने पास आने को कहा, वह समझ गई कि अब खेल शुरू होने वाला है. उसने ऊपर लेटे रोहन की तरफ इशारा करते हुए इशारों में कहा कि वह देख लेगा. मैंने उसको कहा- वह सोया हुआ है वह नहीं देखेगा.
उसने इंकार किया लेकिन खुद-ब-खुद मेरी तरफ चली आई. आग दोनों तरफ बराबर थी. जैसे ही वह मेरे पास आई मैंने उसे अपनी बाहों में ले लिया उसका नाजुक बदन मेरे बड़े शरीर के नीचे दबने लगा, मैं बेहताशा उसके नर्म गुलाबी होठों को चूसने लगा उसके निचले होंठ को अपने होंठों में लेकर मैंने बहुत देर तक चूसा इतना कि शायद उसमें अब रस नहीं बचा.
हम दोनों के बदन की गर्मी अब आग में बदल रही थी, ऊपर लेटा रोहन चुपचाप अपनी मम्मी की आह सुन रहा था कि कैसे उसकी माँ एक मर्द से लिपटने से कराह रही थी. अब ज्यादा देर ना करते हुए मैंने उसकी चुचियों को दबाना शुरु किया, उसके ब्लाउज के बटन खोल दिए, अंदर उसने लाल रंग की ब्रा पहनी हुई थी. उसकी चूचियाँ ब्रा के अंदर समा ही नहीं रही थी ऐसा लग रहा था मानो उसने बहुत छोटी ब्रा पहन रखी है.
मैंने जल्दी से उसकी ब्रा भी खोल दी और अब उसकी चूचियों को मैं जोर जोर से दबाने लगा वह बस आहें भर रही थी ‘आअह रोहित… उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ और बार बार ऊपर की तरफ देख रही थी कि कहीं उसका बेटा देख तो नहीं देख रहा. मैंने उसे कहा- तुम चिंता मत करो, वो सो गया है, मैंने जो दवाई दी थी उसमें नींद की गोली थी.
मेरी बात सुनकर उसे यकीन हो गया कि मैंने सच में उसे नींद की गोली दी थी और वह खुलकर मेरा साथ देने लगी. ऊपर लेटा रोहन अपनी माँ की अय्याशी अपने कानों से सुन रहा था. उसने मुझे बाद में बताया कि उसने कई बार मुठ मारी हमारी आवाज ही सुनते सुनते.
उसके बाद हम दोनों फिर एक दूसरे में खो गए, कभी मैं उसको गले पर चाटता कभी वह मेरी छातियों को. अब हम दोनों जंगली हो चले थे सब्र किसी में भी नहीं था… मैं उसकी साड़ी उतारने लगा तो उसने मना कर दिया, उसने कहा- कोई आ भी सकता है, साड़ी नहीं खोलूंगी.
मेरा मन थोड़ा टूट गया लेकिन मैंने अपने मन में कहा ‘चलो कोई नहीं, चूत तो मारनी ही है, एक बार यह मेरी रंडी बन गई फिर तो जब चाहे जब नंगी कर दूंगा.’ फिर मैं उसकी चूचियों को चूसने लगा.
वह अपना सर नीचे पटक रही थी, मेरी जबान उसके निप्पल्स पर जब चलती तो उसका रोम-रोम खड़ा हो जा रहा है. तभी उसने मेरी पैन्ट खोल कर हाथ से मेरा लंड पकड़ कर बाहर निकाल लिया और मसलने लगी.
उसने मुझे खुद से अलग किया और मेरे लंड पर टूट पड़ी, मेरे लंड को किसी लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी. दोस्तो, इतनी प्यार से चूसने वाली मैंने आज तक नहीं देखी थी, उसकी जुबान और होंठ मेरे लंड पर ऐसे पर चल रहे थे मानो क्रीम फिसल रही हो.
मेरा लंड उसके होठों के काबू में आ गया था, वह कड़क हो जा रहा था और एक पल को मुझे ऐसा लगा यह ज्यादा देर चूसेगी तो कहीं मैं इसके मुंह में ही झाड़ दूँ अपना माल. मैंने उसको अपने से अलग किया मैंने कहा- चुदाई का वक्त हो गया है, अब चल तैयार हो जा!
वह मना करने लगी, कहने लगी- यह जगह सही नहीं है. कहीं रोहन गलती से जाग गया तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी. मैंने कहा- अब मेरा लंड खड़ा हो चुका है और तेरी चूत तो मार कर रहूँगा. चल खड़ी हो जा चुपचाप. मेरी गुर्राहट देख वो थोड़ी सहम गयी और बोली- जल्दी से कर लो.
फिर मैंने उसे सीट के ऊपर झुकने को कहा और वह सीट पर हाथ रख कर झुक गई, मैं उसके पीछे आकर खड़ा हो गया और जैसे सुहागरात को पति अपनी बीवी का घूंघट उठाता है उस तरह उसके पीछे बैठ उसकी साड़ी धीरे धीरे ऊपर करने लगा, उसकी गोरी गुदाज जांघ देखकर तो शायद किसी के भी होश उड़ जाते दोस्तो…
धीरे धीरे मैंने उसकी साड़ी उसकी गांड के ऊपर उठा दी. दोस्तो, औरत का चेहरा इतना हसीन नहीं होता है जितनी उसकी गांड होती है. बड़ी सी गोल गांड एकदम गोरी, बीच में एक लकीर जो गुलाबी गांड के छेद से होते हुए हल्की भूरे बालों से भरी उसकी चूत पर आकर खत्म हो रही थी.
उसकी चूत से रस टपक रहा था, दो-तीन बूंदें तो आस-पास लगी हुई थी और एक बूंद तो ऐसा लग रहा था अब बाहर गिरी कि तब बाहर गिरी. यह नजारा देख मेरा तो दिमाग हिल गया, मुझसे अब रुकना कठिन गया… मैं सीधा उसकी चूत पर अपना मुंह लगा दिया और उसके चूत रस को जोर जोर से चूसने लगा और मेरी जबान अपनी चूत पर पाकर वह भी मचल उठी और हाथ पीछे लाकर मेरे सर को अपनी गांड में और घुसाने लगी.
वह कुछ कह नहीं पा रही थी लेकिन बात अपने होठों के नीचे दबा वह अपनी तरह को छुपा रही थी ‘अम्म्ह अह मम्मम आअह्ह’ मैं उसकी चूत चाट ले जा रहा था, इतना स्वादिष्ट रस मैंने आज तक नहीं चखा था.
अब देर ना करते हुए मैं खड़ा हुआ मैंने अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ा, वह फिर ऐंठ गई, उसके पूरे बदन में एक बार झनझनाहट आ गई, ऐसा लगा वह अभी अभी झड़ी है. लेकिन मैं रूका नहीं, मैंने अपने लंड पर कंडोम चढ़ा कर उसकी चूत पर रखा और एक ही झटके में अपना लंड उसकी पूरी चूत में उतार दिया. इस बार वह अपनी आवाज रोक ना पाई ‘आअह्ह्ह्ह ह्ह्ह्ह माँ, धीरे डालो थोड़ा… अह्ह्ह्ह!’ लेकिन मैं तो चाहता था कि वह कुतिया की तरह चीखे ताकि उसका बेटा ऊपर सुन सके कि उसकी माँ कैसे चुद रही है. मैंने अब ताबड़तोड़ झटके मारना शुरू कर दिया हर झटके से उस की दबी हुई आवाज गले से आवाज निकलती ‘आह… हम्म… माआह…’
अब मेरी जाँघें उसकी जांघों से टकरा रही थी और पूरे कैबिन में चुदाई का शोर हो रहा था ‘थाप थप थप्प थप…’ आह्ह्ह्ह ममम गरररर’ बहुत ही मादक माहौल था. उसकी कराहें मेरे लंड को पागल कर रही थी उसकी चूत ने मेरे लंड को कस कर पकड़ लिया था.
अब मेरी भी रफ्तार बढ़ रही थी, मैं भी अपने चरम की तरफ पहुंच रहा था, पूरा केबिन हमारी चुदाई के शोर से गूंज रहा था, शोर इतना था कि सोता हुआ आदमी भी जाग जाता. मुझसे रहा नहीं गया मैंने रफ्तार और बढ़ाई, वह भी तड़प रही थी, मैंने कहा- मैं झड़ने वाला हूं. तो बोली- हाँ मैं भी! और करो और जल्दी और आह आअह्हह!
फच्च फच्च की आवाज चल रही थी और मैंने एक बड़ी सी गुर्राहट ली और अपना लंड कंडोम से बाहर निकाल सारा माल उसकी गांड पर डालने लगा, उसकी गांड मैंने अपने वीर्य से भर दी. वह हाँफ रही थी, मैं भी इतना थक गया था कि उसी के ऊपर गिर गया और वह वहीं सीट पर लेट गई, अभी भी मेरा नंगा लंड उसकी नंगी गांड के ऊपर था. पांच मिनट तक हम लोग ऐसे ही पड़े रहे, फिर जब थोड़ी सांस आई तो मैंने उससे पूछा- मजा आया? वह बोली- बहुत! मैंने कहा- तूने बहुत शोर मचाया, कहीं तेरा बेटा जाग जाता तो अपनी रंडी माँ को चुदते देख कर उसे कैसा लगता? वह बोली- तेरा लंड जब मेरे अंदर गया तो फिर मुझसे रुका ना गया. मैंने कहा- तू है ही रंडी… एक रंडी!
हम दोनों हंसी मजाक करने लगे, पूरी रात में मैंने उसे तीन बार चोदा और एक बार तो टॉयलेट में भी जहाँ बहुत मजा आया. अब मेरा उनके परिवार से पारिवारिक सम्बन्ध हो गया है, मैं जब भी मुंबई जाता हूँ, उनके वहाँ रुकता हूँ, और कोई ना कोई बहाने से उसकी माँ जरूर चोदता हूँ.
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